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EXCLUSIVE : किरदार का ग्राफ मायने रखता है लीड या सेकेंड लीड होना नहीं- दीपक डोब्रियाल

बॉलीवुड एक्टर दीपक डोब्रियाल इन दिनों फ़िल्म आफत ए इश्क़ में नज़र आ रहे हैं. फ़िल्म में वो लीड भूमिका में हैं. दीपक कहते हैं कि किरदार का ग्राफ उनके लिए अहम है. लीड या सेकेंड लीड होना नहीं. दीपक आगे बताते हैं कि इस फ़िल्म के निर्देशक इंद्रजीत जी ने एक तिलस्मी दुनिया बनायी है.

बॉलीवुड एक्टर दीपक डोब्रियाल इन दिनों फ़िल्म आफत ए इश्क़ में नज़र आ रहे हैं. फ़िल्म में वो लीड भूमिका में हैं. दीपक कहते हैं कि किरदार का ग्राफ उनके लिए अहम है. लीड या सेकेंड लीड होना नहीं. दीपक आगे बताते हैं कि इस फ़िल्म के निर्देशक इंद्रजीत जी ने एक तिलस्मी दुनिया बनायी है. वो एनआईडी के टॉपर रहे हैं जिस हवेली में हमने शूट किया है उससे लेकर वीएफएक्स तक सभी कुछ आपको एक म्यूजिम का आभास देता है.उन्होंने ऐसा सेट डिजाइन किया है और अपने आर्ट का इस्तेमाल किया है. इन सबके साथ मुझे कहानी बहुत अच्छी लगी. कोविड के वक़्त में शूटिंग हुई थी तो ये भी डर था कि क्या जैसे हम करते आए हैं एक्टिंग वैसा कर पाएंगे. इतने मुश्किल दौर में क्या हम इमोशन निकाल पाएंगे क्योंकि वो वक़्त ऐसा था कि हर किसी पर आप शक कर रहे थे. उन सब के बीच आपको एक्ट करना था. उस वक़्त में वो दुनिया बनाना और एक्ट करना मेरे लिए तजुर्बा रहा. इसी अनोखे तजुर्बे से जुड़ने के लिए मैंने फ़िल्म की.

दीपक की यह फ़िल्म ओटीटी प्लेटफार्म ज़ी 5 पर रिलीज हुई है. ओटीटी माध्यम के ग्रोथ के बारे में बात करते हुए दीपक बताते हैं कि बेस्ट राइटिंग अभी ओटीटी पर ही हो रही है क्योंकि दस एपिसोड्स निकालना है एक सीजन में. वो भी दर्शकों को बांधना है तभी आप पार्ट टू बना पाएंगे. हर एक अपने फ़ोन पर देख रहा है. अपने कंप्यूटर पर देख रहा है. इसके लिए ज़्यादा बढ़िया राइटिंग की ज़रूरत है. थिएटर वाला मामला नहीं कि टिकट ले ली तो देखनी ही है यहां आदमी प्लैटफॉर्म बदल देगा. ऐसे में बढ़िया राइटिंग और ज़्यादा बढ़िया परफॉरमेंस की ज़रूरत है. ओटीटी को मैं एक चुनौती के रूप में भी देख रहा हूं यह बहुत ही अच्छी चीज है.

इस बात को कहने के साथ दीपक यह भी कहना नहीं भूलते हैं कि थिएटर थिएटर हैं. वह एक उत्सव की तरह है. ओटीटी के जो दर्शक हैं।वो ज़्यादातर पर्सनल ज़ोन के हैं. हर इंसान उससे पर्सनली कनेक्ट कर रहा है. थिएटर में एक साथ सभी का रिएक्शन्स देखने और सुनने को मिलता है. थिएटर का अपना महत्व है ओटीटी का अपना. एक्टर को अपना इनर प्रोसेस जानना है तो उसे ओटीटी करना चाहिए. मैं नहीं कह रहा हूं कि सिनेमा में नहीं है लेकिन सिनेमा से जुड़ा जो कमर्शियल पहलू है. वह उसे एक ढर्रे पर चलने के लिए मजबूर कर देता है लेकिन ओटीटी ने वो ब्रेक कर दिया है खासकर राइटिंग के लिहाज से. ओटीटी पर आप प्रयोग कर सकते हैं. यह प्रयोग लोगों को पसंद आ रहा है यही वजह है कि फिल्मों में जितना बजट लगता था अब ओटीटी प्रोजेक्ट्स में भी वो बजट लग रहा है और मेहनताना भी बराबर का मिल रहा है. थिएटर और ओटीटी दोनों साथ चलने वाले हैं ये तय है.

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परदे पर अलग अलग किरदार जीने वाले दीपक डोब्रियाल असल जिंदगी में भी बहुमुखी प्रतिभाशाली हैं. वे लेखक भी हैं. ओटीटी प्रोजेक्ट में लेखक के तौर पर जुड़ने की बातों पर वह कहते हैं कि लिखता रहता हूं लेकिन फिलहाल राइटर के तौर पर किसी प्रोजेक्ट्स से जुड़ना मुश्किल है क्योंकि एक्टर के तौर पर इतना सारा काम आ रहा है तो उसी में बिजी हूं.

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