अपने दमदार अभिनय से देश ही नहीं विदेशों में अपनी खास पहचान बना चुके अभिनेता इरफ़ान खान जल्द ही फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ में दिखेंगे, वह इस फिल्म की खासियत इसके विषय को देते हुए कहते हैं कि यह टॉपिकल नहीं है. यह आज से 5 साल पहले या 10 साल बाद भी बनाई जाती तो सामयिक ही होती. हिंदी और अंग्रेजी भाषा सहित दूसरे कई मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
आपका हिंदी भाषा से कितना सरोकार रहा है
हमारा तो बचपन से ही हिंदुस्तानी रहा है जबान, हमारी मां ने हमारे वालिद साहब से जिद की थी कि हमें कान्वेंट स्कूल में डाला जाए इसलिए अंग्रेज़ी भाषा की समझ ज़रूर आयी लेकिन सोचते तो हम आज भी हिंदी में ही हैं. हिंदी वाले माहौल में ही पले बढ़े हैं. हिंदी साहित्य से भी हमारा बहुत लगाव रहा है.
आप मानते हैं कि हम अंग्रेजी जानने वालों को हिंदी जानने वाले से बेहतर मानते हैं
हमारी ये मानसिकता है कि हम अंग्रेज़ी जानने वालों को सुपीरियर समझते हैं. जो हिंदी बोलने वाले अंग्रेज़ी उस खास एक्सेंट में नहीं बोल पाते हैं तो लगता है कि उस आदमी में कोई कमी है. खासकर लड़कियां तो भाव देना बंद ही कर देती हैं. मेरे साथ भी ऐसा शुरुआत में कई बार होता था. एक सेंटेंस गलत बोल दिया तो मेरी तरफ फिर तो देखना ही बंद. अभी ही नहीं हमेशा से था क्योंकि उस भाषा के लोगों ने ही हम पर राज किया था हमने सिर्फ भाषा ही नहीं हर चीज़ वहां से ली है. फिर चाहे बिजनेस का मॉडल हो या मीडिया को किस तरह से काम करना है. डेवलपमेन्ट से लेकर रहन सहन के मॉडल तक सबकुछ तो वहीं से लिया है क्योंकि हम उन्हें बेहतर समझते हैं. मैं अंग्रेजी सीखने को गलत नहीं ठहरा रहा. अंग्रेज़ी जानना अच्छी बात है लेकिन आपको आपकी लेंग्वेज पर भी भरोसा होना चाहिए. इसके लिए सरकार को चाहिए हिंदी मीडियम स्कूल अच्छे आये. उनसे एवन टीचर जुड़े जिनकी मोटी तनख्वाह हो. मा बाप को भी यह भरोसा दिलाया जाए कि उनका बेटा यहां से कुछ बनकर निकलेगा.
क्या बॉलीवुड में अंग्रेज़ियत ज़्यादा है
नहीं सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं सभी जगह है. मुझे तो यह हर तरफ से बहुत ज़्यादा सेक्युलर जगह लगती हैं. वैसे बॉलीवुड में पनपे तो वहीं हैं जो हिंदी जानते थे. जिनका हिंदी पर कमांड था. बॉलीवुड के सुपरस्टार्स के नाम इस बात के सबसे बड़े गवाह है.
आपने हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया है वहां की अंग्रेजी और यहाँ की अंग्रेजी में कितना फर्क पाते हैं.
काफी फर्क है. आपको वहां का थोड़ा लेना पड़ता है. हां अगर आपकी अंग्रेज़ी बहुत ज़्यादा साफ है तो अलग बात है वरना आपको थोड़ा सीखना पड़ता है. वरना उनको समझ नहीं आएगी.
इस फिल्म (हिंदी मीडियम) से आपने एक एक्टर के तौर पर क्या सीखा.
सीखा तो क्या ये पता नहीं लेकिन फिल्म की शूटिंग का अनुभव खास रहा है. मैं अलग अलग देश के लोगों के साथ काम करता रहा हूँ. अमेरिकन,ब्रिटिश,ईरानियन के बाद इस फ़िल्म में मुझे पाकिस्तानी के साथ काम करने का मौका मिला है. सबा कमाल की अदाकारा हैं. वहां सीरीज करने का चलन है. उनके लिए किरदार का अपना चार्म होता है.
भारत और पाकिस्तान के बीच माहौल ठीक नहीं चल रहा क्या आपको लगता है कि कुछ संगठन सबा को फिल्म का प्रमोशन करने देंगे ?
वह फ़िल्म को प्रोमोट करेंगी उन्होंने वीसा के लिए अप्लाई किया है. संगठन या सरकार कौन देश को चला रहा है. उनको तय करने दीजिए. किसकी बात मानी जायेगी. संगठन वाले सरकार को बोल दे आप बैठो मैं चला लूंगा.
इस फिल्म में आपके साथ बाल कलाकार दिशिता भी हैं बच्चों के साथ शूटिंग में कितना धैर्य रखना पड़ता है
उस बच्ची के सामने हम बच्चे थे. वह इतनी होशियार,प्रशिक्षित और समझदार है कि हम उसके सामने बच्चे थे. हम बच्चों की तरह ही बिहेव करते थे और वो हमें संभालती थी. वह बहुत ही जहीन अभिनेत्री है. ट्रेलर में ही आप उसको देख लीजिए. वह बोर्न एक्टर है
आपने अपने करियर में काफी अलग किरदार निभाए हैं क्या कोई खास किरदार निभाने की ख्वाइश है
एक्टर कभी नहीं सोचेगा कि मैंने ये नहीं किया है. वो तो तब ये सब सोचेगा जब वह हमेशा अपनी ही पर्सनालिटी को प्ले करता होगा. किरदार की लिमिट थोड़ी न होती है. आप बच्चन साहब से पूछिए इतने सालों में इतने किरदारों को निभाने के बाद भी उनके पास लंबी लिस्ट होगी. ऐसा कुछ होता नहीं है.
आप अपने स्कूल के दिनों को किस तरह से याद करते हैं और आप पढाई में कैसे थे ?
हमारी स्कूल लाइफ ऐसी थी कि सुबह 6 बजे हम जाते थे और शाम के 6 बजे घर पहुँचते थे. जिस वजह से मैं दुआ मांगने लगा था कि कब स्कूल से पीछा छूटेगा. जहाँ तक पढाई की बात है मैं बहुत ही बेकार स्टूडेंट था. मैं सोता ही रहता था. मेरे क्लेसस्मट्स को तो पता भी नहीं था कि मैं उस क्लास में हूं. मैं बैक बेंचर था आगे क्या पढ़ाया जा रहा है. कुछ पता नहीं होता था. मैं गणित में अच्छा था.
हाल ही सोनू निगम के मुद्दे पर काफी कुछ कहा गया ?
मैं उस पर बात नहीं करना चाहता हूँ अगर मुझे बोलना होगा तो आप उन विषयों पर बोलने के लिए खास कोई एक सेमीनार रखे. मैं उस में अपनी बात रखूँगा. अभी मैं बोलूं कुछ उसको काट पीट कर छापा जायेगा. जो मैं नहीं चाहता हूँ.
धर्म को लेकर आपकी क्या परिभाषा है
इंसानों को अपना धर्म खुद खोजना चाहिए।खुद उसे महसूस करना चाहिए. दूसरे के बताया ग़या धर्म धर्म नहीं होता है. धर्म वो होता है जो खुद आपकी खोज हो. आपकी अनुभूति पर हो. भगवान,खुदा, अल्लाह वो तो हर जगह मौजूद है. आपको खुद उसे ढूंढना पड़ता है. अगर आप उसे बिना ढूंढे मान लिया है तो वो तसल्ली की बात है. हर धर्म में मरने के बाद क्या होगा. उस पर एक कहानी है. सबको लगता है कि वह कहानी ही हकीकत है. अफसोस की बात है कोई सच्चाई नहीं ढूंढता पूरी दुनिया भुलावे में है.