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ऑस्कर में पहुंची ‘चंपारण मटन’ फिल्म बनी मिसाल, बिहार की बेटी फलक खान बोली- फिल्म ने दी पहचान

ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी कैटेगरी में सेमीफाइनल में पहुंची फिल्म चंपारण मटन की अभिनेत्री फलक खान को 18 वर्षों की मेहनत के बाद मुकाम मिला है. माता-पिता की मर्जी के खिलाफ फलक ने एमटेक करने के बजाय फिल्मी दुनिया का रास्ता चुना और अपनी मेहनत से सफलता पायी.

एफटीआइआइ, पुणे के अंतिम साल के छात्र रंजन कुमार के निर्देशन में बनी शॉर्ट फिल्म ‘चंपारण मटन’ ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड-2023 के नेरेटिव श्रेणी के लिए नामित हुई है. न्यूनतम बजट में 12 दिनों में बनी 24 मिनट की इस फिल्म की शूटिंग पुणे से 150 किलोमीटर दूर बारामती में हुई है. फिल्म में बिहार के 10 कलाकार शामिल हैं. शनिवार को इस फिल्म की अभिनेत्री फलक खान, जो मुजफ्फरपुर की रहनेवाली हैं प्रभात दफ्तर पहुंचीं. उन्होंने चंपारण मटन फिल्म के बारे में विशेष तौर से प्रभात खबर से कई बातें साझा कीं.

क्षेत्रीय फिल्मों के बिहार में विकास के सवाल पर फलक खान ने कही ये बात

क्षेत्रीय फिल्मों के बिहार में विकास के सवाल पर फलक कहती हैं कि यहां असीम संभावनाएं हैं. हाल में रोहतास के इलाके में शूटिंग के दौरान वहां की वादियां देख ऐसा लगा कि समुचित व्यवस्था व शूटिंग के लिए प्रोत्साहन मिले, तो यहां अपार संभावनाएं हैं. ग्रामीण परिवेश व सामाजिक ताना- बाना को जीवंत करती साल 2017 में फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर बनी. फिल्म पंचलाइट के बारे में भी फलक से चर्चा हुई. फलक ने कहा कि चंपारण मटन फिल्में भी सामाजिक जीवन का चित्रण है. कोरोना काल के दौरान नौकरी छूट जाने के बाद घर लौटे ऐसे व्यक्ति यह कहानी है, जो पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए काफी जद्दोजहद करता है. उसकी पत्नी मटन खाने की जिद करती है और पति के पास उतना पैसा नहीं होता है. फिल्म में संवाद बज्जिका और हिंदी में है, जिसके कारण दृश्य-संवाद और भी जीवंत हो गया है. फिल्म को करियर के रूप अपनाने वाले युवाओं को संदेश देते हुए फलक ने कहा कि साउथ की फिल्मों के कंटेंट में संस्कृति के ओज-तेज रहते हैं. युवाओं को भी समाज-संस्कृति को जीवंत करते कंटेंट और फिल्मों में काम करने की कोशिश करनी चाहिए. ‘चपारण मटन’ फिल्म के ऑस्कर तक का सफर इसका उदाहरण है.

लंबे संघर्ष के बाद ‘चंपारण मटन’ ने दी पहचान

ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी कैटेगरी में सेमीफाइनल में पहुंची फिल्म चंपारण मटन की अभिनेत्री फलक खान को 18 वर्षों की मेहनत के बाद मुकाम मिला है. माता-पिता की मर्जी के खिलाफ फलक ने एमटेक करने के बजाय फिल्मी दुनिया का रास्ता चुना और अपनी मेहनत से सफलता पायी. फलक मुजफ्फरपुर के ब्रह्मपुरा की रहनेवाली हैं. कई शॉर्ट फिल्मों के अलावा धारावाहिक में भी फलक ने काम किया है, लेकिन चंपारण मटन इनकी अब तक की उपलब्धि में मील का पत्थर साबित हुई है. फलक ने बताया कि अब चंपारण मटन से पहचान मिली है. उनके पास अब फिल्मों के भी ऑफर हैं. फिलहाल एक फिल्म की शूटिंग भी पूरी की है. दूसरी फिल्मों पर विचार कर रही हूं. बिहार और देश का नाम दुनिया तक पहुंचे, यही कोशिश है. इसके लिये पूरी ऊर्जा से काम करूंगी.

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चंपारण मटन से मिली अलग पहचान

पंचायत वेब सीरीज से मशहूर हुए महनार के चंदन रॉय ने चंपारण मटन में अभिनेता की भूमिका अदा की है. हालांकि, फिल्म करते वक्त उन्होंने यह नहीं सोचा था कि यह फिल्म ऑस्कर के सेमीफाइनल में पहुंचेगी. फिल्म में बज्जिका के संवाद होने के कारण उन्होंने यह फिल्म किया था. चंदन बताते हैं कि बज्जिका मेरी जमीन की बोली है. यह मेरे संस्कार से जुड़ा है. इसलिये फिल्म करने की स्वीकृति दी, लेकिन जब फिल्म स्टूडेंट एकेडमी कैटेगरी में ऑस्कर के सेमीफाइनल में पहुंची तो बहुत खुशी हुई. इस फिल्म ने मुझे अलग पहचान दी है. निर्देशक रंजन ने फिल्म को बड़ी खूबसूरती से पेश किया है. अन्य कलाकारों का भी काम बहुत अच्छा है.अपनी बोली में फिल्म करने की इच्छा जगी है.

मेहनत और जुनून से बनी चंपारण मटन

चंपारण मटन के लेखक और निर्देशक रंजन उमा कृष्ण ने सड़क से ऑस्कर में पहुंचने तक का सफर तय किया है. कभी दिन भर एलोबेरा बेच कर घर चलाने वाले रंजन ने संघर्षों से काफी हार नहीं मानी. वे चाहते तो एमआइटी से बीटेक के बाद अच्छी-सी नौकरी कर सकते थे, लेकिन फिल्म में ही अपनी पहचान बनाने के जुनून ने इन्हें संघर्ष करने पर मजबूर किया. एफटीआइआइ में दाखिला लेकर रंजन ने फिल्म बनाने का हुनर सीखा. फिर चंपारण मटन फिल्म बना कर यह साबित कर दिया कि कुछ करने का जुनून हो तो सफलता जरूर मिलती है. बज्जिका की खूशबू लिये यह फिल्म ऑस्कर में पहुंची है, यह न केवल बज्जिका, बल्कि पूरे देश के लिये गर्व की बात है. रंजन के पिता हाजीपुर में ही रहते है. वहां इनके जूते-चप्पल की दुकान है. रंजन बताते हैं कि माता- पिता इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं. ऑस्कर में फिल्म के पहुंचने से उन्हें भी ऊर्जा मिली है.

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