जातिप्रथा पर आधारित फिल्म ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’ को क्राउडफंडिंग का सहारा
रांची : स्टूडियो सर्वहारा बैनर के तहत बन रही फिल्म ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’, समाजमेंव्याप्त की जाति प्रथा पर सवाल उठाती है. गांव में रहनेवाले एक दलित परिवार की कहानी बताती यह फिल्म, देशभर में व्याप्त वर्ण व्यवस्था की कुरीति पर चोट करती है. इसफिल्म को वृत्तचित्र निर्माता स्वतंत्र फिल्मकार पवन के श्रीवास्तव ने निर्देशित […]
रांची : स्टूडियो सर्वहारा बैनर के तहत बन रही फिल्म ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’, समाजमेंव्याप्त की जाति प्रथा पर सवाल उठाती है. गांव में रहनेवाले एक दलित परिवार की कहानी बताती यह फिल्म, देशभर में व्याप्त वर्ण व्यवस्था की कुरीति पर चोट करती है. इसफिल्म को वृत्तचित्र निर्माता स्वतंत्र फिल्मकार पवन के श्रीवास्तव ने निर्देशित किया है. पवन ‘नया पता’ नाम की एक फिल्म से चर्चा में आये थे और क्राउड फंडिंग के जरिये प्रयोगधर्मी फिल्में बनाने केलिए जाने जाते हैं. सोमवार, एक मई को उन्होंने फिल्म का ट्रेलर जारी करते हुए इसके लिए चंदा जुटाने का एक अभियान भी शुरू किया है, जिससे स्टूडियो सर्वहारा की वेबसाइटwww.studiosarvahara.com पर जाकर जुड़ा जा सकता है.
फिल्म के बारे में पवन बताते हैं, ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’ की कहानी काल्पनिक है, लेकिन कहानी लिखने की जमीन बहुत ठोस है जो मुझे इसी समाज ने मुहैया करायी है. कहानी समाज के यथार्थ के बहुत करीब है. इस फिल्म में एक दलित परिवार के 30 साल के संघर्ष और दमन की कहानी दिखायी गयी है. फिल्म मुख्य रूप से दलित दमन और धार्मिक असहिष्णुता की बात करती है. यह फिल्मबनानेके पीछे मेरा एक ही मकसद है कि भारतीय सिनेमा में जाति का विमर्श और संघर्ष मुखर हो.
पवन आगे बताते हैं कि ‘नया पता’ बनाने के बाद वह तीन सालों तक एक सार्थक कहानी के लिए संघर्ष करते रहे. उन्होंने कई निर्माताओं के चक्कर लगाये, लेकिन उन्हें कुछ हाथ नहीं लगा. वे कहते हैं, बाद में मुझे महसूस हुआ कि मैं गलत रास्ते पर जा रहा था. बहुत साफ मामला है कि अगर आपकी कहानी बाजारू नहीं है तो बहुत मुश्किल है किसी प्रोड्यूसर को समझाना. सब बाजार का मामला है.
यही वजह है कि पवन ने सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को पूरा करने के लिए समाज की मदद लेने की सोची. अपने फेसबुक पोस्ट के जरिये पवन बताते हैं कि पूरी तरह से गांव में शूट हुई इस फिल्म को बनाने के दौरान उन्हें लोगों का काफी सहयोग मिला. न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी. यही नहीं, पवन बताते हैं कि अपने गांव में शूटिंग के दौरान कई लोग उनके साथ लगे रहे. यही नहीं, शूटिंग के भारी एक्विपमेंट्स, बैटरी एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए लोग सहर्ष तैयार रहते.
पवन बताते हैं कि ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’ फिल्म को 10 भाषाओं में सबटाइटल दिया जायेगा. पवन ने फिल्म की स्क्रीनिंग भारत के 500 गांवों में करने का फैसला लिया है. उनका मानना है कि रिलीज से पहले फिल्म पर जनता का हक बनता है, जो उसकी वास्तविक दर्शक है.
फिल्म ‘लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट’ में आउटकास्ट की भूमिका FTII के रवि भूषण भारतीय ने निभायी है. इन्हें आपने ‘पानसिंह तोमर’ और ‘फिल्मिस्तान’ जैसे उत्कृष्ट और सम्मानित फिल्मों में देख चुके हैं.