II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: मातृ
निर्माता: अंजुम रिज़वी
निर्देशक: अश्तर सैयद
कलाकार: रवीना टंडन, मधुर मित्तल, अलीशा खान और अन्य
रेटिंग: ढाई
बलात्कार के ज्वलंत मुद्दे को रिवेंज ड्रामा के प्रचलित जॉनर में फ़िल्म ‘मातृ’ में प्रस्तुत किया गया है. फ़िल्म की कहानी विद्या (रवीना टंडन) की है. उसकी बेटी उसकी दुनिया है मगर उसकी दुनिया उस वक़्त बदल जाती है जब उसकी बेटी मुख्य मंत्री के बेटे और उसके दोस्तों के गैंगरेप का शिकार हो जाती है. जिसमें उसकी बेटी की हत्या कर दी जाती है. बलात्कारी मुख्यमंत्री का बेटा है, जिस वजह से विद्या को इंसाफ नहीं मिल पाता है.
इसके बाद विद्या के बदले की कहानी शुरू हो जाती है. इसी पर आगे की पूरी फिल्म है. शुरुआत के दो तीन लोगों की हत्या की प्लानिंग विश्वसनीय है लेकिन फिर कहानी में रियलिटी कम ड्रामा ज़्यादा लगने लगता है और फ़िल्म का क्लाइमेक्स 80 की फिल्मों की तरह हो गया हैं और वह ज़रूरत से ज़्यादा खींचा भी गया है.
स्क्रिप्ट के साथ साथ फ़िल्म के नरेशन में भी अपनी कमजोरियां हैं. अस्पताल में रवीना से पूछताछ के लिए एक भी महिला पुलिसकर्मी नहीं थी. चैनल में रेप की घटना को दिखाते हुए भी पीड़िता के चेहरे को दिखा रहे थे. कहानी की यही खामियां फ़िल्म की कमज़ोर कड़ियां हैं. कलाकारों का अभिनय ही है जो कमज़ोर कहानी के बावजूद आपको फ़िल्म से बांधे रखता है.
लगभग एक दशक के बाद अभिनेत्री रवीना टंडन रुपहले परदे पर इस फ़िल्म से फुल फ्लेज नज़र आ रही हैं. उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत से जिया है. जैसा की पहले ही कहा गया इस फ़िल्म का अभिनय पक्ष इसकी खासियत है. सभी पूरी तरह से अपने किरदार में फिट बैठे हैं. अनुराग अरोरा और विद्या जगदाले ऐसे ही किरदार रहे हैं जिनका अभिनय सराहनीय रहा हां नकारात्मक किरदार में मधुर मित्तल की विशेष तारीफ करनी होगी. अपने अभिनय से वह पहले सीन से आखिर तक नफरत पैदा करने में कामयाब रहे हैं.
फ़िल्म का संगीत औसत है. उनकी जरूरत नहीं थी. फ़िल्म के संवाद में जमकर गाली और द्विअर्थी शब्दों का इस्तेमाल हुआ है. मगर वह कहानी और किरदार को परिभाषित करने के लिए ज़रूरी थे. फ़िल्म के दूसरे पक्ष ठीक ठाक हैं.
कुलमिलाकर ‘मातृ’ की कहानी में कुछ भी सशक्त संदेश निहित नहीं हैं. फ़िल्म की कहानी अब तक कई बार परदे पर नज़र आ चुकी है. रवीना और दूसरे कलाकारों का परफॉर्मेंस ही है जिस वजह से फ़िल्म को देखा जा सकता है.