II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: नूर
निर्माता: टी सीरीज ,अबुदन्तिया
निर्देशक: सुनहील सिप्पी
कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा,पूरब कोहली ,कनन गिल और अन्य
रेटिंग: दो
पिछले कुछ हफ्तों से टिकट खिड़की पर महिलाएं कहानी की अहम धुरी बनती नज़र आयी हैं. सोनाक्षी सिन्हा की फ़िल्म ‘नूर’ इसी की अगली कड़ी है. यह फ़िल्म सबा इम्तियाज़ की किताब ‘करांची यू किलिंग मी’ पर आधारित है लेकिन किताब से यह फ़िल्म प्रेरित मात्र है क्योंकि फ़िल्म की कहानी मुम्बई पर पूरी तरह से बेस्ड है और किताब के पात्र से अलग फ़िल्म का किरदार है.
फ़िल्म की कहानी नूर रॉय चौधरी (सोनाक्षी सिन्हा) की है जो एक जर्नलिस्ट है. जिस तरह की स्टोरीज वह करना चाहती है वह उसे करने नहीं दी जा रही है. वह अपने प्रोफेशनल लाइफ से खुश नहीं है पर्सनल का भी हाल कुछ ऐसा ही है. वह सिंगल है. उसे अपने सपनों के राजकुमार का इंतज़ार है. उसके बाद जो फिल्मों की कहानी में होता है.
सपनों का राजकुमार आता है और एक बहुत बड़ी स्टोरी भी मिलती है जिससे नूर जर्नलिस्ट के तौर पर अपनी एक खास पहचान बना सकती है लेकिन फिर धमकी, धोखा और दिल टूटना सब हो जाता है. क्या नूर इन परेशानियों में खुद को संभाल पाएगी. फ़िल्म अपने प्रोमो में यूथ एंटरटेनिग लग रही थी लेकिन फिल्म जर्नलिस्ट को क्या नहीं करना चाहती यह सीख देने लगती है.
फ़िल्म के स्क्रीनप्ले में बिखराव है. कहानी की शुरुआत ही मोनोलॉग से होती है. वह 15 से 20 मिनट का है. यह प्रयोग ज़रूरत से ज़्यादा अटपटा सा फ़िल्म देखते हुए लगता है. फ़िल्म मूल कहानी तक काफी समय बाद आती है. फ़िल्म की गति बहुत धीमी है. जिससे है कुछ देर बाद ही लंबी लगने लगती है.
अभिनय की बात करें तो सोनाक्षी सिन्हा अपनी प्रचलित छवि से बाहर निकली हैं. वह कुछ अलग कर रही हैं. वह अपने अभिनय से गुदगुदाती भी है और इमोशनल भी करती है. सोनाक्षी के अभिनय को फ़िल्म का अच्छा पहलू कहा जाए तो गलत न होगा.
पूरब, कनन सहित दूसरे कलाकार अपनी भूमिकाओं में फिट हैं।फ़िल्म मुम्बई पर बेस्ड है. फ़िल्म का एक अहम पात्र मुम्बई भी है और इस फ़िल्म में एक अलग ही मुम्बई सामने आती है जो अब तक की फिल्मों में देखने को नहीं मिली है. फ़िल्म का संगीत अच्छा बन पड़ा है. संवाद कहानी के अनुरूप हैं. कुलमिलाकर अगर आप सोनाक्षी के बड़े प्रसंशक हैं तो ही यह फ़िल्म आपको अपील कर पायेगी.