mr and mrs mahi review खराब स्क्रीनप्ले ने बिगाड़ा मिस्टर एंड मिसेज माही का पूरा खेल

mr-and-mrs-mahi आज सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. राजकुमार और जाह्नवी की यह फिल्म उम्मीदों पर खरी उतरती है या चूक गयी है.आइये जानते हैं .

By Urmila Kori | May 31, 2024 1:29 PM

फिल्म – मिस्टर एंड मिसेज माही 

निर्माता – धर्मा प्रोडक्शन 

निर्देशक -शरण शर्मा 

कलाकार -राजकुमार ,जाह्नवी कपूर,कुमुद मिश्रा ,जरीना वहाब, राजेश शर्मा, अभिलाष चौधरी और अन्य 

प्लेटफार्म – सिनेमाघर 

रेटिंग -दो 

mr and mrs mahi सिनेमा और क्रिकेट के मेल से बनी है. भारत में ये दोनों चीज़ें सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं, लेकिन सिनेमा के रुपहले परदे पर क्रिकेट जब भी आया है, तो सफलता कम असफलता ज्यादा मिली है. मिस्टर एंड मिसेज माही सिर्फ स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म नहीं है बल्कि रोमांटिक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है , लेकिन कमजोर कहानी और निर्देशन फिल्म के दोनों जॉनर के साथ न्याय नहीं कर पाई है. शादियों में अहं का टकराव, महत्त्वाकांक्षाएं,पार्टनर से वेलिडेशन को पहले भी पर्दे पर दिखाया जाता रहा है. इन मुद्दों पर इस फिल्म की भी कहानी है.बस यहां क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर कहानी को सेट किया गया है.फिल्म में इमोशन भर -भर के हैं, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले की वजह से यह प्रभावी नहीं बन पाया है. स्पोर्ट्स पृष्ठभूमि के साथ भी न्याय नहीं हो पाया है.परदे पर जाह्नवी का किरदार सिर्फ सिक्सर लगाता दिखा है.क्रिकेट सिर्फ सिक्सर लगाने का नाम नहीं है. यह मेकर्स को समझने की जरुरत थी.जिस वजह से क्रिकेट का पहलू बहुत ही अवास्तविक सा फिल्म में है.खेल की स्पिरिट भी मिसिंग है.

अभिमान की है कहानी 

फिल्म की कहानी महेंद्र(राजकुमार राव )और महिमा (जाह्नवी कपूर )की है. दोनों एक जैसे ही हैं.उनके करियर का फैसला उन्होंने नहीं उनके पिता ने ही किया है. महेंद्र इस वजह से जिंदगी से निराश है क्योंकि वह क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन अपने पिता(कुमुद मिश्रा )की दुकान में क्रिकेट किट बेच रहा है  जबकि महिमा अपने पिता के डॉक्टर बनने के सपने को जी रही है, लेकिन उसकी ख़ुशी भी क्रिकेट में ही थी.अब वह क्रिकेट देखकर इस ख़ुशी को महसूस कर लेती है.क्या होता है जब महेंद्र और माही की शादी हो जाती है.क्या महेंद्र माही को क्रिकेटर बनाकर अपना सपना पूरा करेगा या इसके पीछे उसका अपना कोई स्वार्थ है. क्या पति का  स्वार्थ महिमा के सपनों को तोड़ देगा। क्या महेंद्र को अपनी ख़ुशी असली ख़ुशी को समझ पायेगा। यही फिल्म की आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

 फिल्म की कहानी जो ट्रेलर में है , वही दो घंटे की पूरी फिल्म में है.  फिल्म में उतार – चढ़ाव की जबरदस्त कमी है. कहानी पूरी तरह से प्रेडिक्टेबल है.फिल्म की कहानी अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की फिल्म अभिमान की कई मौकों पर याद दिला गया है. मूल कहानी वही है.पति पत्नी के सपनों को पंख देता है , लेकिन फिर उसकी उंची उड़ान देख उसे ईर्ष्या होने लगती है.फिर समझ आता है कि ख़ुशी बाहर नहीं बल्कि खुद के भीतर ढूंढनी चाहिए.  जिस तरह से मां जरीना वहाब के ५ मिनट की बातचीत में राजकुमार के किरदार का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है.वह भी अटपटा सा लगता है.वहीं जाह्नवी का किरदार भी कमजोर रह गया है.लेखन टीम ने रटे रटाये फॉर्मूले के तहत ही इस किरदार को लिखा है.अपने पति के वेलिडेशन और सपोर्ट के बिना वह बेहद कमजोर पड़ जाती है.आखिर में वो मेरे बॉउंड्री की ताकत है जैसे संवाद फिल्म को एकता कपूर के सीरियल टाइप बना गया हैं.फिल्म का क्लाइमेक्स भी औसत और प्रेडिक्टबल है.कहानी के अंत में सबकुछ अच्छा होना जरुरी है , जिस वजह से कुमुद मिश्रा के किरदार का भी आखिर में ह्रदय परिवर्तन कर दिया गया है.फिल्म का गीत – संगीत भी कमजोर रह गया है.फिल्म के शीर्षक में माही और क्रिकेट है, लेकिन पर्दे पर माही यानी महेंद्र सिंह धोनी से कुछ कनेक्शन आपको दिखने वाला नहीं है.सिर्फ एक दो बार नाम लिया गया है.

कुमुद मिश्रा और राजेश शर्मा की तारीफ बनती है

राजकुमार कमाल के अभिनेता हैं,लेकिन यह फिल्म उनके कैलिबर के साथ ज्यादा कुछ करने को नहीं देती है. उन्हें करियर के इस मुकाम पर फिल्मों का चयन सोच समझकर करना चाहिए।यह फिल्म जाह्नवी कपूर की फिल्म है.वे अपनी भूमिका में जमी हैं.क्रिकेट की स्किल पर भी उन्होंने मेहनत की है, उनका फुटवर्क अच्छा है और शॉट मारते हुए उनका बॉडी पॉश्चर भी अच्छा बन पड़ा है.इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.क्रिकेट के पहलु को हटा दें तो उनका अभिनय  बहुत बार फिल्म बवाल की याद दिला गया है.कुमुद मिश्रा और राजेश शर्मा की तारीफ बनती हैं ,दोनों ने अपने अभिनय से प्रभावित किया है खासकर कुमुद मिश्रा अपने अभिनय से इस कदर गुस्सा दिलाने में कामयाब रहे हैं कि आपके मन में यह सवाल आता है कि कोई पिता ऐसा होता है क्या। जरीना वहाब , पुर्णेन्दु सहित बाकी अभिनेताओं को करने के लिए कुछ खास नहीं थालेकिन सीमित स्क्रीन स्पेस में भी वह अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं. 

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