Dhaakad Movie Review: बोझिल बनकर रह गयी है कंगना रनौत की फिल्म
कंगना रनौत की फिल्म धाकड़ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. फिल्म के मेकर्स बधाई के पात्र हैं. हालांकि इन सब पहलुओं के बावजूद धाकड़ एक कमजोर फिल्म बनकर रह गयी है.
फिल्म – धाकड़
निर्माता- रजनीश घई
निर्माता- सोहेल मकलाई,दीपक मुकुट
कलाकार : कंगना रनौत, अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शारिब हाशमी, शाश्वत और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग दो
हाई ऑक्टेन एक्शन से सजी स्पाई फिल्म हिंदी सिनेमा का एक प्रसिद्ध जॉनर रही हैं लेकिन अब तक बॉलीवुड के अभिनेता ऐसी फिल्मों का चेहरा होते रहे हैं. धाकड़ में यह मौका अभिनेत्री कंगना रनौत को दिया गया है. इस लिहाज से फिल्म के मेकर्स बधाई के पात्र हैं. फिल्म का एक्शन हॉलीवुड से प्रेरित है तो सिनेमेटोग्राफी की जिम्मेदारी विदेशी फिल्मों के प्रसिद्ध सिनेमेटोग्राफर टेत्सु नागाता ने संभाली हैं. ये सब पहलुओं के बावजूद धाकड़ एक कमजोर फिल्म बनकर रह गयी है क्योंकि फिल्म में कहानी के नाम पर कुछ भी परोस दिया गया है. जिसने पूरी फिल्म को बोझिल बना दिया है.
इस बोझिल फिल्म की कहानी की बात करें तो
कहानी ड्रैगनफ्लाई उर्फ अग्नि (कंगना रनौत) की है. वह एक अंडर कवर एजेंट की है. जिसे महिलाओं और हथियारों के कुख्यात तस्कर राजवीर (अर्जुन रामपाल) के खात्मे का काम दिया गया है. अग्नि उसका किस तरह से उसका खात्मा करेगी. कहानी इतनी सिंपल नहीं है. अग्नि का एक अतीत भी है और उसके साथ कहानी में एक बहुत ही घिसा पिटा सा ट्विस्ट भी है. जो 70 या 80 के दशक की फिल्म की याद दिलाता है. फिल्म में लॉजिक की भी बहुत कमी दिखती है. कंगना जिस तरह से मरकर वापस लौटती है. वह बेहद बचकाना सा लगता है. शाश्वत के किरदार का अर्जुन रामपाल को सपोर्ट करना भी सही ढंग से कहानी में परिभाषित नहीं हो पाया है. फिल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो फिल्म अपने फर्स्ट लुक से ही एक्शन को लेकर चर्चा में थी. एक्शन सीक्वेंस में कंगना की मेहनत दिखती है, लेकिन एक्शन सीक्वेंस में नयापन नहीं है. कई दृश्य दुहराए हुए से लगते हैं. फिल्म उस कसौटी पर भी कुछ खास और अलग दर्शकों को नहीं दे पायी है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जरूर अच्छी है, जो कहानी में भव्यता के साथ साथ रियलिटी का टच भी अनुभव देती है.
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कंगना रनौत की फिल्म पड़ी कमजोर
अभिनय के पहलू पर आए तो कंगना रनौत ने अच्छा काम किया है, लेकिन वह इमोशनल दृश्यों में थोड़ी कमजोर पड़ी हैं. यह बात निराश करती है क्योंकि कंगना बहुत ही बेहतरीन अदाकारा हैं. अर्जुन रामपाल का खलनायक के तौर कोशिश अच्छी रही है. दिव्या दत्ता,शाश्वत और शारिब हाशमी का काम औसत है. सबसे बड़ी खामी स्क्रिप्ट की है. जिसने किसी भी किरदार को स्क्रीन पर निखरने का मौका नहीं दिया है. फिल्म का गीत संगीत भी निराश करता है. फिल्म में सो जा सो जा गाने की लाइन कई बार स्क्रीन पर दोहरायी गयी है, जो इस फिल्म के देखने के अनुभव को बखूबी बयां करती है.