Loading election data...

सुपरस्टार्स को दर्शक सोशल मीडिया में देख रहे हैं, थिएटर में अच्छी कहानी ही देखने जाएंगे- इंद्रजीत

निर्देशक इंद्रजीत नट्टोजी ओटीटी में अपनी शुरुआत फ़िल्म आफत ए इश्क़ से कर रहे हैं. उनकी यह फ़िल्म ज़ी फाइव पर 29 अक्टूबर को दस्तक देगी. उनकी इस फ़िल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी की बातचीत...

By कोरी | October 28, 2021 2:07 PM

टेलीविजन, विज्ञापन फिल्मों और फिल्मों में अपनी एक खास पहचान रखने वाले लेखक और निर्देशक इंद्रजीत नट्टोजी ओटीटी में अपनी शुरुआत फ़िल्म आफत ए इश्क़ से कर रहे हैं. उनकी यह फ़िल्म ज़ी फाइव पर 29 अक्टूबर को दस्तक देगी. उनकी इस फ़िल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी की बातचीत…

फ़िल्म आफत ए इश्क़ की कहानी किस तरह से आपसे जुड़ी और आपने उसका निर्देशन किया

ज़ी स्टूडियो के साथ मेरी एक फ़िल्म को लेकर मीटिंग था. मेरी खुद की फ़िल्म का नरेशन था. उनके पास हंगेरियन फिल्म लीसा के राइट्स थे. उन्होंने मुझे उस फिल्म के बारे में बताया और कहा कि इसका रीमेक बनाते हैं. मैंने फिल्म देखी. मुझे फ़िल्म पसंद आयी.फिल्म के अनुसार हम आसानी से गोवा में बेस्ड क्रिस्चियन परिवार के तौर पर उसे दर्शा सकते थे लेकिन मैं पूरी फिल्म को बदलकर छोटे शहर के ढांचे में फिट करना चाहता था. छोटे शहर की तमाम खासियतों को मिलाकर मैं कहानी को नए ढंग से कहना चाहता था. अपनी फिल्म को रीमेक के बजाय मैं अडॉप्टेशन कहूंगा.

छोटे शहर इनदिनों दर्शक हो या फ़िल्ममेकर सभी की पहली पसंद फिल्मों में बन गए हैं इसके पीछे वजह क्या आप कहेंगे

हम सभी छोटे शहर से ही आते हैं. हमारी जो सोच है. जो ह्यूमर है. इमोशन है. सब वहीँ से आता है. बड़े शहर का क्या हो सकता है. ऑनलाइन रहना. पार्टी करना बस यही सब रहता है. छोटा शहर एक महासागर है. जिसमें अलग अलग ह्यूमर और किरदार होते हैं. यही वजह है कि हम फिल्म को लखनऊ और बनारस में शूट करना चाहते थे. हमने बहुत रेकी और रिसर्च किया था लेकिन पेंडेमिक की वजह से हम बाहर शूट नहीं कर सकते हैं इसलिए हमें मुंबई के नाशिक में ही शूट करना पड़ा लेकिन हमने इतनी रेकी की थी तो नाशिक को ही लखनऊ और बनारस बना दिया.

क्या आफत ए इश्क़ शुरू से ही ओटीटी के लिए ही थी

इस फिल्म का जो कैनवास है. वो बहुत ही थिएट्रिकल है .ओटीटी और थिएटर में फर्क होता है. ओटीटी में आपके पास चॉइस है .आप कहानी को आगे पीछे बढ़ा सकते हैं. थिएटर में आप एक अलग माइंडसेट के साथ जाते हैं. पेंडेमिक के बाद चीज़ें बदल गयी और हमें फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करना पड़ा. निजी तौर पर कहूं तो मैं थिएटर में फ़िल्में देखने का शौक़ीन हूँ लेकिन ओटीटी आपको अलग अलग कहानियों को अलग तरह से कहने का मौक़ा दे रहा है. जो मुझ जैसे फिल्मकारों के लिए बहुत अच्छी बात है.जो कुछ नया करना चाहते हैं.

आपकी इस फ़िल्म में अभिनेत्री का किरदार काफी रोचक है क्या नेहा शर्मा हमेशा से पहली पसंद थी

इस फिल्म की नायिका लल्लो है. ये बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड किरदार है लेकिन वो लोगों को बहुत पसंद आनेवाली है. मैं काफी समय से लल्लो के किरदार के लिए अभिनेत्री को ढूंढ रहा था. मैं अपनी फिल्म के लिए किसी स्टार अभिनेत्री को नहीं ढूंढ रहा था क्यूंकि मैं नहीं चाहता था कि उसकी पर्सनालिटी आगे आए. नेहा सोशल मीडिया में पॉपुलर है इसके साथ ही वो इस किरदार के लिए नयी भी है. नेहा ने अपने लुक के साथ साथ किरदार की बोली और बॉडी लैंग्वेज सभी पर बहुत काम किया है.

पेंडेमिक ने फिल्मों की शूटिंग में क्या बदलाव लाया है

सबके चेहरों पर मास्क होते हैं. एक डर भी रहता है लेकिन एक बहुत ही अच्छा बदलाव ये आया है कि एक फिल्म की यूनिट अब तीन चार महीने के लिए फॅमिली बन जाती है. किसी भी बाहर के लोगों से आप मिल जुलकर नहीं सकते हैं तो पूरी यूनिट के साथ एक अलग ही बॉन्डिंग हो जाती है .जिससे सेट पर एक अलग ही एनर्जी दिखती है .

ऐसी बातें सुनने में आ रही है कि अब थिएटर में बड़े स्टार्स की बड़ी फिल्में ही फिल्में लगेंगी और छोटी फिल्में ओटीटी पर रिलीज होंगी

भविष्य में क्या होगा ये बताना मुश्किल है.ये बात मानूंगा कि अभी जो हालात हैं. लोगों में एक डर तो है तो ऐसे में उनके चहेते स्टार्स ही उन्हें फिर से थिएटर में फ़िल्म देखने ला सकते हैं क्योंकि ओटीटी में लोग अपने घर के सुरक्षित माहौल में एंटरटेनमेंट का लुत्फ ले रहे हैं लेकिन सिर्फ सुपरस्टार्स की ही फिल्में थिएटर में रिलीज होंगी.ये मुश्किल है .अपने चहेते स्टार्स को लोग सोशल मीडिया पर देख ही रहे हैं.वे थिएटर में अच्छी कहानी देखने आते हैं तो अच्छी कहानी हमेशा थिएटर की ज़रूरत रहेगी.

आपकी पिछली फिल्म आगे से राइट साल 2009 में आयी थी उसके बाद इतना अंतराल होने की कोई खास वजह

मुझे लगता है कि फिल्ममेकिंग शादी की तरह ही है. चलेगी या नहीं चलेगी कुछ पता नहीं होता है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उस वक़्त ओटीटी तो था नहीं सिर्फ थिएटर के लिए ही फिल्में बनती थी और मेरी फिल्म ने टिकट खिड़की पर झंडे नहीं गाड़े थे तो मैंने अपने क्राफ्ट की तरफ वापस लौटने का फैसला किया. मैं एनआईडी से हूं और वहाँ अलग अलग तरह से अपनी कहानी को कहने सीखाया जाता है तो मैंने एनिमेशन,पेंटिंग ,आर्ट इंस्टालेशन के साथ साथ विज्ञापन के ज़रिये अपनी कहानी को कहा है. बॉलीवुड में बड़ा डायरेक्टर बनकर ही अपनी कहानी कहना है. मेरे साथ ऐसा नहीं था. मैं बस अपनी कहानी कहना चाहता हूँ तो एक के बाद एक प्रोजेक्ट से जुड़ता गया और वक़्त गुज़रता चला गया पता भी नहीं चला. मुझे लगता है कि इन सालों में एक आर्टिस्ट और फिल्मकार के तौर पर मेरा क्राफ्ट विकसित हुआ है तो ये दस साल सेल्फ ट्रेनिंग प्रोग्राम था.

आनेवाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं

एक वेब सीरीज को लेकर बातचीत चल रही है और मेरी तीसरी फिल्म की स्क्रिप्ट भी रेडी है. एक आर्ट इंस्टॉलेशन का काम भी चल रहा है

Next Article

Exit mobile version