National Cinema Day 2024:माधुरी दीक्षित से लेकर इन सेलिब्रिटीज ने सांझा किया थिएटर में फिल्में देखने के अपने शुरूआती अनुभवों को..  

फिल्में देखने का असली मजा सिनेमाघर हैं.रुपहले परदे के सितारे, सिनेमाघरों से जुड़े अपने उसी खास अनुभव के बारे में इस बातचीत में बताया है.

By Urmila Kori | September 20, 2024 3:20 PM

national cinema day 2024:आज नेशनल सिनेमा डे मनाया जा रहा है.बीते कुछ सालों से यह डे सिनेमाघरों द्वारा सेलिब्रेट किया जा रहा है, जिसमें दर्शकों को सबसे कम प्राइस 99 रुपये में फिल्मों को दिखाया जा रहा है. यह मुहिम दर्शकों को सिनेमाघरों से जोड़ने के लिए कोविड के बाद शुरू की गयी थी.नेशनल सिनेमा डे पर सेलिब्रिटीज ने थिएटर में देखी गयी अपनी शुरूआती फिल्मों के साथ -साथ नेशनल सिनेमा डे पर अपनी राय रखी है.

                         मेरे पापा फिल्म रिव्युज पढ़ने के बाद फिल्में देखने ले जाते थे :माधुरी दीक्षित

मेरी बेस्ट मेमोरीज भी थिएटर को लेकर मेरे बचपन की रहीहै।जब मेरे पिता फ़िल्म रिव्युज पढ़ने के बाद पूरे परिवार को लेकर फ़िल्म देखने जाते थे।हम माहिम के सिटी लाइट थिएटर तो कभी दादर के प्लाजा थिएटर में फिल्में देखने जाय करते थे.मैंने उस दौरान ही मंथन,अमर अकबर एंथोनी और भुवन शोम जैसी फिल्में देखी थी और सिनेमा से एक जुड़ाव हो गया था.तीनों फिल्में अलग – अलग जॉनर की थी और उसको देखते हुए थिएटर में अनुभव भी बेहद खास था.उस  वक़्त में फिल्में सिर्फ थिएटर में आती थी, तो वह एक इवेंट की तरह होता था, जब आप फिल्में देखने जाया करते थे.बीते दो सालों से सिनेमा डे की शुरुआत हुई है. मुझे लगता है कि यह बहुत ही अच्छी पहल है. 99  रुपए में फिल्म देखने का ऑफर मतलब आप अपने पूरे परिवार के साथ सिनेमा देखने और एन्जॉय करने जा सकते हैं.सिनेमा का जादू है और अगर आप इस पूरे परिवार के साथ देख सकते हैं ,तो इसकी अच्छी बात क्या हो सकती है.

                टिकटों के दाम कम करने से नहीं अच्छा कंटेंट बनाने से फर्क आएगा :गजराज राव

सिनेमा के प्रभाव की बात करूँ तो शुरुआत जिस फिल्म ने मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया था. वो अमिताभ बच्चन की फिल्म मिस्टर नटवर लाल थी.उस फिल्म के बाद मुझे बच्चन साहब मेरे दोस्त लगते थे. उसके बाद तो अगर उनकी फिल्म कोई भी दिखे तो मुझे देखना होता था. उस फिल्म का मुझ पर बहुत प्रभाव था. नेशनल सिनेमा डे की बात करूं तो  यह पहल अच्छी है, लेकिन दर्शक सिनेमा हॉल में तभी जाएंगे जब कंटेंट अच्छा होगा. कंटेंट अच्छा नहीं है अगर आप ने टिकट के दाम 50 रुपये भी कर देंगे तो भी दर्शक नहीं जाएंगे. यह बातसमझने की जरुरत है कि कोविड के बाद से लोगों को घर बैठे अच्छा कंटेंट देखने की आदत पड़ चुकी है.आपको दर्शकों को थिएटर में बुलाना है तो अच्छा कंटेंट बनाइए.थिएटर बिजनेस से जुड़े लोगों की भी अपनी फैमिली है.उससे जुड़ी ज़रूरतें हैं,इसलिए हम सभी को थिएटर जाना चाहिए.फ़िल्म मेकर्स की जिम्मेदारी है कि वो अच्छा कंटेंट बनाये ताकि दर्शक ओटीटी के साथ साथ मनोरंजन के लिए थिएटर का भी रुख करें.

शहंशाह पहली फिल्म थी, जो थिएटर में देखी थी :राजेश कुमार 

सिनेमा का मेरा पहला अनुभव फ़रवरी १९८८ में रिलीज़ फ़िल्म शहंशाह है.पूरे परिवार के साथ गया था .उस वक़्त सिंगल स्क्रीन थिएटर ही हुआ करते थे .कुर्सियां लकड़ी की एकदम सख्त होती थी .पंखे नहीं चलते थे  तो आदमी लोग बनियान पहनकर फ़िल्में देखती थी ,जिस वजह से महिलाएं ज्यादातर बालकनी में बैठती थी.वहाँ की भीड़ डिसेंट होती है.वैसे उस दौरान सीटी ,तालियों के साथ पैसे उछालना का चलन था.वो सब बहुत मनोरंजक लगता था.उस अनुभव की मिस करता हूँ. निजी तौर पर पहली बार सिनेमाघर फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक का रहा है.बिहार से घरवालों ने देहरादून पढ़ने भेजा था. हॉस्टल पहुँच तो सब उसके गाने गा रहे थे ,फिर क्या था जैसे ही पहला संडे आया मैं थिएटर पहुँच गया.उसकी नॉस्टैल्जिया आज भी मेरे साथ है.आज भी वो गाना बजता है,तो अपने हॉस्टल की यादों में खो जाता हूँ.नेशनल सिनेमा डे की बात करूं तोकोविड के बाद घर बैठे लोगों को कंटेंट देखे की आदत हो गयी है.नेशनल सिनेमा डे जैसी पहल अच्छी है दर्शकों को सिनेमाघर में लाने की.

 


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