फ़िल्म : दुर्गामती द मिथ
निर्देशक : जी अशोक
प्लेटफार्म : अमेज़न प्राइम
कलाकार : भूमि पेंडेकर, अरशद वारसी,करण कपाड़िया,माही गिल,जिशु सेनगुप्ता
रेटिंग : डेढ़
साउथ की हिंदी रिमेक फ़िल्म ‘लक्ष्मी’ के बाद अब निर्माता के तौर पर अक्षय कुमार ‘दुर्गामती द मिथ’ लेकर आए हैं. दुर्गामती अनुष्का शेट्टी की तेलुगु फ़िल्म भागमती का हिंदी रिमेक है. लक्ष्मी की तरह यहां भी निर्देशन की जिम्मेदारी साउथ फ़िल्म के ही मूल निर्देशक ने संभाली है लेकिन एक बार फिर मामला बोझिल सा बन गया है. फ़िल्म पूरी तरह से बिखरी हुई जान पड़ती हैं.कुछ ही दृश्य ही हैं जो एंटरटेनमेंट की थोड़ी सी राहत दे पाते हैं वरना यह हॉरर और थ्रिलर फिल्म ना तो डराती है और ना ही रोमांच पैदा करती है.
फ़िल्म की बोझिल कहानी पर आते हैं तो एक राज्य के जल संसाधन मंत्री ईश्वर( अरशद वारसी) के बढ़ते कद को देखते हुए मुख्यमंत्री और उसके वफादार ईश्वर को भ्रष्टाचार में लिप्त घोषित करने के लिए सीबीआई की मदद लेते हैं. सीबीआई ईश्वर की दस सालों तक सचिव रही चंचल चौहान से पूछताछ कर ईश्वर का पर्दाफाश करने की योजना बनाते हैं लेकिन कहानी का पेंच है कि आईएएस अफसर चंचल चौहान ( भूमि पेंडेकर) ने अपने मंगेतर ( करण कपाड़िया) की हत्या के जुर्म में जेल में बंद है.
ऐसे में सीबीआई ऑफिसर्स मीडिया और लोगों से से दूर चंचल को पूछताछ करने के लिए एक भुतहा हवेली में लेकर जाते हैं. जहां मालूम पड़ता है कि दुर्गामती की आत्मा अभी भी हवेली में भटकती है. दुर्गामती की आत्मा चंचल पर हावी हो जाती है उसके बाद किस तरह से घटनाक्रम बदलते हैं और अतीत की एक कहानी सामने आती है जिसमें 1800 करोड़ का घोटाला, हत्या की साज़िश जैसे राज सामने आ जाते हैं. यही आगे की कहानी है.
फ़िल्म का घटनाक्रम बहुत ही प्रेडिक्टेबल है जिससे समझ आने लगता है कि आगे क्या होगा. फ़िल्म की कहानी में राजनीति में वंशवाद, भ्रष्टाचार, हिंदुत्व, मंदिर ,जल संकट,इन मुद्दों को भी डाला गया है लेकिन फ़िल्म किसी भी मुद्दे के साथ न्याय नहीं करती है. फ़िल्म की कहानी को और ज़्यादा बोझिल उसके संवाद बना देते हैं. माही गिल की बंगाली और हिंदी मिक्स भाषा चुभती है. फ़िल्म के संवाद भाषणबाजी ज़्यादा लगते हैं.फ़िल्म का क्लाइमेक्स अति नाटकीय है. फ़िल्म के निर्देशक साउथ के हैं तो फ़िल्म में उसकी छाप भी हावी है जो बात हिंदी दर्शकों को अखर सकती है.
अभिनय की बात करें तो भूमि पेंडनेकर की करियर की यह सबसे खराब फ़िल्म कही जा सकती है. वे अपने लुक और अभिनय दोनों से ही प्रभावित करने में नाकामयाब रही हैं. अरशद वारसी औसत रहे हैं. करण कपाड़िया की एक्टिंग एक बार फिर बेजान रही है. जिशु सेनगुप्ता और बाकी के किरदारों को करने को कुछ खास नहीं था.
फ़िल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. गीत संगीत पक्ष औसत है. बैकग्राउंड स्कोर कहानी, निर्देशन और अभिनय पक्ष की तरह ही कमज़ोर रह गया है जो किसी भी हॉरर फिल्म की सबसे बड़ी जरूरत होती है. कुलमिलाकर यह रिवेंज ड्रामा पूरी तरह से निराश करता है.
उर्मिला कोरी