उर्मिला कोरी
फिल्म: नाम शबाना
निर्देशक: शिवम नायर
निर्माता: नीरज पांडेय
कलाकार: तापसी पन्नू, अक्षय कुमार, पृथ्वीराज, मनोज बाजपेयी ,अनुपम खेर और अन्य
रेटिंग: तीन
हिंदी फिल्मों में ‘नाम शबाना’ स्पिन ऑफ की पहली कोशिश है. स्पिन ऑफ में कहानी से किसी एक लोकप्रिय किरदार को उठाकर उसकी बैकस्टोरी को दिखाया जाता है. साल 2015 में अक्षय कुमार की फिल्म ‘बेबी’ में शबाना के किरदार (तापसी पन्नू) का कैमियो था. काठमांडू के होटल में शबाना के एक्शन सीक्वेंस ने खूब सारी चर्चा और वाहवाही बटोरी थी. उसी शबाना के किरदार पर इस बार फिल्म पूरी तरह से स्थापित है.
फिल्म में शबाना के अतीत को दिखाया गया है. उसके इंटेलिजेंस एजेंसी से जुड़ने की कहानी भी है.फिल्म के शुरुआत में दिखाया शबाना का बचपन घरेलु कलह में बीता है. उसके शराबी पिता उसकी मां को हर रोज़ मारते पीटते हैं. दुर्घटनावश शबाना अपने पिता की हत्या कर देती है और इस वजह से उसे बाल सुधार गृह में रहना पड़ता है. लेकिन वह इनका असर अपने भविष्य पर नहीं होने देना चाहती है.
कॉलेज में पढाई के साथ साथ वह जूडो कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेती रहती है. वह उसी में अपना भविष्य तलाशती है. सबकुछ ज़िन्दगी में ठीक होने लगता है. एक दिन शबाना की आंखों के सामने उसके प्रेमी जय की हत्या कर दी जाती है, लेकिन पुलिस सबूत न होने की बात कहकर कुछ नहीं कर रही. शबाना बदला लेने का फैसला लेती है. इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ (मनोज बाजपेयी) शबाना की मदद करता है. मदद के बदले में वह शबाना को इंटेलिजेंस से जुड़ने को कहते है. शबाना राज़ी हो जाती है.
देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके एक आर्म्स डीलर्स को उसके अंजाम तक पहुचाने की जिम्मेदारी शबाना को मिलती है. यह आर्म्स डीलर अब तक इंटेलिजेंस से जुड़े कई लोगों को मार चुका है. शबाना के लिए यह पहला मिशन कैसा होने वाला है इसी के इर्द गिर्द फिल्म के दूसरे भाग की कहानी घूमती है. फिल्म की कहानी की बात करें तो बेबी की खासियत यह थी कि फिल्म आपको बांधे रखती है.
उसमें दिखाई गई इंटेलिजेंस की कार्रवाई नए ढंग से सोचने पर मजबूर करती है लेकिन इस फ़िल्म के साथ समस्या ये है कि ये फ़िल्म बेहद प्रेडिक्टेबल है, इस फिल्म में बेबी वाले फ़ॉर्मूला आज़माए गए हैं जिससे आगे क्या होगा यह बात समझ आती है. फिल्म की कहानी पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत थी.
फिल्म का नाम शबाना क्यों है इसकी वजह मनोज बाजपेयी और तापसी का संवाद दे जाता है जब मनोज बाजपेयी का किरदार कहता है कि मुस्लिम परिवेश की होने शबाना उनके लिए अधिक काम की है. फिल्म की कहानी महिला सशक्तिकरण की बात भी रखता है. महिलाओं को खुद अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी.
अभिनय की बात करें तो अभिनेत्री तापसी पन्नू फिल्म दर फिल्म निखरती जा रही हैं. एक्शन दृश्यों में उनकी मेहनत दिखती है. मनोज बाजपेयी अपनी भूमिका में उम्दा काम कर गए हैं. पृथ्वीराज नकारात्मक किरदार में सशक्त ढंग से अपनी छाप छोड़ते हैं. अक्षय कुमार की मौजूदगी फिल्म को खास बना जाती है लेकिन तापसी के किरदार को इतना सपोर्ट करना अखरता है आखिरकार ये तापसी की फिल्म थी.
डैनी, अनुपम खेर, मुरली शर्मा के छोटे छोटे कैमियो हैं लेकिन बेबी वाली बात नहीं है. फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो वह फिल्म की सिर्फ लंबाई को बढ़ाते हैं. वह कहानी की मांग नहीं थे. वह फिल्म की गति में बाधा डालते हैं. फिल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं. जब मनोज बाजपेयी पहली बार तापसी से मिलते हैं. उनके बीच का संवाद खास बन पड़ा है. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और दूसरे पक्ष अच्छे हैं.
कुलमिलाकर ‘नाम शबाना’, ‘बेबी’ से तुलना करने पर ज़रूर कमजोर दिखती है, लेकिन स्वतंत्र फिल्म के तौर पर देखें तो कमज़ोर कहानी के बावजूद यह एक एंगेजिंग फिल्म है.