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फिल्‍म रिव्‍यू: घिसी पिटी कहानी ”मिर्ज़ा जूलिएट”

II उर्मिला कोरी II फिल्म- मिर्ज़ा जूलिएट निर्देशक- राजेश राम सिंह कलाकार- पिया बाजपेयी ,दर्शन कुमार ,प्रियांशु चटर्जी ,चन्दन रॉय सन्याल, स्वानंद किरकिरे और अन्य रेटिंग- दो लव स्टोरी बॉलीवुड का पसंदीदा जॉनर है. पिछले कुछ समय से लव स्टोरी को रस्टिक अंदाज़ में कहने का चलन ज़ोरों पर है. इसी की अगली कड़ी मिर्ज़ा […]

II उर्मिला कोरी II

फिल्म- मिर्ज़ा जूलिएट

निर्देशक- राजेश राम सिंह

कलाकार- पिया बाजपेयी ,दर्शन कुमार ,प्रियांशु चटर्जी ,चन्दन रॉय सन्याल, स्वानंद किरकिरे और अन्य

रेटिंग- दो

लव स्टोरी बॉलीवुड का पसंदीदा जॉनर है. पिछले कुछ समय से लव स्टोरी को रस्टिक अंदाज़ में कहने का चलन ज़ोरों पर है. इसी की अगली कड़ी मिर्ज़ा जूलिएट है. फिल्म की कहानी में यूपी बैकड्रॉप है. जहाँ जूली (पिया बाजपेयी) अपने तीन भाइयों के साथ रहती हैं. वह भाइयों की लाड़ली है. भाई दबंग है इसलिए जूली भी बहुत बेबाक और दबंग है. उसके भाई उसकी शादी अपने राजनीतिक हित के लिए राजन (चंदन रॉय सान्याल) से तय कर देते है. जूली भी रिश्ते से खुश है.

कहानी में ट्विस्ट और टर्न्स तब आता हैं जब जूलियट की मुलाकात बचपन के दोस्त मिर्ज़ा (दर्शन कुमार) से होती है और दोनों के बीच प्यार होता है. इस बीच कहानी इलाहाबाद से नेपाल तक भी जाती है. फिल्म की स्क्रिप्ट की बात करें तो कई सारी चीज़ों को मिलाने में कहानी घिसी पिटी सी हो गयी है. फिल्म पिया के किरदार महिला सशक्तिकरण को दिखाने के लिए कड़ी मेहनत करता है, अगले ही सीन में पितृसत्ता की महिमा करने लगता है. फिल्म इश्क़ज़ादे से लेकर लोक कथा मिर्जा साहिबा की प्रेम कहानी की एक और दयनीय पुनरावृत्ति है.

अभिनय की बात करें पिया बाजपेयी अपने किरदार को एक अलग ही अंदाज़ में जिया है वह याद रह जाती है. उनका अभिनय फिल्म की खासियत है यह कहना गलत न होगा. दर्शन एक प्रेमी के तौर पर अपने भावों को दर्शाने में चूकते हैं. चन्दन रॉय सान्याल अपनी लाउड भूमिका से ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रहे हैं. स्वानंद किरकिरे की मेहनत उनके किरदार में दिखती हैं. प्रियांशु चटर्जी सहित दूसरे कलाकार औसत रहे हैं.

फिल्म का गीत संगीत कहानी की तरह ही प्रभावहीन है. मोहब्बत का मिसयूज अनुराग कश्यप के इमोशनल अत्याचार से प्रेरित ज़रूर है लेकिन वह एंटरटेनिंग नहीं बल्कि चिढ़ पैदा करने वाला ट्रैक बन गया है. फिल्म के सिनेमेटोग्राफी की बात की जाए तो वह अच्छा बन पड़ा है. यूपी और धर्मशाला के लोकेशंस खूबसूरत हैं. फिल्म के संवाद कहानी के अनुकूल ही हैं. फिल्म में जमकर सेक्स शब्द का इस्तेमाल हुआ है.

फिल्म की एडिटिंग थोड़ी चुस्त होती तो कहानी कम बोझिल सी लगती थी. कुलमिलाकर फिल्म की कहानी का खुरदुरापन हो या लाउड बैकड्रॉप या फिर ऐसे लोग जो अपने व्यक्तिगत लाभ के अपनी बेटी की हत्या करने से भी नहीं चूकते हैं. सभी पहले भी देखे गए हैं. फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं दिखाया गया है जो अपील करता है.

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