हिंदी सिनेमा की चुनिंदा अभिनेत्रियों में से एक विद्या बालन ने इंडस्ट्री की पुरुष प्रधान परंपरागत रूढ़ीवादी सोच को तोड़ते हुए यह साबित किया है कि फिल्मों को हिट कराने के लिए नायिका भी अकेली सक्षम है. ‘इश्किया’, ‘नो वन किल्ड जेसिका’, ‘कहानी’ और ‘डर्टी पिक्चर’ इस बात की गवाह है. वह जल्द ही आगामी फिल्म ‘कहानी 2’ में नज़र आनेवाली हैं. यह फिल्म कहानी की सीक्वल नहीं बल्कि फ्रेंचाइजी है. विद्या भी इस फिल्म को लेकर खासा उत्साहित हैं. (उर्मिला कोरी से बातचीत के प्रमुख अंश)
‘कहानी’ हिंदी सिनेमा की यादगार थ्रिलर फिल्मों में से एक है. ‘कहानी 2’ क्या अलग होगी.
एक शब्द में कहना हो तो जबरदस्त. अलग दुनिया है अलग लोग है. अलग किरदार है. कहानी की विद्या बाक्षी में मासूमियत थी आप उस पर विश्वास कर सकते थे. आप उसकी मदद करना चाहते थे. ‘कहानी 2’ की दुर्गा रानी सिंह को देखकर किसी को देखकर समझ नहीं आ रहा है कि वो क्या है. क्या वह बेकसूर है. क्या जो आरोप लगे है उस पर सच्चे हैं उसको देखकर समझ नहीं आता है. अपनी दुनिया में रहती है. चुपचाप रहती है.उसको पता होता है कि उसके इर्द गिर्द क्या होते है. वो होते हैं न अपने आस पास ऐसे लोग जो फर्नीचर से लगते हैं. वैसे ही दुर्गा रानी सिंह भी है. उसकी दुनिया अलग है. सोच अलग है.
आपके किरदार का लुक भी काफी अलग है, उसकी तैयारी के बारे कुछ बताइए ?
सुजॉय मुझसे कहते थे कि यह किरदार पहाड़ों में रहती है इसलिए स्किन बहुत ड्राय होना चाहिए. खुद से लगाव नहीं है. बाल नहीं संवारती है. कपड़े भी सिंपल से है. वो अपनी उँगलियों की स्किन निकालती रहती है इसलिए सुजॉय ने साफ़ कह दिया था मेनिक्योर मत कराना दो महीने तक. जिस वजह से उँगलियों के साइड से निकलने लगी थी मेरी स्किन. मेरी स्किन पर मैंने कुछ भी लगाया यहाँ तक कि चेहरे को भी रुखा बनाया. मेकअप से भी, डर भी लगा था कि कहीं सचमुच स्किन न फटने लगे लेकिन भगवान् का शुक्र था कि ऐसा कुछ नहीं हुआ. वैसे मुझे रियल किरदार को रियल ढंग से निभाने में मज़ा आता है. एक अलग ज़िन्दगी को जीना है तो ये फिजिकल तैयारियां एक टूल की तरह हैं जो किरदार की विश्वसनीयता को बढाती है.
कहानी को बनने काफी दिक्कतें पेश आयी थी क्योंकि सुजॉय की फिल्में उस वक़्त असफल थी इस फिल्म को बनाना कितना आसान था ?
इस बार भी फिल्म बनाना बहुत आसान नहीं था. पहली फिल्म को सफल हुए चार साल हो चुके हैं इन चार सालों में काफी कुछ बदल गया है, इंडर्स्ट्री की इकोनॉमी बदली है. मेरी फिल्में नहीं चली है. मैं पेन की शुक्रगुजार हूँ जो उन्होंने फिल्म को प्रोड्यूस किया. वैसे कहानी 2 सीमित बजट में बनी है. हमें जो बजट चाहिए था वो मिला था.
जैसा की आपने कहा आपकी फिल्में असफल रही वो फेज को किस तरह से आप देखती हैं.
सच कहूं तो शुरुआत में मैं समझ नहीं पा रही थी .मुझे लग रहा था मुझे सफलता ऐसे ही मिलती रहेगी. मेरी तो कोई फिल्म फ्लॉप हो ही नहीं सकती है. जब ‘घनचक्कर’ फ्लॉप हुई मैं तैयार नहीं थी मानने को कि घनचक्कर फ्लॉप हो गयी थी. मुझे लगा कि वीकेंड पर नहीं चली तो क्या हुआ सोमवार मंगलवार को दर्शक फिल्म देखने आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सिद्दार्थ और मेरी शादी के बाद पहली फिल्म थी. जिससे हम दोनों जुड़े थे. बहुत दुःख हुआ. गुस्सा भी आता है. आप किसी एक पर दोष देना चाहते हैं. ऐसा मेरे साथ भी हुआ लेकिन इसी दौरान मैंने यह बात जानी कि फिल्म एक की वजह से अगर नहीं चलती तो फ्लॉप भी नहीं होती है. अगर सफलता का क्रेडिट लेती हूं तो असफलता का भी लूंगी. यह बात भी खुद को समझाया अब भी मैं फिल्म को हिट या फ्लॉप समझकर साइन नहीं करुँगी. मैं बस कहानी कहना चाहूंगी या नहीं यही बात मेरे लिए मायने रखती है
सफलता और असफलता में कौन सबसे ज़्यादा आपको सीखाता है ?
जब आप सक्सेस पाते हैं कि आपको लगता है कि आपको सबकुछ आता है लेकिन जब आप असफल होते हैं तो मन में यह बात आ ही जाती है कि सीखने का वक्त आ गया है. यह सीन इस ढंग या एटीट्यूड से किया जा सकता था. वैसे सक्सेस भी इंज्वॉय करन चाहिए. आपके काम की तारीफ हो यह अच्छा है इससे भी मोटिवेशन मिलता है लेकिन हाँ अपने काम को काम की तरह लेना चाहिए. मेरा काम टफ है लाइफ टफ है क्योंकि हम एक्टिंग करते हैं. मैं इस सोच में यकीन नहीं करती हूँ. हम सभी अपना अपना काम कर रहे है. किसी का काम किसी से कम नहीं है.
निर्देशक के तौर पर सुजॉय की क्या बात आपको खास लगती है ?
वह बहुत ही बुद्धिमान है. उसके पास इतिहास, मैथोलोजिकल और इंसानी स्वभाव सभी के विषय में बहुत जानकारी है. कहानी को कहने का अंदाज़ अलग होता है. शुरू में मैं डरी हुई थी कि अगर दर्शक इस फिल्म में भी विद्या बाक्षी और बॉब विश्वास को ढूंढेंगे तो जिस कॉंफिडेंट तरीके से सुजॉय ने मुझे समझाया कि यह फिल्म है अलग किरदार की जर्नी लेकिन फिर भी एक कनेक्शन है. सुजॉय के विश्वास ने ही इस फ्रेंचाइज फिल्म में मेरा विश्वास पुख्ता किया.
इस फिल्म से पहले आप में और सुजॉय में अनबन की खबरें आ रही थी , सुलह के लिए पहले हाथ किसने बढ़ाया.
मैं हमेशा कहूंगी मैं लेकिन यह हकीकत भी है. सुजॉय और मैं अच्छे दोस्त हैं पता नहीं हम एक दूसरे से बहुत लड़ते हैं. मुझे वही बात कोई और बोल दे बुरी नहीं लगेगी लेकिन सुजॉय बोल देगा तो मैं झगड़ लेती हूँ. जब सुजॉय चुप हो गया तो फिर बहुत मनाना पड़ता है. जब वो अनबन चल रही थी मैं सुजॉय को एक कॉफी शॉप में मिली थी. मैंने उन्हें पीछे से देखा फिर मैं उनके पास गयी और कहा कि आप सुजॉय घोष हैं हाय मैंने आपके साथ काम किया है. जवाब में उन्होंने कहा कि क्या आप वो एक्ट्रेस है जिसने प्रेग्नेंट का किरदार किया था फिर हम हंस पड़े फिर उसने मुझे बताया कि डेढ़ साल से वह क्या लिख रहा है.और फिर बात ‘कहानी 2’ की शुरू हो गयी.
काजोल और ऐश्वर्या राय को भी यह फिल्म ऑफर हुई थी ऐसी चर्चा है ?
सुजॉय इस कहानी से पहले एक और कहानी पर फिल्म बना रहे थे. उस फिल्म का नाम दुर्गा रानी सिंह था. वह फिल्म आप जिनके नाम ले रहे हो उन्हें ऑफर हुई थी. उस फिल्म का नाम सुजॉय ने सिर्फ ‘कहानी 2’ के साथ जोड़ा गया है.ञ
बचपन में कौन सी कहानी सुनना पसंद करती थी
बचपन में मेरे पिता कहानी सुनाते थे. किस तरह से एक भेड़िया मानव ने एक लड़की से शादी कर ली थी. किस तरह से वह लड़की उससे भाग जाती है. यही कहानी थी . मैं हर दिन वही कहानी पापा को सुनाने को कहती थी. मुझे उसकी हिम्मत आकर्षित करती थी. अभी भी कहानी सुनती हूँ अपनी भतीजी और भांजे से पहले मैं उनको कहानिया सुनाती थी अब वो पांच साल के हो गए हैं दोनों में लड़ाईयां होती हैं कि कौन मुझे पहले कहानी सुनाएगा.
किस तरह के किरदार करने की अब आपकी ख्वाहिश है ?
बहुत सारे हैं. विश्व की जनसंख्या क्या है. उनमें कितने अहम और रोचक किरदार होंगे. वो सारे करने हैं मुझे बहुत खुशी होती है.जब मुझे कुछ अलग तरह के किरदार ऑफर होते हैं. एक जो एक्टर का हिस्सा है मुझमे वह बहुत बडा और लालची है. मैं चाहती हूं कि मैं अलग अलग किरदार निभाऊं. हम सब कॉप्लीकेटेड है. उन कॉम्प्लिकेटेड किरदारों की दुनिया से निकलना मुश्किल भी कई बार होता है क्योंकि आप कुछ महीने तक उन्ही के बारे में सोचते रहते हैं. उस पर अगर आउटडोर शूट हो तो फिर तो आप सोते जागते इसी किरदार के बारे में सोचेंगे.
पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थी कि आपको सुचित्रा सेन और इंदिरा गांधी की बायोपिक ऑफर हुई थी ?
हाँ मुझे ऑफर हुई थी लेकिन सुचित्रा सेन की बायोपिक राइमा सेन के होते हुए मुझे नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा चेहरा भी बायोपिक में ज्यादा मायने रखता है. मेरे बजाय राइमा का चेहरा सुचित्रा सेन के ज़्यादा करीब है. जहाँ तक बात इंदिरा गांधी के बायोपिक की है. मैं करना चाहूंगी लेकिन वह पॉलिटीकल फिगर है. हम फिल्म बनाए फिर रिलीज रुक जाए. मैं ये नहीं चाहती यही वजह है कि मैंने साफ़ कह दिया है सब जगह से फिल्म को परमिशन मिल जाए तो मैं ज़रूर उसका हिस्सा बनना चाहूंगी.
आपकी आनेवाली फिल्में
‘बेगम जान’ और ‘आमी’ है. ‘आमी’ एक मलयालम फिल्म है जो कमलादास की बायोपिक है.