ऑस्कर विनिंग फिल्म ड्यून के विजुअल इफेक्ट्स से जुड़े हैं भारतीय नमित मल्होत्रा,गैरेज में शुरू किया था ऑफिस

इस बार के ऑस्कर अवार्ड्स में साइंस फिक्शन फिल्म ड्यून सबसे ज़्यादा ट्रॉफियां अपने नाम कर गयी है. उनमें से एक विजुवल इफेक्ट्स का ऑस्कर अवार्ड्स भी शामिल है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2022 7:24 PM
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इस बार के ऑस्कर अवार्ड्स में साइंस फिक्शन फिल्म ड्यून सबसे ज़्यादा ट्रॉफियां अपने नाम कर गयी है. उनमें से एक विजुवल इफेक्ट्स का ऑस्कर अवार्ड्स भी शामिल है. खास बात है कि फिल्म की शानदार वीएफएक्स के पीछे भारतीय नमित मल्होत्रा का हाथ है. उनकी कम्पनी डीएनईजी ने इस फिल्म की विजुअल इफेक्ट्स की जिम्मेदारी संभाली थी. इस कम्पनी के सीईओ नामित मल्होत्रा की उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

एक और ऑस्कर आपकी कम्पनी के साथ जुड़ गया है ड्यून के साथ इस कामयाबी को कितना खास पाते हैं ?

ड्यून ने जो स्टैण्डर्ड विजुअल इफेक्ट्स में अचीव किया है वो पिछले दस सालों में किसी फिल्म ने नहीं किया था.जितनी मेहनत और लगन से हमने काम किया था उसका आज फल मिल गया. इतना बड़ा अवार्ड है खुशी तो हमेशा होती है . जब भी आप इसको जीतते हो वैसे इस बार का नॉमिनेशन भी हमारे लिए बहुत खास था.चालीस और पचास सालों में यह पहली बार हुआ था कि जेम्स बांड फिल्म नो टाइम टू डाय को नॉमिनेशन मिला था और यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है कि क्योंकि उस फिल्म की वीएफएक्स की जिम्मेदारी भी हमने निभायी थी.जेम्स बांड की फिल्मों की कोशिश होती है कि वो दर्शकों तक ऐसे पहुंचे जैसे किसी को लगे ही नहीं कि उन्होंने किसी ट्रिक या इफेक्ट्स को डाला है.सबकुछ नार्मल लगे.उसे नार्मल दिखाना खास होता है.

आपने अंधेरी के एक गैरेज से अपने काम की शुरुआत की थी आज हॉलीवुड का आप परिचित चेहरा बन चुके हैं कैसे देखते हैं इस पूरी जर्नी को ? क्या रहा था संघर्ष

2006 -2007 में जब मैं अमेरिका गया था तो कोई इस वक़्त भारतीयों के साथ काम करने को राजी नहीं था क्योंकि हॉलीवुड में भारतीयों का कोई नाम नहीं था. 500 हिंदी फिल्में करने के बाद वहां किसी को बताना पड़े कि प्राइम फ़ोकस क्या है नमित मल्होत्रा कौन है तो वो बुरा लगता है. कमाल की बात ये थी कि मेरे पांच सौ फिल्मों का अनुभव उनके लिए कोई मायने भी नहीं रखता था. मैंने जीरो से शुरुआत की. हर दिन वहां लोगों को समझाना पड़ता था. भाई मैं आपका काम इंडिया से करके लाऊंगा वो भी कम पैसों में फिर भी वे राजी नहीं होते थे क्योंकि इंडियंस के साथ काम कभी उन्होंने किया नहीं है क्या सिक्योरिटी है ? गारंटी क्या है. हर कदम पर हमें लोगों को विश्वास दिलाना पड़ा.

अब हॉलीवुड के लोगों के नज़रिए में कितना फर्क पाते हैं

इतनी बड़ी बड़ी स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म भारत में आ चुकी है इससे साफ है कि अब विदेशियों को भी अपने कंटेंट के लिए हिंदी दर्शक चाहिए. हर बड़ी फिल्म का हिस्सा भारतीय एक्टर तो कभी टेक्निशियंस बनते ही हैंलेकिन अभी भी जब वह बड़े विजन वाली फिल्म बनाने का फैसला करते हैं .वो ये नहीं सोचते कि इंडिया जाकर इंडियन टेक्निशियंस के साथ मिलकर ये फ़िल्म बनाऊंगा.वो मिशन अभी पूरा नहीं हुआ है. उस पर काम करना बाकी है ताकि हॉलीवुड ये सोचने को मजबूर हो .

आपके पिता नरेश मल्होत्रा प्रोड्यूसर थे आप वीएफएक्स से कैसे जुड़े

19 साल की उम्र में मैंने शुरू किया.मेरा मन था फ़िल्म डायरेक्टर बनने का था.1995 की बात है .मेरे डैड ने बहुत प्यार से समझाया कि कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी को लेकर कुछ करो. हिंदी इंडस्ट्री में एक फाउंडेशन बनाओ. बेस मजबूत करो.उसके बाद फिल्में बनाओ. जो भी मन आए करो. मैंने डैड की मान कर अपने गैरेज को आफिस बनाया और शुरुआत की.10 सालों में प्राइम फोकस का नाम बॉलीवुड इंडस्ट्री में हर कोई जानने लगा था.हमने कई बड़े निर्देशकों के साथ उनकी फिल्मों में काम किया. उसके बाद वाय टू के का दौर आया. उस वक़्त अमेरिकन्स भी भारतीय आईआईटीयन्स का लोहा मानने लगे थे मुझे लगा कि हमारी बॉलीवुड़ 100 साल की इंडस्ट्री है क्यों नहीं हॉलीवुड और उसमें एक ब्रिज बन सकता है. जिस तरह से एक क्रिकेटर कई खिताब जीतने के बाद सोचता है कि उसे विश्व विजेता टीम का भी हिस्सा बनना चाहिए तो मैने भी वही सोचा.उस वक़्त मेरी उम्र 30 साल की थी .मैंने सोचा कि अभी नहीं तो कब रिस्क लेंगे तो अपने जोश के साथ सपने को पूरा करने में जुट गया.

बॉलीवुड में हॉलीवुड स्तर वाली वीएफएक्स की फिल्में नहीं बनती है ,विजन की कमी है या फंड्स की

हम फिल्में वो बनाते हैं जो दर्शकों को पसंद आए. हमने शोले बनायी थी उस वक़्त हॉलीवुड स्टार वॉर बना रहा था. शोले के बाद हमने 25 से 30 साल तक सिर्फ लव स्टोरी और सोशल फिल्में ही बनायी.हॉलीवुड ने स्टार वॉर की तरह 100 फिल्में बनायी तो उनका विजन और स्टाइल इस तरह की फिल्मों में सहज हुआ हमारा अलग तरह की फिल्मों में हुआ. अच्छी बात है कि अब बाहुबली और आरआरआर जैसी फिल्में अब बन रही हैं. जो भारत में वीएफएक्स को एक अलग ही लेवल पर ले जा रही हैं

साउथ सिनेमा हमेशा से बॉलीवुड के मुकाबले टेक्नोलॉजी में ज़्यादा समृद्ध रहा है

ये पूरी दुनिया में सिर्फ हमारे यहां ही होता है .जब फिल्मों को राज्य के स्तर पर बांट देते हैं. हॉलीवुड में ऐसा नहीं होता है .जर्मनी,फ्रांस ,लंदन सभी में एक फ़िल्म चलती है. वो फ़िल्म का बंटवारा नहीं करते हैं. हमारी भी कोशिश है कि हम एक जुट होकर ऐसी फिल्म बनाए जो पूरे हिंदुस्तान को अच्छी लगी . बाहुबली, आरआरआर उसी कोशिश का नतीजा है.इसका आगे का हिस्सा रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की ब्रह्मास्त्र बनने वाली है .ब्रह्मात्र का मैं एसोसिएट प्रोड्यूसर भी हूं.

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