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Exclusive: मैंने कम उम्र में बहुत कुछ देख लिया है, जानिए ऐसा क्यों कहा राधिका मदान ने

छोटे परदे से अपने कैरियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री राधिका मदान,बड़े परदे पर अपनी पहचान हर फिल्म के साथ पुख्ता करती जा रही हैं. इनदिनों वह फिल्म कुत्ते के लिए सुर्खियों में हैं. जो इस शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक देगी.उनकी इस फिल्म, अब तक की जर्नी पर उर्मिला कोरी की बातचीत

छोटे परदे से अपने करियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री राधिका मदान,बड़े परदे पर अपनी पहचान हर फिल्म के साथ पुख्ता करती जा रही हैं. इनदिनों वह फिल्म कुत्ते के लिए सुर्खियों में हैं. जो इस शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक देगी.उनकी इस फिल्म, अब तक की जर्नी पर उर्मिला कोरी की बातचीत.

कुत्ते शीर्षक से यह फिल्म और इसके किरदार किस तरह से जुड़ाव कर पाती है?

कुत्ते की जितनी भी विशेषताएं और खामियां होती हैं.वे इस फिल्म के किरदारों में हैं. वो लॉयल होते हैं.वो बहुत प्यारे भी होते हैं,लेकिन जब कोई दूसरा कुत्ता उनकी हद में आता है, तो उनकी जो जात है, वो सामने आ ही जाती है.चाहे वह कितने भी शांत और प्यारे टाइप के हो. ये जगह या कहे इलाका मेरा है. यह भावना उनमे बहुत होती है.वो पेशाब भी अपने इलाके को दर्शाने के लिए उस तरह से करते हैं. यही सब इस फिल्म में दिखाया गया है.

आप कितना इस फिल्म के अपने किरदार से मेल खाती हैं?

निजी जिंदगी में मैं बिल्कुल भी जुड़ाव नहीं महसूस करती हूं. मैं सबसे बहुत सहानुभूति रखने टाइप बंदी हूं, गलती किसी की भी हो तो मैं खुद ही माफ़ी मांग लेती हूं, लेकिन बड़ा मज़ा आता है, जब कोई किरदार इतना एजी हो, फ्री हो. पहले गोली फिर बोली उस टाइप का है.ये इस तरह का किरदार है, जिसमें आपको अलग जिंदगी जीने का मौका मिलता है. किरदार में जब इतने लायर्स होते हैं, तो उसे करने में मज़ा आता है, हां वो चुनौती भी लेकर आता है.कुत्ते के निर्देशक आसमान ने मेरे किरदार को समझने के लिए मुझे 3 पेज का सवाल भेजा था, जिसे सॉल्व करने में मुझे 20 से 22 घंटे गए.यह काफी अलग था . मैंने तय किया कि मैं अपनी हर फिल्म में इस सवाल- जवाब से गुजरूंगी, ताकि किरदार को बखूबी समझ सकूं.

इस फिल्म का ऑफर विशाल भारद्वाज के जरिए आया था या फिल्म के निर्देशक आसमान ने आपको फिल्म ऑफर की ?

मुझे विशाल जी का ही कॉल आया था. मैंने फ़ोन पर ही बोल दिया था कि मैं इसे कर रही हूँ. फिर उन्होंने मुझे स्क्रिप्ट सुबह भेजी और बोली पढ़ लो. दो घंटे में मैंने स्क्रिप्ट पढ़ ली और मैंने कह दिया कि मैं ये फिल्म कर रही हूं.

इस फिल्म में कमाल के स्टारकास्ट हैं, नसीरुद्दीन शाह, तब्बू, कोंकोना, कुमुद मिश्रा जैसे सीनियर्स. सेट पर कितनी नर्वस थी?

राज़ की बात बताऊं तो मेरे अंदर एक स्विच है, जो सेट पर जाकर ऑन हो जाता है और जो आप नाम ले रहे हैं.वे मुझे वैसे नहीं दिखते हैं, बल्कि किरदार दिखते हैं.मुझे ये समझ नहीं आता है कि मैं किसके साथ खड़ी हूं. ये इरफ़ान सर के साथ भी हुआ था और मुझे लगा था कि ये मेरे बाबा ही हैं इसलिए मैं फिल्म अंग्रेजी मीडियम में उनके बाल भी खिंच पायी हूं. सेट पर मुझे वो किरदार लगते हैं, हां जब मैं ट्रेलर देखती हूं, तो फिर अलग सी फीलिंग होती है.मैं फूट फूट के रोती हूं कि मैं इनके साथ काम करके आयी हूं.तब्बू मैम, कोंकोना मैम इनके सामने खड़ी हूं. नसीर साहब के साथ स्क्रीन शेयर किया है, तब बड़ी बात हो जाती है. मैं कभी इस चीज को हल्के में नहीं लेना चाहती हूं.

निर्देशक आसमान की यह पहली फिल्म है, उनके पिता विशाल भारद्वाज की कितनी छाप आपको नज़र आती है?

मैं कहूंगी कि जड़ एक है, लेकिन पत्ते अलग अलग हैं. और बहुत खूबसूरत है. जड़ एक है,तो आपको लगता है कि दुनिया एक है, लेकिन जिस तरह से वह शॉट लेते हैं, जिस तरह से वह किरदार को प्रस्तुत करते हैं. वह बिल्कुल अलग होता है.वो मेरे ही उम्र के हैं. पटाखा के वक़्त वह कन्टेट सुपरवाइजर था . मैंने और सान्या ने उसकी बहुत खिंचाई भी की थी. उस वक़्त पढ़ाई में उसकी ब्रेक चल रही थी, इसलिए वह उस फिल्म से जुड़ा था. हमलोग उसको सेट पर खिंचते रहते थे कि कब तू स्क्रिप्ट लिखेगा. जल्दी लिख ले, लेकिन जब हमने सेट पर एक निर्देशक के तौर पर उसका ग्रोथ, उसकी पारदर्शिता देखी. उसकी सोच देखी. वह मेरी उम्र का है, लेकिन मैं कभी तब्बू मैम और नसीर सर को डायरेक्ट करने की सोच भी नहीं सकती थी.वो तो जो भी करेंगे मुझे सब अच्छा लगेगा, लेकिन आसमान नहीं,उसे पता है कि उसे क्या चाहिए अपने किरदारों से.

क्या आपको लगता है कि दर्शक इस फिल्म को देखने थिएटर जाएंगे क्योंकि बहुत कम फ़िल्में दर्शक पसंद कर रहे हैं ?

वो सब मेरे हाथ में नहीं है. जो मेरे हाथ में नहीं है. उसको लेकर मैं प्रभावित नहीं होना चाहती हूं. मैं हमेशा अपने काम के प्रति जूनूनी रहूं. अपनी आत्मा दे दूं. अगर मैंने इसमें चोरी की, तो मुझसे गलत कोई नहीं होगा. जब मैं ये सब ही दे सकती हूं और देती हूं, तो मैं चैन की नींद सोती हूं. बाकी की चीज़ों के लिए बहुत सारे फैक्टर्स हैं, किस्मत हैं, हालात हैं.उसपर आपका बस नहीं होता है, तो अपना सौ प्रतिशत दो और फिर छोड़ दो.

एक अरसे बाद आपकी कोई फिल्म थिएटर में रिलीज हो रही है, माध्यम कितना मायने रखता है?

मुझे लगता है कि परफॉरमेंस उठकर आता है,क्योंकि बड़ा पर्दा है. अगर आपने पलक भी झपकी है या कुछ सोच रहे हैं,तो भी वह क्लियर तरीके से आ जाएगा. शायद वह फ़ोन, टीवी या लैपटॉप पर नहीं दिख पाता है.इस एकाग्रता के साथ आप थिएटर में ही फिल्म देख पाते हैं. टीवी और मोबाइल पर देखते हुए आप दूसरे जरूरी काम भी बीच -बीच में कर लेते हैं.

आपने टीवी से शुरूआत की है फिर फ़िल्में, अपनी जर्नी को देखकर क्या आपको लगता है कि आपने खुद को साबित कर दिया है?

सच कहूं तो यह आसान फैसला नहीं था. टीवी के स्थापित करियर को छोड़कर फिल्मों में संघर्ष करना. आपने एक तरीके का चेक देखा होता है. एक तरीके का फेम आपको मिला होता है.उन सबको छोड़कर आपको शुरूआत से शुरू करना होगा और हार नहीं माननी है,आपको अपने सपनों में यकीन करना होता है. जहां तक बात साबित करने की है, तो मुझे लगता है कि मुझे जिंदगी में कभी नहीं लगेगा कि मैंने साबित कर दिया. जिस दिन लग गया, उस दिन लगेगा कि मैंने सीखना छोड़ दिया. मैं आशा करती हूं कि मैं साठ साल की हो जाऊं, तो भी यही जवाब दूं कि अभी भी मैंने कुछ साबित नहीं किया, क्योंकि सीखना बाकी है.

इस जर्नी में अपने रिजेक्शन्स को याद करती हैं?

टेलीविज़न में ही मुझे रिजेक्शन मिला था, क्योंकि मैंने एक्टिंग वही सीखी थी. मुझे रिप्लेस करने की बातें हुई थी. बहुत सारी चीजें हुई थी. मैंने कम उम्र में बहुत ज्यादा चीज़ें देख ली है. शुरूआत 18 साल साल की उम्र में ही कर दी थी. मैं कहूंगी कि टीवी से अच्छा कोई स्कूल नहीं है, लेकिन जब आप इतनी छोटी उम्र में शुरूआत करते हैं. आप थोड़े मासूम और भोले टाइप के होते हो, तो सभी आपको सीखाने लगते हैं, लेकिन हां आप बहुत सीखते हो क्योंकि आप एक दिन में दस सीन करते हो. उससे अच्छी ट्रेनिंग हो ही नहीं सकती है. आप ऑडिशन कितना भी दें एक दिन में दो से चार कर सकते हैं उससे ज्यादा नहीं. मैं शुक्रगुजार हूं कि मैंने टीवी से शुरूआती की, मैं किसी एक्टिंग स्कूल में नहीं गयी क्योंकि आपको ट्रेनिंग के साथ -साथ परफॉर्म करने का मौका सिर्फ टीवी ही दे सकता है.

उतार चढ़वा की इस जर्नी में आपके लिए मोटिवेशन क्या था?

जब मेरे पास काम भी नहीं था, तो भी मैं कहती थी कि अभी मिलना है मिल लो. बाद में स्टार होने पर तो मैं बिजी हो जाउंगी. आप इसे सपनों पर यकीन करना कह सकते हैं, लेकिन ये आसान नहीं होता है. अक्सर लोग ये सोचते हैं कि उसे काम मिल रहा है, मुझे नहीं क्यों नहीं. मैं वो सब ना सोचकर अपने सपनों की दुनिया में रहती थी.अपने माता -पिता के चेहरे की खुशी मुझे मोटिवेट करती है. उनके लिए मैं स्टार तभी बन गयी थी, जब पटाखा आयी थी. मेरे हर इंटरव्यू हर आर्टिकल को मम्मी अभी भी काटकर रखती है.अपने किटी ग्रुप में भेजती हैं. अगर मैं अपनी जर्नी अपने कांटेम्पपरी के साथ तुलना करने लग गयी तो मैं छोटी -छोटी खुशियों को फिर सेलिब्रेट नहीं कर पाती थी.आपको पता है कि आप भीड़ में भाग रहे हो, लेकिन मैंने हर पल को एन्जॉय करना नहीं छोड़ा. मैं तो क्लास तीन से ही सभी को ऑटोग्राफ देती आयी हूं जब मेरी दोनो आइब्रोज जुड़ी हुई थी. स्टार, नॉन स्टार. हिट फ्लॉप ये सब बदलता रहता है. अगर मैं ये सब पर फोकस करुँगी तो कभी कुछ सोच नहीं पाउंगी. मैं लोगों के टैग पर फोकस नहीं करना है बल्कि क्राफ्ट पर बस ध्यान देना है क्योंकि मेरा क्राफ्ट मुझसे कोई छीन नहीं सकता है. हिट और फ्लॉप हो सकती हैं.

आपके आनेवाले प्रोजेक्ट कौन से हैं?

सना और कच्चे दोनो में ही मेरी शीर्षक भूमिका है. ये दोनो ही फिल्में इनदिनों फिल्म फेस्टिवल्स में सराही जा रही है. उम्मीद करती हूं कि कुछ अच्छा ही कर रही हूं. कच्चे फिल्म के निर्देशक ने भी मुझसे यही कहा था कि अच्छी का तो पता नहीं, सच्ची फिल्म बनाएंगे. मैने इस बात को अपने करियर का फलसफा बना लिया है. हर काम अब सच्चा करना है. इन फिल्मों के अलावा इस साल हैप्पी टीचर्स डे भी रिलीज हो रही है. शूटिंग फ्रंट में मैडोक की फिल्म की शूटिंग अगले महीने से शुरू होगी. इस फिल्म के लिए हिंदी भाषा पर विशेष काम कर रही हूं.

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