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Exclusive: छतरीवाली फेम रकुल प्रीत सिंह बोली- यौन शिक्षा मिले तो गलत कदम नहीं उठायेंगे युवा, जानें क्यों

रकुल प्रीत सिंह ने अपनी फिल्म ‘छतरीवाली’ को लेकर बात की. साथ ही बताया कि उनके लिए सबसे ज्यादा अपीलिंग क्या रहा. एक्ट्रेस ने कहा, सबसे ज्यादा अपीलिंग हमेशा की तरह स्क्रिप्ट थी. ‘छतरीवाली’ की स्क्रिप्ट ऐसी लगी, जो हंसी-मजाक में गहरी बात कह जाती है.

यौन शिक्षा पर आधारित फिल्म ‘छतरीवाली’ इन दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम कर रही है. इस फिल्म का मुख्य चेहरा अभिनेत्री रकुलप्रीत सिंह हैं. वह अपनी इस फिल्म को बहुत खास करार देती हैं, क्योंकि यह एंटरटेनमेंट के साथ-साथ एक सोशल मैसेज भी दे रही है. रकुल कहती हैं कि इस फिल्म का टॉपिक न केवल असुरक्षित सेक्स से सुरक्षा और रोकथाम के बारे में बात करता है, बल्कि उन स्वास्थ्य मुद्दों पर भी प्रकाश डालती है, जिनसे महिलाएं गुजरती हैं. कुछ अहम सवालों पर रकुल के दिलचस्प जवाब.

‘छतरीवाली’ में आप मुख्य भूमिका में हैं. इसमें आपके लिए सबसे ज्यादा अपीलिंग क्या रहा?

सबसे ज्यादा अपीलिंग हमेशा की तरह स्क्रिप्ट थी. ऐसी बहुत-सी फिल्में ऑफर होती हैं, जिनका चेहरा मैं हो सकती हूं, लेकिन स्क्रिप्ट उतनी अपीलिंग नहीं होती. ‘छतरीवाली’ की स्क्रिप्ट ऐसी लगी, जो हंसी-मजाक में गहरी बात कह जाती है. साथ ही यह महिलाओं की सेहत से जुड़े अहम विषय पर है. हम देखते हैं कि इस पर सबसे ज्यादा कम बातें होती हैं. हम महिलाओं की सेक्स संबंधी समस्याओं पर बात करने से भी झिझकते हैं. उनकी सेहत का ख्याल कैसे रखना है, मां बनने के लिए जरूरी तैयारी क्या होनी चाहिए, गर्भपात कराना कितना खतरनाक है आदि बातों को लेकर कोई फिल्म क्यों नहीं बनती. औरतों ने अपने इस दर्द को कितना नॉर्मल कर लिया है, लेकिन सेक्स एजुकेशन को नॉर्मल आज तक नहीं किया गया है, जो गलत है. यह फिल्म इसी मुद्दे पर बात करती है.

सेक्स एजुकेशन से आपका सामना कब हुआ था?

हमारे स्कूल में 9वीं क्लास के दौरान सेक्स एजुकेशन की क्लास हुई थी. सच कहूं तो उस वक्त मैं भी हंस रही थी. दोस्तों के साथ मिलकर हंस रही थी और शर्म के मारे कोई सवाल नहीं करना चाहते थे. कई वर्षों बाद मुझे यह समझ आया कि यह कितना जरूरी है. शुक्र है कि 2018 के बाद यह हर स्कूल में जरूरी कर दिया गया है. सेक्स एजुकेशन एक जरूरी विषय है.

किस उम्र में सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए?

एक बच्चा 13-14 साल की उम्र मे युवावस्था में होता है और वही सही समय है कि उसको सेक्स एजुकेशन के बारे में जानना जरूरी है. उस वक्त उनको शिक्षित करने का सही समय है. अगर उनको सही जानकारी होगी, तो वे गलत कदम नहीं उठायेंगे.

आपके परिवार में इन मुद्दों पर बातें होती थीं?

देश में, समाज में, परिवार में ‘सेक्स’ पर बात करना आज भी एक टैबू है. मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे पैरेंट ने सही समय पर हर मुद्दे पर मुझसे बात की. जब मैं पांच साल की थी, तब मेरी मां ने मुझसे गुड टच और बैड टच के बारे में बताया था. आठ साल की थी, जब पीरियड के बारे में बातचीत की. ये सब बातें मेरे आसपास पढ़े-लिखे शहरों के लोग नहीं करते थे, लेकिन मेरे परिवार में होता था. जब 9वीं क्लास में सेक्स एजुकेशन की क्लास हुई थी, तो मेरी मां ने उसके बाद उस पर मुझसे बात की थी. मेरी मां ने बताया कि आप क्लास बंक करके पढ़ाई से छुटकारा पा सकती हैं, लेकिन लाइफ में आपको इससे छुटकारा नहीं है, इसलिए इस विषय को आपको समझना ही होगा. पढ़ोगी, समझोगी तो गलती नहीं करोगी.

क्या आपको लगता है कि फिल्में समाज के सोच को बदलती हैं?

मुझे नहीं पता कि ऐसी फिल्में समाज में कितना बदलाव ला पाती हैं, पर एक नयी सोच जरूर देती हैं. फिल्म पैडमैन के बाद लोग पीरियड पर खुल कर बात करने लगे थ. कई महिलाओं ने सैनीटरी पैड को दुकान से पेपर में लपेटकर लेना बंद कर दिया. मुझे लगता है कि एक इंसान की सोच भी बदल जाये, तो समझो फिल्म अपने मकसद में कामयाब हो गयी.

आप आम दर्शकों से क्या कहेंगी?

हम मैसेज कोई सेंसेशन के लिए नहीं दे रहे हैं. हम हैं इसकी वजह. यह हमारी सच्चाई है. यह बायोलॉजी है, जैसे आपका दिल है, वैसे आपका युट्रेस है. उसका भी फंक्शन है. इसको जितना हम साइंस और फैक्ट की तरह पढ़ेंगे, समझेंगे, उतना ही हम अपनी सोच को बदल पायेंगे. आज के पितृसत्तात्मक समाज में हर घर में एक सान्या की जरूरत है, जो बाधाओं को तोड़ आगे बढ़े.

आप इसमें टाइटल रोल में हैं, तो सफलता को लेकर क्या अनुभव करती हैं?

हां, अनुभव काफी अलग होता है. आपकी पूरी क्रिएटिव लिबर्टी होती है. आपके साथ फिल्म की हर छोटी से छोटी बात डिस्कस होती है. एक पोस्टर भी आता है, तो आप इसमें अपना क्रिएटिव इनपुट देते हैं. जब एक फिल्म पूरी तरह से आपके कंधों पर होती है, तो मन उत्साहित हो जाता है. उसके साथ एक जिम्मेदारी भी आती है कि टीम ने आप पर भरोसा किया है.

क्या यह जिम्मेदारी आपको नर्वस भी कर रही है?

नर्वस नहीं कर रही. मुझे लगता है कि अगर मैं जिम्मेदारियों से नर्वस होने लगी, तो इसका साफ मतलब है कि मुझमें काबिलियत नहीं है. सारी जिंदगी यही काम करने के लिए काम किया है और अगर वो मौका मिलने पर आप नर्वस हो जायें, तो सब व्यर्थ है.

फिल्म की ओटीटी रिलीज से कितनी खुश हैं?

हमारी फिल्म शुरू से ही ओटीटी पर ही आनी थी. मेरे कॉन्ट्रैक्ट में यह शुरू से ही ओटीटी फिल्म है, क्योंकि जब आपको आम लोगों तक कोई संदेश पहुंचाना है और आपको पता है कि फिल्म के विषय को लोग एक टैबू मानते हैं, आप आश्वास्त नहीं होते हैं कि लोग थिएटर में आयेंगे या नहीं, तो फिर ओटीटी रिलीज बेस्ट है. आपको पता है कि लोग ओटीटी में इसे जरूर देखेंगे. एक एक्टर के तौर पर हमारे लिए सबसे अहम है दर्शकों तक पहुंचना, फिर माध्यम कोई भी हो.

इंडस्ट्री में अब तक की जर्नी को कैसे देखती हैं?

मुझे लगता है कि जर्नी अभी शुरू हुई है, बहुत सारा काम करना बाकी है. मैं भविष्य में रहती हूं. मैं बीते हुए कल के बारे में नहीं सोचती.

क्या रिजेक्शन को याद करती हैं?

जी हां, क्योंकि वही आपको और अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं. मेरे कई रिश्तेदार थे, जो मेरे अभिनेत्री बनने के फैसले पर सवाल उठाते थे. उन्हें लगता था कि ये कैसे बन सकती है, लेकिन मैं लकी थी कि मेरे पैरेंट बहुत सपोर्टिंव रहे. उन्होंने तो ऐसे रिश्तेदारों से भी दूरी बना ली थी, जो मुझे कमतर महसूस करवाते थे.

वह फिल्म जो आपके लिए टर्निंग पॉइंट रही?

कभी भी कोई एक चीज आपके लिए सबकुछ नहीं बदलती है, लेकिन हां, ‘दे दे प्यार दे’ वो फिल्म थी, जिसके बाद मैं बॉम्बे शिफ्ट हो गयी और मैंने फुल फ्लेज्ड काम करना शुरू किया. इस फिल्म ने मेरे लिए वो प्लेग्राउंड ओपन कर दी थी.

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