कान्स फिल्म फेस्टिवल में पहुंची मैथिली फिल्म ‘धुइन’ में क्या है सबसे खास, एक्टर प्रकाश बंधु ने बताया
75वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में मैथिली फिल्म धुइन को ऑफिशियल इंट्री मिली है. इस फिल्म का निर्देशन अचल मिश्रा ने किया है.
75वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में मैथिली फिल्म ‘धुइन’ को ऑफिशियल इंट्री मिली है. इस फिल्म का निर्देशन अचल मिश्रा ने किया है. फिल्म में तकरीबन सभी थियेटर आर्टिस्ट काम कर रहे हैं. इस फिल्म का हर दृश्य अपने आप में एक कहानी बयां करती है. इस फिल्म में एक अहम किरदार निभा चुके प्रकाश बंधु ने प्रभात खबर से खास बातचीत में फिल्म के बारे में कई खुलासे किये. उन्होंने बताया कि फिल्म की मेकिंग सबसे अलग है जो इस फिल्म को खास बनाती है.
फिल्म ‘धुइन’ इसलिए है खास
प्रकाश बंधु ने इस फिल्म की मेकिंग को सबसे खास बताया है. उनका कहना है कि अचल का काम करने का तरीका काफी अलग है. आधे घंटे की फिल्म में चंद संवाद है. लेकिन इसका हर एक दृश्य कहानी बयां करता है. यह फिल्म एक खूबसूरत पेटिंग है जिसे रंगों से भरा गया है और इसमें रंग जो है वो इमोशन है. बता दें कि इस पूरी फिल्म की शूटिंग बिहार के दरभंगा जिले में हुई है.
पूरे देश के लिए गौरव का क्षण
प्रकाश बंधु ने कहा कि यह सिर्फ मिथिला के लिए नहीं पूरे देश के लिए गौरव का क्षण है. क्षेत्रीय भाषा की फिल्म को ऑफिशियल इंट्री मिलना बड़ी बात है. बिहार, झारखंड और यूपी सहित हिंदी बेल्ट वाले राज्य के कलाकार मुंबई में जाकर स्ट्रगल करते हैं. हमने इस फिल्म के जरिए बताने की कोशिश की है कि एक थियेटर आर्टिस्ट मुंबई में कैसे निजी जीवन और काम के बीच जूझता है. वो पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक उलझन में फंसा होता है. ऐसे में खुद को घर से दूर जाकर उन मुश्किलों में खुद को साबित करना आसान नहीं होता.
धुइन में निभा रहे ये किरदार
उन्होंने अपने किरदार के बारे में कहा कि, मैं फिल्म में कस्बे के एक डायरेक्टर का किरदार निभा रहा हूं, जिसके नीचे 20 से 25 लोग काम करते हैं. उसके कई दोस्त है जिन्होंने इंडस्ट्री में अपना नाम कमाया है और वो उन्हीं का नाम लेकर लोगों को थियेटर सीखा रहा है. जब आप फिल्म देखेंगे तो समझ पायेंगे कि चीजें काफी सरल और कभी कितनी मुश्किलों से घिर जाती हैं.
मैंने वो देखा जो सबसे अलग था
प्रकाश बंधु ने आगे कहा कि, मैं बंबईया फिल्म इंडस्ट्री से आया था और मुझे लाइट, कैमरा, एक्शन की आदत थी. लेकिन अचल के साथ ऐसा नहीं था. उनके साथ काम करने में ये पता नहीं होता है कि वो कौन सा सीन शूट कर रहे हैं. वो सीन को ओरिजनल दिखाने के लिए कई तरह के एक्सपेरीमेंट करते हैं. आप जब फिल्म देखेंगे तो आपको समझ आयेगा कि, कही पर आप सिर्फ रियेक्शन देख रहे हैं और संवाद आपको सुनाई दे रहे हैं.
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लौट आना अच्छा था…
प्रकाश बंधु आगे कहते हैं कि वो भी कैमरामैन बनने के लिए मुंबई पहुंचे थे. उन्होंने कई बड़े डायरेक्टर्स के साथ काम किया. लेकिन मां की तबीयत खराब होने की वजह से लौटना पड़ा. लेकिन शायद किस्मत को यही मंजूर था और वहां से लौट आना भी अच्छा था. क्योंकि यहां बिना काम के भी सुकून है. मेरे पेरेंट्स दोनों थियेटर्स आर्टिस्ट थे, ऐसे में मुझे एक्टिंग का गुर विरासत में मिला. फिलहाल वो जल्द ही दलित लिटरेचर पर फिल्म बनाने वाले हैं. उन्होंने यह भी कहा कि बिहार झारखंड में फिल्म बनाने के लिए कई विषय है. लेकिन बिजनेस से ज्यादा फिल्म की मेकिंग में ध्यान देंगे तो वाकई यह किसी को अपनी ओर खींच लाने में कामयाब होगा.