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फिल्‍म रिव्यू: सब्र का इम्तिहान लेती ”लाली की शादी में लड्डू दीवाना”

II उर्मिला कोरी II फिल्म – लाली की शादी में लडडू दीवाना निर्माता – टी पी अग्रवाल निर्देशक – मनीष हरिशंकर कलाकार -अक्षरा हसन ,विवान शाह, गुरमीत चौधरी, दर्शन जरीवाला, संजय मिश्रा और अन्य रेटिंग – एक रोमकॉम इस जॉनर में बॉलीवुड के दो पॉपुलर जॉनर रोमांटिक और कॉमेडी को मिलाकर कहानी कही जाती है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2017 4:06 PM

II उर्मिला कोरी II

फिल्म – लाली की शादी में लडडू दीवाना

निर्माता – टी पी अग्रवाल

निर्देशक – मनीष हरिशंकर

कलाकार -अक्षरा हसन ,विवान शाह, गुरमीत चौधरी, दर्शन जरीवाला, संजय मिश्रा और अन्य

रेटिंग – एक

रोमकॉम इस जॉनर में बॉलीवुड के दो पॉपुलर जॉनर रोमांटिक और कॉमेडी को मिलाकर कहानी कही जाती है ताकि दर्शकों को मनोरंजन डबल मिले लेकिन ‘लाली की शादी में लड्डू दीवाना’ में यह मामला डबल ट्रबल वाला हो गया है. बोझिल फ़िल्म की कहानी की बात करें तो यह लड्डू (विवान शाह) की है. वह बहुत महत्वकांक्षी है. टाटा बिरला और अम्बानी जैसा बनना उसका सपना है.

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए लड्डू बड़ोदरा चला जाता है. वहां उसकी मुलाकात लाली (अक्षरा) से होती है. दोनों में प्यार हो जाता है और शादी से पहले लाली प्रेग्नेंट हो जाती है. लड्डू पैसे कमाना चाहता है वह शादी के लिए तैयार नही है जिसके बाद कहानी में ट्विस्ट आ जाता है: लड्डू के माता पिता लाली को अपनी बेटी बना लेते हैं और उसकी शादी की जिम्मेदारी लेती हैं. कहानी अब लव ट्राइएंगल हो जाती है.

क्या लाली की शादी किसी और से हो जाएगी या लड्डू को अपनी गलती का एहसास होगा. इसी के इर्द गिर्द फ़िल्म की कहानी बुनी गयी है. फ़िल्म की कहानी कई पुरानी फिल्मों का घालमेल है. प्यार और कैरियर के बीच फंसा युवक से लेकर फ़िल्म के कई पहलू दूसरी फिल्मों से प्रेरित है. फिल्म में लाली के माता पिता के किरदार के ज़रिए घरेलू हिंसा के मुद्दे को जिस तरह से उठाया गया है उससे हंसी आती है. फिल्म की गति बहुत धीमी है जिस वजह से इंटरवल के बाद से यह आपके सब्र का इम्तिहान लेने लगती है.

अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म उसमें भी पूरी तरह से फिसड्डी साबित होती है. अक्षरा हसन पूरी फिल्म में ओवर एक्टिंग करती दिखी हैं. फ़िल्म के गानों में उनके एक्सप्रेशन विशेषकर ज़्यादा बुरे लगे हैं. विवान शाह भी निराश करते हैं. गुरमीत ठीक ठाक रहे हैं. उनके किरदार में राजश्री की फिल्मों समानता दिखती है. सौरभ शुक्ला और संजय मिश्रा अपनी अपनी भूमिकाओं में औसत रहे हैं.

फिल्म का गीत संगीत फिल्म को और ज़्यादा बोझिल बना देते हैं. फ़िल्म के संवाद रटे रटाये से हैं. फ़िल्म के दूसरे पक्ष सामान्य हैं. कुलमिलाकर मनोरंजन की कसौटी पर यह फ़िल्म पूरी तरह से असफल है.

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