Do Aur Do Pyaar Review: जटिल रिश्तों की इस कहानी की आत्मा है विद्या और प्रतीक का जबरदस्त अभिनय

Do Aur Do Pyaar Review: विद्या बालन, प्रतीक गांधी स्टारर फिल्म दो और दो प्यार आज थियेटर्स में रिलीज हो चुकी है. फिल्म की खास बात है कि शादी में खत्म हो रहे प्यार और प्यार की शादी से बाहर तलाश के संवेदनशील कहानी को बहुत ही हल्के फुल्के अन्दाज में कहा गया है.

By Ashish Lata | April 19, 2024 2:56 PM

फिल्म- दो और दो प्यार
निर्माता- एप्लॉज
निर्देशक- शीर्षा गुहा ठाकुरता
कलाकार- विद्या बालन, प्रतीक गांधी, सेंधिल, इलियाना डिक्रूज और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग- तीन

Do Aur Do Pyaar Review: लार्जर देन लाइफ सिनेमा पिछले कुछ समय से सिनेमा की नई परिभाषा बन चुका है, जिस वजह से रिश्तों की कहानियां बड़े पर्दे से बीते कुछ समय से गायब सी हो गयी थी. खासकर वैवाहिक रिश्तों की जटिल कहानियां लेकिन नवोदित निर्देशिका शीर्षा गुहा ठाकुरता ने अपनी फिल्म दो और दो प्यार के लिए उलझे रिश्तों की इसी कहानी को चुना है. विदेशी फिल्म लवर्स की हिन्दी रिमेक वाली इस फिल्म की खास बात है कि शादी में खत्म हो रहे प्यार और प्यार की शादी से बाहर तलाश के संवेदनशील कहानी को बहुत ही हल्के फुल्के अन्दाज में कहा गया है और विद्या बालन और प्रतीक गांधी का शानदार अभिनय फिल्म को और मनोरंजक बना गया है.

जटिल रिश्तों की है कहानी
डेंटिस्ट काव्या (विद्या बालन) और उसका बिजनेसमैन पति अनी (प्रतीक गांधी) अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं हैं और वह एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स में अपनी अपनी खुशी ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. काव्या, फोटोग्राफर विक्रम (सेंथिल राममूर्ति) के साथ है, जबकि अनी अभिनेत्री नोरा (इलियाना डीक्रूज) से जुड़ा हुआ है. काव्या और अनी के ये दोनों ही अफेयर्स उनके साथ नयी जिंदगी शुरू करना चाहते हैं, इसलिए दोनों ही काव्या और आदि पर शादी को खत्म करने का दबाव डाल रहे हैं. दोनों को अपनी शादी को खत्म करने को लेकर कन्फ्यूजन में हैं. इसी बीच काव्या के दादाजी की मौत हो जाती है और काव्या के साथ अनी को भी उसके घर बैंगलोर जाना पड़ता है. वहां पर मालूम पड़ता है कि दोनों का रिश्ता 15 साल का है. 12 साल की शादी और तीन साल की डेटिंग. दोनों ने एक-दूसरे से लव मैरिज परिवार के खिलाफ जाकर की थी. एक वक्त था जब दोनों एक दूसरे से प्यार में पागल थे. बीते दिनों को सामने पाकर यह पति पत्नी की जोड़ी एक बार फिर से एक दूसरे के करीब आ जाती है. जिसके बाद हालात ऐसे बनते हैं कि यह अपने-अपने एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर्स से दूरी बनाने लगते हैं. क्या काव्या और अनी अपनी शादी को बचा पाएंगे. क्या होगा जब दोनों को एक दूसरे के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के बारे में मालूम पड़ेगा. क्या इनके रिश्ते में फिर से दूरी आ जाएगी. यह सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

फिल्म की खूबियां और खामियां
निर्देशिका शीर्षा की यह पहली फिल्म है और उन्होंने जटिल रिश्तों की कहानी को चुना है. यह फिल्म आधुनिक समय के रिश्तों की जटिलताओं और उनसे जुड़ी दुविधाओं को सामने लाती है, जिसमें प्यार, बेवफाई, विश्वासघात शामिल है, जो शादी जैसे रिश्ते का मजबूत आधार हैं. ख़ास बात है कि उन्होंने किसी भी भाषणबाजी और सही गलत के दो दायरे में कहानी को स्क्रीनप्ले को नहीं रखा है. वे जटिल रिश्ते की इस कहानी को बहुत ही हल्के – फुल्के अन्दाज़ में बयां किया है, जो इस फिल्म को खास बना गया है. यह फिल्म पूरे समय आपको एंगेज करके रखती है. फिल्म में पिता और पुत्री के रिश्ते को भी दर्शाया गया है. खामियों की बात करें तो फिल्म का फर्स्ट हाफ जबरदस्त है. सेकेंड हाफ में कहानी लड़खड़ाती है. फिल्म का क्लाइमेक्स जल्दीबाजी में निपटा दिया गया है. क्या जटिल रिश्ते इतनी आसानी से खत्म हो जाते हैं और सबकुछ सामान्य हो जाता है. फिल्म में विक्रम और नोरा की बैकस्टारी को भी जगह नहीं दी गयी है. काव्या और आदि के एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर्स के साथ जुड़ने की बैक स्टोरी को फिल्म में रखने की जरूरत थी. डायलॉग की बात करें तो यह भारी भरकम नहीं है, लेकिन फिल्म के विषय के साथ न्याय करते हुए गहरा प्रभाव छोड़ते हैं. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी अच्छी है, तो फिल्म का गीत संगीत कहानी में अलग रंग जोड़ता है खासकर बिन तेरे सनम गीत का इस्तेमाल.

फिल्म की कास्टिंग है खास
इस फिल्म की कास्टिंग इस फिल्म की यूएसपी है. विद्या बालन एक बार फिर से अपनी भूमिका को पूरी शिद्दत के साथ निभा गयी हैं. वह हंसाती हैं और इमोशनल सीन भी वह भावुक भी कर जाती हैं. अपने असहज किरदार को उन्होंने बेहद सहजता के साथ जिया है. प्रतीक गांधी एक मंझे हुए कलाकार हैं ,यह बात वे इस फिल्म से साबित करते हैं. उन्होंने विद्या का बखूबी साथ दिया है . सेंधिल अपनी टूटी फूटी हिन्दी से मुस्कान बिखेरते हैं, तो इलियाना को पर्दे पर काफ़ी समय बाद देखना अच्छा रहा. वह अपने किरदार को मासूमियत और ईर्ष्या दोनों ही तरह से निभाया है. फिल्म में विद्या के परिवार की कास्टिंग की भी तारीफ़ करनी होगी. हर किरदार पूरी तरह से अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय करता है.

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