हिंदी सिनेमा के मेथड एक्टर्स में शुमार नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जल्द ही फिल्म जोगीरा सारारारा में एक अलहदा अंदाज में नजर आएंगे. एक एक्टर के तौर नवाज क़ी ख्वाहिश हमेशा ही एक्सपेरिमेंट करने की है. वह कहते हैं कि इसको लेकर मैं जिद्दी हूं चाहे कुछ हो जाए, मैं एक्सपेरिमेंट करता रहूंगा. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत.
आमतौर पर एक्टर्स के घर उनकी तस्वीरों से भरे रहते हैं, लेकिन आपके घर के हर कोने पर विश्व प्रसिद्ध थिएटर आर्टिस्ट की पेंटिंग लगी हुई हैं?
सिर्फ यही नहीं आपको मेरे पूरे घर में आपको मेरी एक भी तस्वीर नहीं मिलेगी. मैंने हमेशा से तय किया था कि मैं अपने घर में थिएटर आर्टिस्ट की तस्वीर लगाऊंगा, जो मुझे हमेशा प्रेरित करते रहे हैं. एक एक पेंटिंग मैंने खुद से बनवाया है. किस कोने पर किस थिएटर आर्टिस्ट की तस्वीर लगेगी सब मैंने ही तय किया है. मैं चाहता था कि जैसे एनएसडी के दिनों में मुझे महसूस होता था. वैसा कुछ महसूस मुझे करना था कि मैं थिएटर का बंदा हूं.
इस शहर में अपना आशियाना होने के बाद मुंबई क्या अब और अपनी सी लगने लगी है?
मुंबई में ट्रैफिक है, ये है वो है. दिक्कतें हैं. सही है, लेकिन यहां पर पूरे भारत के लोग आते हैं और कहीं ना कहीं सबकी सोच एक जैसी ही हो जाती है. इस शहर ने सबके सपने पूरे करने की जैसे जिम्मेदारी ले रखी है. ये पूरी दुनिया में शायद एकमात्र ऐसा शहर है इसलिए मुझे यह शहर मुझे बहुत खूबसूरत लगता है और हमेशा से अपना भी लगता है और इस शहर ने मुझे उम्मीद से ज्यादा ही दिया है.
कब तय किया कि मेरा भी इस शहर में अपना एक बंगला होगा?
मेरा तो काम मिलना भी मुश्किल था, तो मेरा इस शहर मैं बंगला बनेगा. मैंने कभी नहीं सोचा था.
सिनेमा पिचले कुछ सालों में जबरदस्त बदलाव से गुज़र रहा है, कैसे किरदार करना चाहते हैं?
मैं हमेशा आम सा किरदार करना चाहता हूं, जिसमें कुछ खास अलग सी चीज़ें नहीं हैं, जैसे फिल्म फोटोग्राफ में मेरा किरदार था. जिसकी अपनी असुरक्षा, अपनी छोटी – छोटी परेशानी होती है. जिससे मालूम पड़े कि ये किरदार अंदर से कैसा है. मुझे वो किरदार करने में मज़ा आता है. हम एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी चीज़ें देखना चाहते हैं, हम किरदार भी लार्जर देन लाइफ देखना चाहते हैं, लेकिन मेरा बिल्कुल उल्टा है. अभी मैं जर्मनी में एक फिल्म करके आया हूं. आप यकीन नहीं करेंगी कि हमारी सिर्फ दस लोगों की यूनिट थी, जिसमें छह तो लड़कियां ही थी. बहुत छोटी फिल्म है, लेकिन बहुत गहरी बात कहती है.
आपकी फिल्म जोगीरा रोमांटिक फिल्म है, रोमांटिक फिल्मों के मामले में आप किस एक्टर के काम को पसंद करते हैं?
मेरा ऑल टाइम फेवरेट, जिन्हे मैं मास्टर ऑफ़ मास्टर इन रोमांस कहता हूं. इटालियन एक्टर मारसल्लो हैं. 60,70 और 80 के दशक में वह काम करते थे. उनको देखता हूं, तो लगता है कि मैं हूं. उनका सिगरेट पीने का अंदाज, उनका बैठने का अंदाज, उनकी बेबाकी मैं सब बहुत पसंद करता हूं. मैं उन्हें इतना पसंद करता हूं कि एक बार मेरा एक मैगज़ीन के फोटोशूट में मुझे मारसल्लो क़ी तरह पेश किया गया था. वो बोलते हैं ना किसी चीज़ को चाहो तो आपको मिल जाती है. मैंने बोला नहीं था कि मुझे वैसा प्रस्तुत करो, लेकिन उन्होने किया.
इनदिनों थिएटर में हिंदी फ़िल्में चल नहीं रही है, क्या ये बात परेशान करती है?
हां, परेशान करती तो है. सोचना ही पड़ेगा कि दर्शक क्यों नहीं थिएटर में आ रहे हैं. फ़िल्में खराब आ रही हैं या कोई तकनीकी पक्ष की खामी है. मुझे जो लगता है कि टिकटों के दामों में कमी होनी चाहिए, क्योंकि आम आदमी इतने पैसे नहीं दे सकता है.
आपने हाल ही में कहा था कि हमारे स्टार्स बहुत पैसे लेते हैं, जिससे फिल्म का बजट बहुत बढ़ जाता है और इससे रिस्क भी?
मैंने ये नहीं कहा था. मैंने कहा था कि फिल्मों का सीमित बजट में बनना जरूरी है. सीमित बजट में बनने वाली फ़िल्में इधर- उधर से अपनी लागत निकाल लेती हैं, लेकिन बड़े बजट क़ी फ़िल्में ऐसा नहीं कर पाती हैं. जब बड़े बजट क़ी चार – पांच फ़िल्में नहीं चलती है, तो इसका असर पूरी इंडस्ट्री पर बहुत बुरा होता है. यह देखने में नहीं आता है, लेकिन अंदरूनी इसका फर्क बहुत बड़ा होता है. बड़ी फिल्मों के फ्लॉप होने का डर बहुत बड़ा होता है, उससे इंडस्ट्री के खत्म होने का भी डर आ जाता है.
आपकी निजी ज़िन्दगी बहुत उतार – चढ़ाव से भरी पिछले कुछ समय से रही है?
मैं उस पर कोई बात नहीं करना चाहता हूं. जो हुआ है. मुझ तक रहे, ठीक है. मैं यही कहना चाहूंगा कि प्यार बहुत ही अच्छी चीज है, तो प्यार बांटो, नफरत नहीं.
आप फिर से प्यार के लिए ओपन है?
ओपन क्यों, मैं प्यार में ही हूं, हमेशा लड़की से ही प्यार हो. ये जरूरी नहीं है. आप प्रकृति से भो प्यार कर सकते हैं.
आपका जल्द ही जन्मदिन आनेवाला है, किस तरह से उसे सेलिब्रेट करते हैं?
मैं बहुत ही आम से परिवार से आता हूं. हमारे यहां जन्मदिन मनाने का कोई खास रिवाज नहीं रहा है, तो आज भी वैसा ही है. आमतौर पर मैं अपने जन्मदिन पर कान फिल्म फेस्टिवल होता था. इस बार अभी तक कुछ प्लान नहीं है.
आपने सिनेमा में कई यादगार किरदार किए हैं,क्या आपको लगता है कि कभी आपने बुरी एक्टिंग भी क़ी है?
एक्टर दो तरह के होते हैं. अच्छा एक्टर और बुरा एक्टर. अच्छा एक्टर कितना भी खराब काम करें, बुरा नहीं हो सकता है वो एक्टिंग का सही सुर पकड़ ही लेगा. बुरा एक्टर बहुत बुरा तो कभी कम बुरा एक्ट करते हैं. बुरे एक्टर के साथ एक्टिंग करना बहुत मुश्किल होता है.
आपके निर्देशकों क़ी विशलिस्ट है और क्या आप काम के लिए अप्रोच करते हैं?
मैं काम नहीं मांगता हूं. संघर्ष के दौरान भी कभी नहीं मांगा. मैं रोज ऑडिशन में जाता था, लाइन में लगता था और ऑडिशन दे देता था. उसके बाद जाकर नहीं बोलता था कि मुझे काम दे दो, क्योंकि मैं बोल ही नहीं पाता था. मैं इस चीज से परेशान हो जाता था,लेकिन बोल नहीं पाया. संघर्ष के जब सात साल बीत गए और काम नहीं मिल रहा था. एक दिन मैं बहुत उदास था. मैंने निर्देशक कैजाद गुस्ताद को बोला कि काम मिल नहीं पा रहा है और मैं किसी को बोल भी नहीं पाता कि काम दो, तो उसने मुझे कहा कि तू ऐसे ही रह, मत बदलना. उसके बाद मैं और इस बात में यकीन करने लगा कि मुझे किसी से काम नहीं मांगना है.
एक्टिंग के अलावा और क्या चीज़ें करना पसंद है?
बीते कुछ सालों में मुझे घूमना बहुत अच्छा लग रहा है. आमतौर पर अपनी फिल्मों के लिए घूमने जाता हूं, लेकिन अब अपने लिए घूमना चाहता हूं और वो भी अकेले, तो उसके लिए समय निकाल रहा हूं.
आपकी आनेवाली फ़िल्में?
अभी तो रोमांटिक ही फ़िल्में आएंगी. ट्रांसजेंडर वाली हड्डी है. ठाकरे के बाद सबसे मुश्किल किरदार रहा है.