निर्देशक-विशाल मिश्रा
कलाकार-सुनील ग्रोवर,जाकिर हुसैन,अंजना सुखानी,पंकज त्रिपाठी,दीपन्नीता शर्मा और अन्य
रेटिंग डेढ़
फ़न्तासी यह जॉनर फिल्मकारों को रोचक विषयों पर फिल्म बनाने की सलाहियत देता है. जो बात सिर्फ कल्पना में ही हो सकती है. उसे सशक्त लेखन,निर्देशन और मंझी हुई अदाकारी रुपहले परदे पर साकार कर जाती है लेकिन अगर इनकी कमी हो तो फंतासी जॉनर न सिर्फ बेअसर सा है बल्कि उसे बोझिल बनते भी देर नहीं लगती है. यही फिल्म निर्देशक विशाल सिंह की फिल्म कॉफ़ी विद डी के साथ भी हुआ है. फ़न्तासी और कॉमेडी के ताने बाने में बुनी फिल्म की कहानी टीवी एंकर अरनब घोष (सुनील ग्रोवर)की है. जिसके शो को टीआरपी नहीं मिल रही है. जिस वजह से चैनल का बॉस उसे कहता है कि अगर उसके शो को टीआरपी नहीं मिलेगी तो उसका शो प्राइम स्लॉट से हटा दिया जाएगा. अरनब घोष की पत्नी उसे शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का इंटरव्यू करने को कहती है. यह आईडिया अरनब के बॉस को भी पसंद आता है. उसके बाद शुरू होती है अंडरवर्ल्ड डॉन के साथ इंटरव्यू करने की जद्दोजहद.
कराची जाकर इंटरव्यू करना और दाऊद से उसके गुनाह को कबूल करवाना. यह सब फिल्म की कहानी में है फिल्म की कहानी का विषय पूरी तरह से फ़न्तासी है लेकिन रोचक है मगर फिल्म का स्क्रीनप्ले और संवाद उसके साथ न्याय नहीं कर पाए हैं. जिस वजह से यह फिल्म पूरी तरह से बोझिल बन गयी है. फिल्म देखते हुए आपको हंसी नहीं आती है बल्कि फिल्म पर आपको हंसी आती है. फिल्म में कई खामियां हैं. लचर निर्देशन भी इसकी खामियों को और बढ़ा जाता है. अभिनय की बात करें तो फिल्म में कॉमेडी से जुड़े कई बड़े नाम हैं सुनील ग्रोवर ,पंकज त्रिपाठी ,जाकिर हुसैन लेकिन उनका अभिनय भी फिल्म की कहानी की तरह बेदम नज़र आ रहा है. बाकी के कलाकारों का काम भी प्रभावहीन है। फिल्म के संवाद में सेंसर की कैंची चली है जिससे कई जगह आवाज़ नदारद है. फिल्म का गीत संगीत भी असर नहीं छोड़ पाता है। कुलमिलाकर यह फिल्म निराश करती है.