‘आहिस्ता आहिस्ता’ और ‘नाम शबाना’ जैसी फिल्मों के निर्देशक शिवम नायर इनदिनों वेब सीरीज स्पेशल ऑप्स को लेकर सुर्खियों में हैं. यह शिवम नायर की पहली वेब सीरीज है. उनकी इस वेब सीरीज और करियर पर उर्मिला कोरी की खास बातचीत…
स्पेशल कन्सेप्ट किसका था ?
ये कांसेप्ट नीरज पांडे का था. काफी सालों से ये जेहन में था. उन्हें लगा कि ये फ़िल्म बनाने में सिमटेगा नहीं. वेब सीरीज का जब ट्रेंड आया तो उन्होंने इस कहानी को ऐसे फॉरमेट में लिखा.
आप फ़िल्म निर्देशित कर चुके हैं, वेब सीरीज की शूटिंग में क्या चुनौतियां अलग सी होती हैं ?
फ़िल्म ढाई घंटे का होती है. वेब सीरीज छह से सात घंटे का होता है. हेक्टिक होता है समय पर खत्म करना. ये राइटिंग का माध्यम है अगर आपकी राइटिंग सही है तो फिर एक्सक्यूशेन में जो समय लगे वही. इस वेब सीरीज लिखने और शूट करने में नौ महीने का समय लगा. नीरज पांडे ने विदेश वाला पार्ट शूट किया और मैंने भारत वाला. दो निर्देशकों ने काम किया है. हमने टाइट बजट में सही समय पर प्रोडक्ट दिया क्योंकि हमारी टीम अच्छी थी, जो प्रेशर में अच्छा काम करना जानती थी.
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डिजिटल माध्यम को आप किस तरह से देखते हैं ?
ये मेरी पहली वेब सीरीज है. जब हम नावेल पढ़ते हैं, उसमें कई किरदार होते हैं. वेब सीरीज का माध्यम भी वैसा ही है. कई लेयर्स के साथ कई किरदारों की जर्नी को दिखाता है जो लोग नॉवेल रीडिंग नहीं कर पाते हैं. वे वेब सीरीज के माध्यम से कई किरदारों की जर्नी को एन्जॉय कर सकते हैं.
डिजिटल माध्यम के लिए सेंसरशिप की बात अक्सर आती रहती है ?
मुझे सेंसरशिप की ज़रूरत नहीं लगती है. निर्देशक और लेखक ऐसी कहानियां वेब के लिए ढूंढ रहे हैं जो फिल्मों पर ना दिखायी जा सके तो उनको सपोर्ट की ज़रूरत होगी ना कि सेंसरशिप, जो उनकी राह को और मुश्किल बना दे. डीप लेयर्स किरदारों को दिखाने में कभी कभी कुछ चीजों को इस्तेमाल करना पड़ता है. ये दर्शकों पर ही पूरी तरह से निर्भर होना चाहिए कि वो तय करें कि उन्हें क्या देखना है क्या नहीं.
क्या स्पेशल ऑप्स का दूसरा सीजन आएगा ?
जैसे-जैसे लोग रियेक्ट करेंगे, वैसे देखेंगे. लोगों को इस शो में दिखाए गए किरदारों के बारे में जानने का मन होगा तो ही सीजन 2 पर काम होगा, लेकिन इस पर अभी नहीं कह पाएंगे डेढ़ दो महीने बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी.
डिजिटल प्लेटफार्म पैसों के मामले में कितने बेहतर स्थिति में है ?
नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन, हॉटस्टार इनका बजट अच्छा है. पैसा ठीक ठाक है. पैसों के मामले में फ़िल्म के बराबर नहीं हुआ है लेकिन ग्रोइंग इंडस्ट्री है. धीरे धीरे हो जाएगा. ये ग्लोबल प्लेटफार्म है. ग्लोबल प्लेटफार्म पर जैसे जैसे दर्शक बढ़ेगा वैसे वैसे पैसे बढ़ेगा.
झारखंड से क्या आपका जुड़ाव अब भी है ?
मैं अक्सर झारखंड जाता रहता हूं. मैं एक दो वहां की कहानियों पर भी काम कर रहा हूं. झारखंड बेस्ड स्टोरी पर वेब सीरीज की प्लानिंग कर रहा हूं.