Haseen Dillruba movie review
फ़िल्म – हसीन दिलरुबा
निर्माता- आनंद एल राय,हिमांशु
निर्देशक- वेनियल मैथ्यू
कलाकार- तापसी पन्नू, विक्रांत मेस्सी, हर्षवर्द्धन राणे, दयाशंकर पांडे, अभिजीत और अन्य
प्लेटफार्म- नेटफ्लिक्स
रेटिंग- ढाई
हसीन दिलरुबा अपने ट्रेलर में एक दिलचस्प थ्रिलर नॉवेल सी लग रही थी. फ़िल्म की अभिनेत्री को थ्रिलर नॉवेल्स के लेखक दिनेश पंडित की बड़ी वाली फैन भी बताया गया था. लगा था ज़बरदस्त रोमांच से भरपूर फ़िल्म देखने को मिलने वाली है लेकिन फ़िल्म के कमजोर स्क्रीनप्ले ने फ़िल्म से रोमांच ही गायब कर दिया है. जो भी रोमांच था वो बस ट्रेलर तक ही था. कुलमिलाकर यह दिलरुबा हसीन नहीं औसत बनकर रह गयी है.
फ़िल्म की कहानी की शुरुआत एक धमाके से होती है. मालूम होता है गैस ब्लास्ट की वजह से हुए इस धमाके में रिशु (विक्रांत मैसी) की मौत हो गयी है. पुलिस को ये दुर्घटना नहीं हत्या की साजिश लगती है और शक की सुई पत्नी रानी कश्यप( तापसी पन्नू)पर आ अटकती है. पुलिस जांच में जुटती है. कहानी छह महीने पीछे चली जाती है. पता चलता है कि दिल्ली की रानी की अरेंज्ड मैरिज हरिद्वार के ज्वालापुर के इंजीनियर रिशु से हुई है.
शादी के कुछ दिनों में ही दोनों को मालूम पड़ जाता है कि दोनों को जो अपने लाइफ पार्टनर्स से उम्मीदें थी वो उनमें नहीं हैं. दूरियां बढ़ती हैं इस कदर कि रिशु के मौसेरे भाई नील (हर्षवर्द्धन)से रानी की नजदीकियां बढ़ जाती हैं जो फंतासी अपने पार्टनर को लेकर रानी के मन में थी वो सब नील में है लेकिन फिर कहानी एक मोड़ लेती और रानी रिशु एक उलझे रिश्ते में खुद को पाते हैं जिन्हें वो संवार ही रहे थे कि ये धमाका हो जाता है .
कहानी वर्तमान में लौट आती है. पुलिस मान लेती है कि रानी ने अपने आशिक नील के साथ मिलकर रिशु की हत्या की है लेकिन पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है क्या पुलिस इस हत्या की गुत्थी को सुलझा पाएगी. क्या रानी ने अपने पति रिशु की हत्या की है. आगे की फ़िल्म उसी पर है. प्यार, धोखा, जुनून, जिद की यह कहानी शुरुआत में रियल सी लगती है लेकिन फिर शादीशुदा जिंदगियों की आम परेशानियों के बीच जो खूनी ट्विस्ट डाला गया है. वह यकीन से परे लगता है. इसकी एक अहम वजह ये है कि रानी,रिशु,नील और पुलिस जांच इनके बीच एक मजबूत स्क्रीनप्ले की ज़रूरत थी जो गायब है.
यह एक मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्म है लेकिन कमज़ोर स्क्रीनप्ले की वजह से इस मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्म में कोई मिस्ट्री ही नहीं है. फ़िल्म के जिस सस्पेंस को सवा दो घंटे बाद जाहिर किया गया है वो फ़िल्म के शुरुआत आधे घंटे के बाद ही समझ आ जाता है. कलाकारों का अभिनय और संवाद फ़िल्म से बांधे रखता है.
अभिनय की बात करें तो विक्रांत मैसी ने तीनों कलाकारों में सबसे ज़्यादा रंग जमाया है. जैसे जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है उनके अभिनय का ग्राफ भी आगे बढ़ता जाता है. तापसी पन्नू भी अपनी भूमिका में जंची हैं. उन्होंने अपने किरदार के अल्हड़पन और परिपक्वता दोनों को बखूबी जीया है. हर्षवर्द्धन राणे को फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था लेकिन वे अपनी भूमिका में छाप छोड़ने में कामयाब हुए है. विक्रांत की मां के किरदार में यामिनीदास के परफॉरमेंस ने दिल जीत लिया है यह कहना गलत ना होगा. बाकी के कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.
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फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. फ़िल्म के संवाद मजेदार बन पड़े हैं. पागलपन की हद से ना गुज़रे तो प्यार कैसा …होश में तो बस रिश्ते निभाये जाते हैं. रानी कश्यप का किरदार लेखक दिनेश पंडित का फैन है और दिनेश पंडित अदृश्य होकर भी इस कहानी के अहम पात्र हैं. दिनेश के किताबों की पंक्तियां फ़िल्म के संवाद को खास बनाती हैं. फ़िल्म का लोकेशन अच्छा है. मिडिल क्लास रहन सहन का अच्छा माहौल फ़िल्म में बनाया गया है.