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फिल्‍म रिव्‍यू: ”अलिफ़” से जुड़ा है खास पैगाम

II उर्मिला कोरी II फिल्म: अलिफ़ निर्देशक: जैगम इमाम निर्माता: पवन तिवारी और जैगम इमाम कलाकार: नीलिमा अजीम ,ईशान कौरव, मोहम्मद सउद, दानिश हुसैन ,आहना सिंह ,भावना और अन्य रेटिंग: ढाई फिल्मकार जैगम इमाम की फिल्म अलिफ भारतीय मुस्लिम समाज के अलगाव की बहुत ही संवेदनशील और प्रासंगिक मुद्दे को सामने लेकर आता है. फिल्म […]

II उर्मिला कोरी II

फिल्म: अलिफ़

निर्देशक: जैगम इमाम

निर्माता: पवन तिवारी और जैगम इमाम

कलाकार: नीलिमा अजीम ,ईशान कौरव, मोहम्मद सउद, दानिश हुसैन ,आहना सिंह ,भावना और अन्य

रेटिंग: ढाई

फिल्मकार जैगम इमाम की फिल्म अलिफ भारतीय मुस्लिम समाज के अलगाव की बहुत ही संवेदनशील और प्रासंगिक मुद्दे को सामने लेकर आता है. फिल्म में इस बात पर करारी चोट की गयी है कि धार्मिक कट्टरता के उन्माद में मुस्लिम समाज किस तरह अपने बच्चों को वास्तविक शिक्षा से दूर रखकर प्रगति को अवरुद्ध कर रहा है.

फिल्म की कहानी अली (मोहम्मद सउद) और उसके परिवार की है. अली के पिता (दानिष हुसैन) हकीम हैं. अली और उसका खास दोस्त शकील (ईशान कौरव) एक साथ मदरसा में पढ़ने जाते हैं. अली पढ़ने और पतंग उड़ाने में माहिर है. सब कुछ ठीक चल रहा होता है.

एक दिन अचानक अली की फूफी पाकिस्तान से भारत आती हैं. अली को वह अपने भाई की तरह हकीम की बजाय डाक्टर बनाना चाहती हैं. वह अली को मदरसा की बजाय एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने भेजना शुरू करवाती हैं लेकिन यह सब इतना आसान नहीं होता है.

अली की ज़िन्दगी में उथल पुथल शुरू हो जाती है. मदरसे में पढ़ रहे अली के लिए यह सब इतना आसान नहीं होता. कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे एक शिक्षक को मदरसे से आए इस बच्चे से ऐतराज़ है. मुस्लिम समाज को लेकर वह पूर्वाग्रह से ग्रसित जो हैं तो वही अली का मदरसा भी अपनी कट्टरपंथी सोच की वजह से अली और उसके परिवार के खिलाफ है.

क्या अली फूफी का सपना पूरा कर पाएगा. क्या इसके लिए फूफी को कोई बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. इसी के इर्द गिर्द फिल्म की कहानी घूमती है. वाराणसी फिल्म का बैकड्रॉप है. फिल्माकर ने यथार्थपरक वातावरण में फिल्म को पेश किया है. ऐसा बनारस आमतौर पर फिल्मों में नज़र नहीं आता है. फिल्म में खामियां भी है.

कहानी के नरेशन में कुछ स्पष्ट खामियां भी हैं. कुछ अभिनेताओं के परफॉरमेंस ओवर द टॉप है जिससे कई बार फिल्म की कहानी का प्रभाव भी कमतर हो गया है लेकिन इस फिल्म की कहानी से जुडी नेकनीयत विशेष है. फ़िल्मकार जैगम इमाम इसके लिए बधाई के पात्र हैं जो इन्होंने इस विषय को चुना.

जिस पर आमतौर पर लोग बात करने से भी कतराते हैं. खुद को सुरक्षित रखने के लिए अलग रखने की सोच इस समाज को मुख्यधारा से अलग थलग कर रही है. यह फिल्म अपने सन्देश की वजह से बेहद खास है. लड़ना नहीं पढ़ना ज़रूरी है. यह फिल्म बताती है कि जो भी हमारी धार्मिक किताबों में लिखा गया है. उसे हम सही ढंग से समझ ही नहीं पाए हैं. इल्म सबसे ज़रूरी है.

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