Exclusive: दर्शक के तौर पर स्टार्स को देख मैंने भी सीटियां और तालियां बजायी है- एस एस राजमौली
निर्देशक एस एस राजमौली अपनी अगली प्रस्तुति आरआरआर को लेकर चर्चाओं में हैं. यह पीरियड ड्रामा फ़िल्म भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्म कही जा रही है.
भारतीय सिनेमा के सबसे सफलतम निर्देशकों में से एक निर्देशक एस एस राजमौली अपनी अगली प्रस्तुति आरआरआर को लेकर चर्चाओं में हैं. यह पीरियड ड्रामा फ़िल्म भारतीय सिनेमा की सबसे महंगी फ़िल्म कही जा रही है. उनकी इस फ़िल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
आपकी पिछली फिल्म बाहुबली ने बॉक्स ऑफिस पर आंकड़ों की नयी कहानी लिखी थी आरआरआर से भी वैसे करिश्मे की उम्मीद है क्या यह उम्मीद आपको प्रेशर में डालती है?
यह बात मुझे प्रेशर नहीं बल्कि ख़ुशी और मजबूती देती है कि इतने लोगों को मेरी अगली फिल्म का इंतज़ार है. जब लोग कहते हैं कि उन्हें मुझसे बाहुबली जैसी फिल्म की उम्मीद है तो इसका मतलब है कि बाहुबली फिल्म को देखते हुए उन्हें जिस तरह का अनुभव हुआ था. वह उस एक्सपीरियंस को मेरी अगली फिल्म में भी जीना चाहते हैं. आरआरआर दर्शकों को उसी अनिभव से रूबरू करेगी। फिल्म में ऐसे बहुत सारे इमोशनल पल होंगे. जो दर्शकों को कनेक्ट करेंगे.
आरआरआर को आप बायोपिक कहेंगे या फिक्शनल फिल्म?
आरआरआर पूरी तरह से फिक्शनल कहानी है लेकिन असली किरदारों पर आधारित है. भारतीय फिल्मों में अब तक इस तरह का एक्सपेरिमेंट नहीं हुआ है. पश्चिम की फिल्मों में इस तरह का एक्सपेरिमेंट खूब होता है. आरआरआर में महान फ्रीडम फाइटर्स कोमुरम भीम और अल्लुरी सीताराम राजू की भूमिका को तारक और रामचरण निभा रहे हैं. असल ज़िन्दगी में ये दोनों महान फ्रीडम फाइटर्स एक दूसरे से कभी नहीं मिले थे लेकिन मैंने पूरी तरह से एक फिक्शनल कहानी गढ़कर इनदोनों स्वतंत्रता सेनानियों को मिला दिया है. जहाँ ये दोनों एक दूसरे के साथ लड़ते हैं. दोस्ती करते हैं. साथ में काम करते हैं. एक दूसरे को मोटिवेट करते हैं.
रियल किरदारों पर फिक्शनल कहानी इस तरह की सिनेमैटिक लिबर्टी को आप कितना जायज मानते हैं , खासकर तब जब सिनेमा से लोगों भावनाओं के आहत होने की बात आम है?
अगर सिनेमैटिक लिबर्टी कहानी , किरदार को बेहतरीन बनाता है साथ ही लोगों की भावनाएं भी आहात नहीं होती है तो इस तरह की सिनेमैटिक लिबर्टी पूरी तरह से जायज है. इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगा कि अपने एक्टर्स का फैन होने से पहले मैं अपने स्वतंत्रता सेनानियों का बहुत बड़ा वाला फैन हूँ. मैं स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी को सुनते हुए बड़ा हुआ हूँ। किस तरह से उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था. उनका दुश्मन बहुत बड़ा था. मैं हमेशा से मानता आया हूँ कि हमारे स्वंतंत्रता सेनानी भगवान् की तरह लड़े थे. जब मैं बड़ा हो रहा था तो मैंने देखता था कि विदेशी फिल्मों में हमारे भारत को धूल से भरा हुआ , गरीबी और दर्द से लड़ते हुए दिखाया जा रहा है. मैंने अपने बचपन में जिस तरह की कहानियां दादा दादी से सुनी थी। कविताओं में पढ़ी थी वो ऐसी नहीं थी. वो भारत अलग था. मैं उस इमैजिनेशन से बहार नहीं निकलना चाहता हूँ. यही वजह है कि मैं इस तरह की फिल्में बनाता हूँ. जहां कहानी और किरदार लार्जर देन लाइफ हो.
पेंडेमिक की वजह से फ़िल्म काफी समय से रुकी पड़ी थी? क्या इससे फ़िल्म में कुछ बदलाव भी हुआ?
जब पहला पेंडेमिक आया था तो हमारी फ़िल्म ७५ प्रतिशत पूरी हो चुकी थी. सबकुछ बन्द हो चुका था. तीन चार महीने के बाद मैंने रशेज देखें. चार महीने के बाद फ़िल्म को देखा तो एक नया नज़रिया मिला. लॉकडाउन का फायदा ही पहुंचा. एडिटिंग वीएफएक्स और म्यूजिक पर हमने बहुत काम किया. कहानी में कुछ बदलाव करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई क्यूंकि वह परफेक्ट थी.
फ़िल्म का नाम आरआरआर रखने की कोई खास वजह?
यह फ़िल्म का वर्किंग टाइटल था।हम किसी टाइटल को उस वक़्त तक रख नहीं पाए थे तो किसी ने हमें कहा कि रामचरण, जूनियर रामाराव और मेरे नाम से आर शब्द को लेकर आरआरआर रख देते हैं. हमने वही किया. सोशल मीडिया से लेकर डिस्ट्रीब्यूटर्स तक सभी को ये नाम पसंद आया तो हमने फ़िल्म का यही टाइटल रख दिया.
आपकी इस फ़िल्म में साउथ के दो सुपरस्टार हैं उन्हें एक साथ निर्देशित करना कितना मुश्किल था?
मैंने तारक और रामचरण दोनों को कहानी और उनका किरदार इस तरह से नरेट किया था कि उन्हें अपने किरदार से प्यार हो गया था. जिस वजह से मेरा आधा काम उसी वक़्त पूरा हो गया था. उसके बाद आप उन्हें की कीचड़ में फेंके , हवा में उछाले या फिर जंगलों में दौड़ाएं वो सब कुछ करेंगे क्यूंकि उन्हें किरदार से प्यार है।.कहानी में विश्वास है.
आलिया भट्ट फ़िल्म के ट्रेलर में झलक भर दिखी हैं,फ़िल्म में उनका रोल कितना प्रभावी है?
मैं दर्शकों से झूठ नहीं कहूंगा.फ़िल्म में वो मेहमान भूमिका में हैं लेकिन बहुत प्रभावशाली उनका किरदार है. फ़िल्म देखने के बाद वो किरदार आपको याद रहेगा. बहुत ही स्ट्रांग किरदार है. आलिया ने फ़िल्म की तेलुगु में डबिंग खुद से की है. उन्होंने ट्यूटर रखा था.
आपके पिता के वी विजेंद्र बहुत प्रसिद्ध राइटर हैं ,आपकी फिल्मों के लेखन में वे अहम हिस्सा होते हैं।उनसे आपने क्या सीखा है?
उनके पास बहुत ही कमाल का ड्रामा सेन्स है. फिल्म में ड्रामा कब आना है. कैसे आना है. हर सीन कितना लंबा होना चाहिए. निर्देशन में आने से पहले मैंने पांच सालों तक उनके निगरानी में अस्सिटेंट राइटर के तौर पर काम किया था. उस दौरान मैंने इस बात को बहुत जाना कि किस तरह से आपको स्टोरी बिल्ड अप करनी है. जो मेरी क्रिएटिविटी का आधार है. हर पिता अपने बेटे को कुछ ना कुछ देता है पैसा , प्रॉपर्टी मेरे पिता ने मुझे सेंस ऑफ़ ड्रामा दिया था. जो मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत साबित हुई है.
आपका नाम सफलता का पर्याय बन चुका है क्या ज़िन्दगी में कभी असफलता से भी गुजरें हैं?
स्टूडेंट नंबर वन से बाहुबली २ तक अब तक मेरी कोई भी फिल्म असफल नहीं हुई है लेकिन मैं भी असफलता से गुजरा हूं. मेरे पिता ने तेलुगु में एक फिल्म का निर्माण किया था. वे उसके निर्देशक भी थे. मैं एसोसिएट डायरेक्टर था. उस फिल्म में मेरे पिता ने सबकुछ डाल दिया था. फिल्म बहुत बुरी तरह से फ्लॉप हो गयी थी. डेढ़ सालों तक हमारे पास कोई इनकम नहीं थी और हम मद्रास जैसे शहर में रह रहे थे. आप सोच सकती हैं कि आर्थिक तौर पर हमने कितने बुरे दिन देखें होंगे लेकिन परिवार के तौर पर हम एक थे. हमने हिम्मत नहीं हारी. हम जानते थे कि हमारी मेहनत से ये वक़्त भी गुज़र जाएगा और वही हुआ. कुछ साल लगें लेकिन चीज़ें ठीक हो गयी.
आपकी फिल्मों की सफलता का प्रतिशत शत प्रतिशत है क्या आपको फिल्मों के सफल होने का फार्मूला मालूम पड़ गया है?
(हंसते हुए)हाँ एक फार्मूला तो होता है लेकिन मुझे भी नहीं पता कि वह क्या फार्मूला होता है. मुझे अपनी कहानियों से प्यार है और मैं उसमें पूरी एनर्जी डाल देता हूँ ताकि स्क्रीन पर वह सबसे बेस्ट फॉर्म में आए .
आपकी ज़िंदगी में आप अपना मेंटॉर किसे कहेंगे?
मेरा परिवार ही मेरा मेंटॉर है. मेरे पिताजी,भाई, उसके बच्चे,मेरी पत्नी और मेरे बच्चे ये सब मेरे क्रिटिक हैं वो भी बहुत ही बुरे वाले. पूरी फ़िल्म तो छोड़िए एक दृश्य की भी चीरफाड़ कर देते हैं।ये ऐसे क्यों शूट हुआ है. ये एंगल से और अच्छा होता था. बहुत बारीकी से वो मेरी फिल्में देखते हैं.
आप पैन इंडिया के लिए फ़िल्म बनाते हैं,हिंदी फिल्मों की क्या खास बात आपको लगती है?
ये हिंदी फिल्म है, ये मलयालम फिल्म है, ये तेलगु. मैं इस तरह से किसी फिल्म को विभाजित नहीं करता हूँ. मेरे लिए अच्छी फिल्म और बुरी फिल्म, बस यही दो फिल्मों की परिभाषा है. बॉलीवुड में अलग अलग तरह का काम हो रहा है. जिसे आप एक लेवल पर जज नहीं कर सकते हैं. मुझे राजू हिरानी सर की फिल्मों से प्यार है. उनकी स्टोरी टेलिंग बहुत खास है. मैं उस तरह की फ़िल्में नहीं बना सकता हूँ लेकिन मुझे उनकी फिल्मों से प्यार है.
ओटीटी ने थिएटर के बिजनेस को प्रभावित किया है क्या थिएटर का भविष्य खतरे में है?
मैं इस बात को मानता हूँ कि ओटीटी सिनेमा के रेवेन्यू शेयर को खा रहा है लेकिन इतना नहीं कि उसको खत्म कर दें. थिएटर का सिस्टम रहने वाला है. 90 के दशक में जब बहुत सारे टीवी चैनल्स आए थे तब भी लोगों ने यही कहा था. थिएटर रहे और साथ में टीवी भी रहा. अब तीन रेवेन्यू स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म हो गए हैं. थिएटर,टीवी और ओटीटी जो साथ साथ चलेंगे और रहेंगे.
आरआरआर की ओटीटी की डील किसके साथ हुई है और कितनी बड़ी राशि आपको मिली है?
निर्माता जयंती लाल गाड़ा सर को हमने यह फिल्म दे दी है. हमारी एक ही शर्त थी कि फिल्म की थिएट्रिकल रिलीज के दो महीने बाद ही वह ओटीटी पर आनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ९० दिनों के बाद ओटीटी पर आएगी क्योंकि यह फ़िल्म थिएटर के लिए ही सबसे बेस्ट है. किस प्लेटफार्म पर होगी क्या डील मिलेगी यह सब जयंतीलाल गाड़ा सर ही आपको बता सकते हैं.
आरआरआर के बाद कौन सी फ़िल्म की प्लानिंग है?
अभी तक कुछ भी तय नहीं किया है. मेरे काम करने का तरीका थोड़ा अलग है. फ़िल्म रिलीज होगी. हो सकता है कि सुपरहिट भी हो जाए. उसके बाद मैं अपने परिवार के साथ हॉलिडे पर जाऊंगा. वापस आने के बाद मैं अगले प्रोजेक्ट पर काम करूंगा. मैं अपनी पहली फ़िल्म स्टूण्डेन्ट नंबर वन से अब तक यही करता आया हूं.