अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए जाने जाने वाले अभिनेता संजय मिश्रा जल्द ही ओटीटी प्लेटफार्म ज़ी 5 की फ़िल्म 36 फार्महाउस में नज़र आएंगे.यह फ़िल्म सुभाष घई प्रोडक्शन हाउस मुक्ता आर्ट्स की ओटीटी प्लेटफार्म में शुरुआत है.इस फ़िल्म,कैरियर और जिंदगी पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
36 फार्महाउस में एक एक्टर के तौर पर आपको क्या खास अपील कर गया
एक एक्टर का सपना होता है कि अपने दौर के बेहतरीन निर्देशक और लेखक के साथ काम करें. सुभाष घई एक ऐसे नाम हैं. जिनकी फिल्में हमने अपने समय में देखी हुई है तो इस फ़िल्म को हां कहने की यह सबसे बड़ी वजह थी.सुभाष घई की फ़िल्म में उनकी लिखी स्क्रिप्ट पर आप परफॉर्म कर रहे हैं.वो सेट पर हैं. वो जो सुभाष घई स्कूल ऑफ एक्टिंग है.वो सीखने में बहुत मज़ा आया. वो कहते कि संजय जी इसको ऐसे कर देंगे तो मज़ा ही आ जाएगा. हर एक्टर को ऐसे काम करने में मज़ा आता है.थोड़ा चुनौतीपूर्ण लगता है .सुभाष जी खुद भी एक्टर ही बनने आए थे.अपने एफटीआईआई से उन्होंने कोर्स भी किया था.
आप इससे पहले सुभाष घई की फ़िल्म राजकुमार और अपना सपना मनी मनी का हिस्सा रहे हैं क्या बदलाव आप देखते हैं
अब कंटेंट को लेकर ज़्यादा काम होता है. यह बहुत अच्छी बात है कि दर्शकों ने निर्माता निर्देशकों के सामने यह बात साफ तौर पर रख दी है कि बॉस हमें अच्छा कंटेंट दीजिए. जिससे कहानियों में बड़ा बदलाव आया है.यह मुक्ता आर्ट्स ही नहीं हर प्रोडक्शन हाउस में बदलाव आया है
यह फ़िल्म सुभाष घई के प्रोडक्शन हाउस मुक्ता आर्ट्स की ओटीटी डेब्यू यह फ़िल्म है लेकिन इस बात की चर्चा ज़्यादा है कि आप इस फ़िल्म का हिस्सा हैं.आप अपनी सफलता को किस तरह देखते हैं
सुभाष घई ने हिंदी फिल्मों में अपने दर्शक बनाए हैं.हीरो फ़िल्म जब उनकी देखी थी तो महीने भर तक उसका म्यूजिक ही दिमाग से नहीं जा रहा था .अब आप इस काबिल हो गए हैं कि सुभाष घई आपको फ़ोन करते हैं और कहते हैं कि संजय जी आपको दिमाग में रखकर एक कहानी लिखी है . इसको आप अपनी सफलता कह सकते हैं. फ़िल्म आएगी. उसका क्या होगा.वो तब देखा जाएगा लेकिन जब ऐसा महान निर्देशक आपको ये बोले कि आपके लिए किरदार नहीं बल्कि आपको ध्यान में रखकर फ़िल्म की कहानी लिखी है तो बहुत ज़्यादा संतुष्टि होती है.
आपने संघर्ष का एक लंबा दौर देखा है क्या संघर्ष के दौरान सुभाष घई की किसी फिल्म के लिए कोशिश की थी
जब मैं बंबई आया था.उस वक़्त सौदागर फ़िल्म बन रही थी.एक दोस्त थे उनसे कहा कि यार सुभाष घई से मिलवा दो.उसने कहा बम्बई आए एक महीना नहीं हुआ इनको सुभाष घई से मिलना है .मैं दस साल मुम्बई में बिताने के बाद उनकी फिल्म का छोटा सा हिस्सा बन पाया हूं.सुभाष घई बहुत बड़ा नाम थे.उनतक पहुंचना बड़ी बात होती थी. हमको कोई सटने भी नहीं देता सुभाष जी से. इतनी बड़ा ऑरा था तो हमने सोच लिया था कि भाई हम इस पहाड़ पर नहीं चढ़ पाएंगे लेकिन पहाड़ खुद झुककर कह रहा है कि तुम मेरे पास आओ .
फ़िल्म के ट्रेलर में आप कुक बनें हुए निजी जिंदगी में भी आप बहुत अच्छे कुक हैं.ऑफ स्क्रीन मास्टर शेफ की कितनी भूमिका निभायी?
इस फ़िल्म में बहुत ज़्यादा मेरा काम था तो ज़्यादा नहीं कर पाया.हां मैं अपना खाना खुद ही बनाता था. इस बार पूरी यूनिट को खाने की जिम्मेदारी मेरी को एक्टर अश्विनी कलसेकर ने ले ली थी. वो हर दिन कुछ ना कुछ बनाकर खिलाती थी.
फ़िल्म का शीर्षक 36 फार्महाउस है आमतौर एक्टर्स रिलैक्स करने के लिए फार्महाउस जाते हैं आप खुद को कैसे रिलैक्स करते हैं
एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लखनऊ में हूं.यहां भी एक फार्महाउस में ही हूं.फार्महाउस का मतलब होता है किसान का घर.किसानी की जगह. मैं भीड़भाड़ से दूर प्रकृति के आसपास रहना.अपना खाना बनाना ये सब बहुत एन्जॉय करता हूं.यही चीज़ें मुझे रिलैक्स करती हैं.सरसों के फूल देखकर मुझे खुशी मिल जाती है.
अपनी सफलता को किस तरह देखते हैं.
मैं जो हूं.वो रहूं. यही कोशिश रहती है.आप काम करके हट जाइए क्योंकि उसका हैंगओवर कहाँ तक आप लीजिएगा.सर आप महान हैं.आप फलाना हैं.मैं इन चीजों में नहीं फंसता हूं.
आप कइयों की प्रेरणा हैं आपकी प्रेरणा कौन हैं
कोई ज़रूरी नहीं है कि महान और सफल आदमी ही प्रेरणा बनें.मैं राह चलते लोगों और प्रकृति से भी प्रेरणा ले लेता हूं
कोरोना की तीसरी लहर की वजह से फिल्मों की शूटिंग कितनी प्रभावित हुई है
जो जनवरी में शूट होने वाली थी वो फरवरी में चली गयी हैं.फरवरी में भी सब ठीक हो जाएगा ये कहा नहीं जा सकता.एक गाना आता था ना सर झुकाकर जिओ ना मुंह छिपाकर. आज तो उल्टा हो रहा है.सिर झुकाए मुंह छिपाए हुए चले जा रहे हैं. बगल वाला खांस दें या आप छींक भी दें तो परेशानी हो जाती है.अजीब सी दुनिया में जी रहे हैं.भगवान करें जल्द से जल्द से ये खत्म हो.
साउथ सिनेमा की कामयाबी बॉलीवुड के लिए खतरा कहा जा रहा है
चीज़ जो अच्छी आ रही है.लोग उसे देखेंगे और ये अच्छी बात है कि पंजाब में लोग साउथ की फिल्में देख रहे हैं.कितनी अच्छी बात है कि हम एक दूसरे के इमोशन से जुड़े हुए हैं.एक बड़े भारत परिपेक्ष्य में ये अच्छी बात है.बॉलीवुड के लिए कोई खतरे की बात नहीं है.जो अच्छी चीज है वो अच्छी है.खतरा उन्हें लगेगा जो खराब चीज़ बनाकर सोचते हैं कि कोई हमसे ऊपर ना चला जाए. इससे अच्छा करने की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी.
आनेवाले प्रोजेक्ट्स
काफी बड़ी बड़ी फिल्में और वेब सीरीज हैं. ओटीटी पर डेथ ऑन संडे, ऑल्ट बालाजी की एक वेब सीरीज,थिएटर में भूल भुलैया 2,सर्कस के अलावा तीन और बड़ी फिल्में हैं लेकिन उनका नाम नहीं बता पाऊंगा. इस साल इतने प्रोजेक्ट्स में दिखूंगा कि आप देखते देखते बोर हो जाएंगे.