II उर्मिला कोरी II
फिल्म: रंगून
निर्देशक: विशाल भारद्वाज
निर्माता: साजिद नाडियाडवाला और विशाल भारद्वाज
कलाकार: कंगना रनौत, शाहिद कपूर, सैफ अली खान
रेटिंग: 3
वर्ल्ड वॉर 2 के बैकड्रॉप पर बनी यह फिल्म एक लव ट्रायंगल है. जिसमें प्यार, तड़प, जलन, बेवफाई के साथ साथ गुलामी, आज़ादी की भावना और देशभक्ति जैसे कई दूसरे मानवीय संवेदना भी उकेरी गयी है. फिल्म की कहानी युद्ध के दृश्यों से शुरू होती है.
स्टंट क्वीन जूलिया (कंगना) जो उस दशक की मशहूर अदाकारा है. निर्माता रुसी बिलिमोरिया (सैफ अली खान) ने उसे बनाया है. जूलिया बिलिमोरिया से शादी करना चाहती है और समाज में अपना नाम इज़्ज़तदार लोगों में जोड़ना चाहती हैं.
फिल्म अभिनेत्रियों को लोग पसंद तो करते हैं लेकिन इज़्ज़त नहीं देते यह बात फिल्म के कई दृश्य में सामने आयी है. रुसी का किरदार भी जूलिया को कहता है कि वह शादी के बाद अभिनय नहीं करेगी. मूल कहानी पर आते हैं.
रुसी और जूलिया में सबकुछ ठीक चल रहा होता है तभी अँगरेज़ कर्नल जूलिया को सीमा पर जवानों के मनोरंजन के लिए आमंत्रित करता है. जो लोग द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के खिलाफ लड़ रहे होते हैं. रुसी न चाहते हुए भी जूलिया को वहां भेज देता है क्योंकि अँगरेज़ फिल्म बनाने में रूसी की मदद करते हैं.
यहाँ जूलिया की मुलाकात जमादार नवाब मलिक (शाहिद कपूर) से होती है और उन दोनो में प्यार हो जाता है. कहानी में आज़ाद हिंद फौज भी है. अंग्रेजों के खिलाफ जिसे युद्ध छेड़ने में कई किरदार उसकी मदद करते हैं. इन्ही सबका ताना बाना फिल्म की कहानी में आगे बुना गया है.
आखिर में फिल्म प्रेम और देशप्रेम पर खुद को बलिदान कर देने के बाद खत्म हो जाती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ रोचक है. जो आपको बांधे रखता है. क्लाइमेक्स थोड़ा कम प्रभावी है. फिल्म की कहानी को ज़रूरत से ज़्यादा खिंचा गया है. यह बात भी फिल्म देखते हुए आपको महसूस होती है.
अभिनय की बात करें तो कंगना रनौत दोनों ही अभिनेताओं से ज़्यादा निखर और उभर कर सामने आयी हैं. 40के दशक की अभिनेत्री के किरदार को उन्होंने बखूबी जिया है. फिल्म में उनको देखना किसी ट्रीट से कम नहीं था. जूलिया जैसी स्टंट वुमन के किरदार के लिए वाकई सशक्त कंगना से बेहतरीन कोई विकल्प नहीं हो सकता था.
शाहिद का अभिनय दमदार रहा है. सैफ को फिल्म में दोनों कंगना और शाहिद के मुकाबले कम ही स्पेस मिला है लेकिन वह अपने हिस्से के सीन्स बखूबी निभा गए हैं. कंगना और उनके बीच तलवार बाज़ी वाला पूरा दृश्य अच्छा बन पड़ा है. वह एक एक्टर के तौर पर सैफ की क्षमता को बखूबी बयां कर जाता है.
बिलिमोरिया के किरदार को अपने लुक और अंदाज़ से सैफ और ज़्यादा खास बना जाते हैं. फिल्म की कास्टिंग सटीक हुई है. जिससे सारे किरदार अपनी भूमिका में जमे हैं फिर चाहे वो अंग्रेज़ मेजर जनरल हो या फिर दूसरे किरदार.
फिल्म का संगीत कहानी और पृष्ठभूमि के अनुरूप है लेकिन गीत संगीत पर औऱ काम करने की ज़रूरत महसूस होती है. फिल्म का डायरेक्शन अच्छा है. फिल्म में 40 के दशक के हिसाब से बारीकियों का बखूबी ध्यान दिया गया है. फिल्म की सिनेमाटोग्रफी कमाल की है. जो आपको हॉलीवुड फिल्मों की याद दिलाता है.
फिल्म में संवाद जानदार बन पड़े है. ये पहलुए इस फिल्म को खास बना जाते हैं. विशाल की यहफिल्म कुछ खामियों केबावजूद एंगेज करने में कामयाब रही है.