II उर्मिला कोरी II
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FILM REVIEW: जिंदगी को नये ढंग से जीना सीखायेगी ”डियर जिंदगी”
II उर्मिला कोरी II फिल्म: डियर ज़िन्दगी निर्माता: रेड चिलीज और धर्मा प्रोडक्शन निर्देशक: गौरी शिंदे कलाकार: आलिया भट्ट,शाहरुख़ खान,कुणाल कपूर,अंगद बेदी और अन्य रेटिंग: ढाई ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के बाद गौरी शिंदे एक बार फिर इंसानी रिश्ते और भावना की कहानी को फिल्म ‘डियर ज़िन्दगी’ से सामने लेकर आती है. फिल्म में मानसिक स्वस्थ होने […]
फिल्म: डियर ज़िन्दगी
निर्माता: रेड चिलीज और धर्मा प्रोडक्शन
निर्देशक: गौरी शिंदे
कलाकार: आलिया भट्ट,शाहरुख़ खान,कुणाल कपूर,अंगद बेदी और अन्य
रेटिंग: ढाई
‘इंग्लिश विंग्लिश’ के बाद गौरी शिंदे एक बार फिर इंसानी रिश्ते और भावना की कहानी को फिल्म ‘डियर ज़िन्दगी’ से सामने लेकर आती है. फिल्म में मानसिक स्वस्थ होने को महत्व दिया गया है लेकिन जिस कहानी के ज़रिये इस बात को बयां किया गया है. वह कहानी के प्रभाव को कमतर कर जाता है. फिल्म की कहानी की बात करें तो यह फिल्म काईरा की कहानी है, जो रिश्तों से दूर रहना चाहती हैं.वह ज़िन्दगी से नहीं खुद से नाराज़ हैं.
ज़िन्दगी तब बदल जाती है जब उसकी मुलाकात डी डी यानि दिमाग के डॉक्टर जहांगीर खान (शाहरुख़ खान) से होती है. ज़िन्दगी जीने का उसे एक अलग नजरिया मिल जाता है. फिल्म की कहानी में ब्रेअकप, परवरिश, मानसिक स्वास्थ्य सहित कई मुद्दों को सामने लेकर आती है. कई सारे मुद्दों को डील करने के चक्कर में कहानी प्रभावी ढंग से सामने नहीं ला पाती है. आलिया के किरदार में गहराई नहीं है.
फिल्म का वह दृश्य जहाँ वह अपने परिवार पर अपना आक्रोश उतारती हैं. वह दृश्य हाईवे की याद दिला जाता है. जिस वजह से वह वो प्रभाव नहीं ला पाया हैं. हाँ शाहरुख़ के सामने जब आलिया का किरदार ब्रेकडाउन हुआ है. वह सीन अच्छा बन पड़ा है. सपने वाला सीन भी अच्छा है ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के बाद यह गौरी शिंदे की दूसरी फिल्म है जिस वजह से उनसे बहुत उम्मीदें थी.
पहली फिल्म में कहानी को बयां करने में जो सिम्पलिसिटी रखी गयी थी वह इस बार नहीं है खासकर फिल्म के पहले भाग में. फिल्म के पहले भाग में करण जौहर की फिल्मों की छाप ज़्यादा महसूस हुई. फिल्म की लंबाई ज़्यादा है. अगर दो घंटे फिल्म की लंबाई होती तो फिल्म ज़्यादा मनोरंजक बनती थी. फिल्म ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैये को लाती है. यह फिल्म की कहानी का अच्छा पहलू है.
अभिनय की बात करे तो आलिया एक बार फिर अपने अभिनय से किरदार को बखूबी जीती दिखी हैं. किरदार का द्वन्द हो या ख़ुशी सभी को बखूबी सामने लेकर आती हैं. शाहरुख़ की मौजूदगी फिल्म को खास बना देती है. वह अपने किरदार से फिल्म को एक अलग लेवल पर ले जाती है. कुणाल कपूर अपनी भूमिका में जमे हैं हालाँकि फिल्म में उनके चंद सीन्स ही हैं. बाकी के किरदार भी अपने अपने रोल में फिट हैं.
फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं. जो ज़िन्दगी के मुश्किल हालातों में जीने के लिए बहुत सिंपल बात कहती है. अमित त्रिवेदी का संगीत अच्छा है. गाने कहानी में रचे बसे हैं जो कहानी के मूड को सामने लेकर आते हैं, कुलमिलाकर गौरी शिंदे की इस फिल्म की कहानी कमज़ोर ज़रूर है लेकिन कलाकारों के परफॉरमेंस और लाइट हेर्टेड ट्रीटमेंट की वजह से देखा जा सकता है.
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