रांची: शुद्ध देशी रोमांस और काई पो छे जैसी फिल्मों के हीरो सुशांत सिंह राजपूत इस बार महेंद्र सिंह धौनी की बायोपिक में कैप्टन कूल की भूमिका करते दिखायी दे रहे हैं. कम ही लोगों को पता है कि सुशांत का क्रिकेट से पुराना नाता है. बिहार की राजधानी पटना में जन्मे और पले-बढ़े सुशांत की चार बहनों में से एक मितू सिंह राज्य स्तर की क्रिकेटर रह चुकी हैं. पटना के ही कार्मेल स्कूल से पढ़नेवाले सुशांत सिंह ने 2003 में एआइइइइ में देशभर में सातवां रैंक हासिल किया था. दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन तो लिया, लेकिन क्लास करने लगे कोरियाग्राफर शामक डावर और थिएटर गुरु बैरी जॉन की. तीन सालों बाद इंजीनियरिंग बीच में ही छोड़ मुंबई का रूख किया. टीवी सीरियलों में काम तलाशा और जीटीवी के डेली सोप और पवित्र रिश्ता में काम कर सुशांत ने अभिनय की झलक दिखायी. कुछ रियलिटी शो करने के बाद फिल्मों में मौका मिल ही गया. एमएस धौनी : द अनटोल्ड स्टोरी बड़े परदे पर सुशांत की चौथी फिल्म है. इसके प्रोमो के सिलसिले में रविवार को रांची में थे. प्रभात खबर के वरीय संवाददाता विवेक चंद्र ने बात की. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश :
इंजीनियरिंग करते-करते एक्टिंग कैसे करने लगे?
एक्टिंग मुझे इंजीनियरिंग से ज्यादा अच्छी लगती था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हुए मैंने तीन सालों तक थियेटर किया. उस दौरान लगा कि मुझे एक्टिंग ही करनी है. यही मेरा पैशन है. मैंने फैसला किया और अपने पैशन के लिए करियर के बारे में नहीं सोचा. बस, एक्टिंग करने लगा.
पेरेंट्स आसानी से मान गये?
हां, मान गये. देखिए, जब आपके अंदर किसी चीज का पैशन हो न, तो अपनों के सामने उसे बोल कर, हाथ-पांव हिला कर या अभिनय कर बताने की जरूरत नहीं होती. आपकी आंखें सबकुछ कह देती हैं. मेरे मामले में कुछ ऐसा ही हुआ. इसी वजह से इंजीनियरिंग कॉलेज छोड़ने के बाद भी मुझे पैरेंट्स ने कुछ कहा नहीं. मेरे पैशन के साथ जीने में साथ दिया.
बैकग्राउंड फिल्मी नहीं होने की वजह से खूब स्ट्रगल करना पड़ा होगा?
नहीं. मुझे कोई स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. मैंने मजे किये. बाहर से ऐसा लगता है कि सफल होने के लिए खूब स्ट्रगल करना पड़ता है. पर, मैंने तो देखा है कि पैशन के लिए कुछ करने पर सिर्फ मजा आता है. जब आप जो करना चाहते हैं, उसे करने के लिए सामने आनेवाली दिक्कतों को स्ट्रगल कहना गलत होगा. मैंने नाम या पैसे के लिए एक्टिंग को नहीं चुना है. मुझे इसमें नाम या पैसे नहीं मिले, तो भी मैं एक्टिंग ही करूंगा. अपने पैशन के लिए काम करता हूं. मुंबई में आठ लोगों के साथ रहता था. पैसों के लिए ट्यूशन पढ़ाता था, पर मैं खुश था. अब मेरे पास घर है. ठीक-ठाक पैसे हैं. मैं अब भी खुश हूं.
आप थियेटर से टीवी और फिर फिल्मों में गये. क्या अभिनय सीखने के लिए थियेटर जरूरी है?
है भी और नहीं भी. अभिनय इच्छा से नहीं होता है. यह अंदर की खुशी से होता है. एक कलाकार थियेटर, टीवी और फिल्मों में एक ही तरह का अभिनय करता है. फर्क सिर्फ देखनेवाली आंखों का होता है. हां, ट्रेनिंग के लिए थियेटर या फिल्म इंस्टीट्यूट जैसी चीजें जरूरी हो सकती हैं.
आपने टीवी सीरियल भी किया है. क्या डेली सोप में की जाने वाली एक्टिंग को स्तरीय मानते हैं?
बिल्कुल. देखिए, हम परसेप्प्शन पर ओपिनियन बना लेते हैं. यह सही नहीं है. डेली सोप में भी मैं ऐसा ही अभिनय करता था, जैसा अब करता हूं. फिल्में मिलने से मेरे अभिनय पर कोई फर्क नहीं आया. उसी से मुझे भी फिल्में मिली.
एक्टिंग की दृष्टि से संसाधनहीन झारखंड, बिहार से फिल्म या टीवी इंडस्ट्री में इंट्री कैसे कर सकते हैं? कोई टिप्स?
कोई टिप्स नहीं. इच्छा तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन जिसमें पैशन होगा वही सफल होगा. पैनल रखनेवाला अपनी जगह खुद बना लेगा. उसके लिए वह कोई न कोई रास्ता खोज ही लेगा. सिर्फ उसे अपने प्रति ईमानदार रहते हुए अपनी सच्ची खुशी के लिए काम करना होगा. इस रीजन में थियेटर का न होना या एक्टिंग स्कूल न होना जैसी चीजें कभी बाधक नहीं बन सकती हैं.
एमएस धौनी-द अनटोल्ड स्टोरी के बारे में कुछ बतायें?
शानदार बायोपिक बनी है. फिल्म धौनी के संघर्ष और उनके मजबूत मनोबल के बारे में है. मैंने फिल्म के लिए खूब मेहनत की है. धौनी की तरह दिखना और खेलना ही नहीं, उनकी तरह सोचना भी सीखा है. फिल्म से युवाओं को संदेश मिलेगा. लोग देखेंगे कि कोई बड़ा कैसे बनता है.
झारखंड में शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
बहुत बढ़िया. इस फिल्म के दौरान मैंने रांची को नजदीक से देखा है. यहां फिल्म की शूटिंग करने में कोई परेशानी सामने नहीं आयी. हमने रांची की सड़कों पर, मैदान में, कॉलोनी में, स्कूल में सब जगह फिल्म की शूटिंग की. शानदार जगह और लोग हैं.