फिल्‍म रिव्‍यू ”इरादा”: विषय शानदार ट्रीटमेंट बेअसर

II उर्मिला कोरी II फिल्म: इरादा निर्माता: फाल्गुनी पटेल और प्रिन्स सोनी निर्देशक: अपर्णा सिंह कलाकार: अरशद वारसी, नसीरूदीन शाह, सागरिका घाटगे, शरद केलकर और अन्य रेटिंग: दो ‘इरादा’ एक इको थ्रिलर फिल्म है. हिंदी सिनेमा के लिए यह विषय नया है. अपने इसी विषय की वजह से फिल्म खास है. फिल्म का विषय इतना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 17, 2017 3:51 PM

II उर्मिला कोरी II

फिल्म: इरादा

निर्माता: फाल्गुनी पटेल और प्रिन्स सोनी

निर्देशक: अपर्णा सिंह

कलाकार: अरशद वारसी, नसीरूदीन शाह, सागरिका घाटगे, शरद केलकर और अन्य

रेटिंग: दो

‘इरादा’ एक इको थ्रिलर फिल्म है. हिंदी सिनेमा के लिए यह विषय नया है. अपने इसी विषय की वजह से फिल्म खास है. फिल्म का विषय इतना खास है उसका ट्रीटमेंट उतना ही लचर है. फिल्म की कहानी पर आये तो फिल्म का बैकड्रॉप पंजाब है.

फिल्म की कहानी परबजीत वालिया (नसीरूद्दीन शाह) की है जो एक सैनिक था और अब लेखक है और उसकी दुनिया थम जाती है जब उसकी बेटी को कैंसर होता है. अपनी बेटी की कैंसर की वजह वह तलाशता है और पाता है कि सत्ता में बने रहने के लिए चीफ मिनिस्टर (दिव्या दत्ता) बिज़नस मैन पैड़ी को फायदा पहुंचा रहीं हैं और पैड़ी रिवर्स बोरिंग के जरिए अपनी फैक्ट्री के जहरीले वेस्ट को वह वहां की आबो हवा में घोल रहे हैं. जिससे हर कोई कैंसर की चपेट में आ गया है.

फिल्म के संवाद में भी लिखा है कि सिर्फ कागजों पर लोग ज़िंदा हैं. फिर प्लांट में विस्फोट होता है. जो प्लांट अपनी जहरीली वेस्ट से पूरे शहर और उसके लोगों को तबाह करता है वह खुद तबाह हो जाता है. यह सब कैसे होता है. जांच के लिए एनआईए अफसर अर्जुन मिश्रा (अरशद वारसी) कोलाया जाता है लेकिन कार्यवाही के लिए नहीं बल्कि केस को बंद करने के लिए ताकि पैड़ी को इंशुरेंस के पैसे मिल जाए.

पैड़ी और मुख्यमंत्री की मिलीभगत और आमलोगों की जान से खिलवाड़ की बात सामने ना आए. क्या अर्जुन का इस्तेमाल मुख्यमंत्री एक मोहरे की तरह करेंगी या अर्जुन हुकुम का इक्का बनकर इनलोगों का खेल बिगाड़ देगा. यह फिल्म की आगे की कहानी है. फिल्म का लेखन और डायरेक्शन दोनों ही ढीला है.

फिल्म का स्क्रीनप्ले कमज़ोर होने के साथ साथ कन्फ्यूजन लिए भी है. फिल्म में सस्पेन्स की बात की जा रही थी जबकि फिल्म में कोई सस्पेंस था ही नहीं. फिल्म में ना सस्पेंस है और ना ही आपको बांधे रखने का कोई एलिमेंट. हां फिल्म के अंत में जो स्टैटिक्स दिखाए गए हैं वह चौंकाते हैं. पंजाब में कोई ऐसी ट्रैन भी चलती है जो कैंसर के मरीजों के लिए चलती है.

हालांकि उस दृश्य में जो महिला अरशद से अपने बेटे की बीमारी के बारे में बात करती है लगता ही नहीं कि उनको किसी बात का दुःख है. अभिनय की बात करें तो नसीर और अरशद की जोड़ी इस फिल्म में एक बार फिर नज़र आ रही है. दोनों अपने अपने सीन्स बखूबी निभा गए हैं. एक धूर्त, चालाक पॉलिटिशियन के किरदार दिव्या दत्ता ने हमेशा की तरह इंप्रेस किया है.

डाइनिंग टेबल वाला सीन हो या पीएमओ ऑफिस वाला दृश्य सभी में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है. शरद केलकर बेहतरीन विलेन बनकर उभरे हैं. नसीर की बेटी का किरदार निभा रही अभिनेत्री ने अपने किरदार के दर्द और ख़ुशी को चंद सीन्स में ही बखूबी दर्शाया है. सागरिका घाटगे के लिए फिल्म में कुछ करने को खास नहीं था.

फिल्म में गाने खास नहीं हैं. नसीरुद्दीन शाह की शेरो शायरी कहने का अंदाज अच्छा था. कुलमिलाकर इरादा जिस मकसद से बनायीं गयी है. वह अपना प्रभाव छोड़ने में बेअसर साबित होती है.

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