FILM REVIEW: पुरुष प्रधान समाज को तमाचा जड़ती ”बेगम जान” (3.5 स्टार)
II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: बेगम जान निर्माता: विशेष फिल्म्स निर्देशक: श्रीजीत कलाकार: विद्या बालन,पल्लवी शारदा, इला अरुण,गौहर खान,रिद्धिमा तिवारी, चंकी पांडेय, विवेक मुश्रान और अन्य रेटिंग: साढ़े तीन ‘बेगम जान’ साल 2015 में बनी श्रीजीत मुखर्जी की ही फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिंदी रीमेक है. यह फिल्म पुरुष प्रधान समाज में औरतों की कहानी को […]
II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: बेगम जान
निर्माता: विशेष फिल्म्स
निर्देशक: श्रीजीत
कलाकार: विद्या बालन,पल्लवी शारदा, इला अरुण,गौहर खान,रिद्धिमा तिवारी, चंकी पांडेय, विवेक मुश्रान और अन्य
रेटिंग: साढ़े तीन
‘बेगम जान’ साल 2015 में बनी श्रीजीत मुखर्जी की ही फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिंदी रीमेक है. यह फिल्म पुरुष प्रधान समाज में औरतों की कहानी को न सिर्फ बयां करता है बल्कि उसके मुँह पर तमाचा भी जड़ती है. कहानी बताती है कि महिलाएं कभी स्वतंत्र नहीं थी न तो आज न दशकों पहले. फिल्म की शुरुआत में दिल्ली वाले दृश्य के बाद आज़ादी के वक़्त बेगम जान के कोठे से जोड़कर दिखाया गया है.
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह विभाजन की त्रासदी पर है, जो आजादी के 70 साल बाद भी लोगों में उत्सुकता पैदा करती है. विभाजन के दर्द को इस बार एक कोठे में रहने वाली 10 महिलाओं के ज़रिए बयां किया गया है. बंटवारे में भारत से पाकिस्तान को अलग करने के लिए एक रेडक्लिफ लाइन खींची जा रही है. यह लाइन बेगम जान (विद्या बालन) के कोठे के बीचोंबीच से जाने वाली है. आधा कोठा हिंदुस्तान में आधा पाकिस्तान में.
सरकारी हुक्मरान बेगम जान से वेश्यालय छोड़कर जाने को कहते हैं लेकिन बेगम जान एक बार फिर अपने घर को छोड़कर नहीं जाना चाहती. छोटी उम्र में विधवा हो जाने की वजह से उसे घर से निकाल दिया गया था. मज़बूरी ने उसे वेश्यावृति से जोड़ दिया. अब वह फिर से बेघर नहीं होना चाहती है क्योंकि यह कोठा सिर्फ उसका घर नहीं उसकी देश और दुनिया है. यहां उसका कानून चलता है, उसकी मर्ज़ी चलती है. वह इस कोठे को छोड़ अब फिर से उस पुरुष प्रधान समाज में नही जाना चाहती हैं ,जिसके बाद शुरू होती हैं संघर्ष और हार न मानने की कहानी.
सवाल यह कि क्या अधिकारी बेगम जान से कोठा खाली करा सकेंगेइसी पर आगे की कहानी है. फिल्म में इला का किरदार जिन ऐतिहासिक महिलाओं का किरदार बताता है उसे बहुत रोचक ढंग से कहानी के साथ जोड़ा गया है. कोठे में हर प्रान्त, जाति और धर्म की महिला का होना एक भारत वहां बसने की बात भी सशक्त ढंग से रखता है.
अभिनय की बात करें तो विद्या की मौजूदगी उसका अभिनय फिल्म को खास बना जाता है. एक बार फिर पर्दे पर उन्होंने जानदार अभिनय किया है. बेगम जान के किरदार को उन्होंने अपने लुक, संवाद अदाएगी सभी से पूरी तरह से जीवंत बना दिया है सहायक कलाकारों में गौहर खान, पितोबेश, पल्लवी शारदा और विवेक मुश्रा अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं. चंकी पांडे कबीर के रूप में शानदार रहे हैं. उनका लुक याद रह जाता है. आशिष विद्यार्थी, रजित कपूर और राजेश शर्मा, भरोसेमंद अभिनेता हैं एक बार फिर ये चेहरे अपने अभिनय से न्याय कर जाते हैं. नसीरुद्दीन शाह का कैमियो औसत है. बाकी के किरदार ठीक ठाक रहे हैं.
फिल्म के गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. वो सुबह हमी लाएंगे गीत खास बन पड़ा है. बाकी के गीत भी कहानी में सटीक बैठते हैं. फिल्म के संवाद फिल्म के विषय के तरह ही साहसिक है. इस में महिला ,धर्म और जाति सब पर खुलकर लिखा गया है. संवाद पर तालियां पड़ेगी यह तय है.गौहर खान और पीतोबश के बीच प्यार के इज़हार वाले दृश्य में गौहर के संवाद बहुत ही निर्भीक है. ऐसे संवाद बॉलीवुड फिल्मों में बहुत कम सुनने को मिलते हैं.
कुलमिलाकर फिल्म की कहानी और उसके बोल्ड ट्रीटमेंट फिल्म को ख़ास बना जाता है और फिर विद्या बालन का जानदार परफॉरमेंस तो है ही जो बेगम जान की देखने की अहम वजह बनता है.