Bihar: लेखक दिलीप झा 55 से अधिक टीवी शोज और फिल्म धोनी का रहे हैं हिस्सा..बिहार से है खास कनेक्शन
बिहार के मधुबनी के रहनेवाले दिलीप झा इंडस्ट्री में लेखक के साथ -साथ निर्माता के तौर पर भी सक्रिय हैं .इस इंटरव्यू में उन्होंने निर्देशन से जुड़े अपने आगामी प्रोजेक्ट के बारे में भी बताया है.
Bihar: महानायक अमिताभ बच्चन ने एक बार अपने ब्लॉग में लिखा था कि फिल्मों के असली नायक लेखक होते हैं. बिहार के लेखक दिलीप झा भी असल नायकों की इसी फेहरिस्त में आते हैं. उनका नाम टीवी शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ से लेकर 55 से अधिक टीवी शोज से जुड़ा है. वे फिल्म ‘एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’ के लेखन टीम का भी हिस्सा थे. उनका हालिया ओटीटी शो ‘पहला प्यार’ इन दिनों सोनी लिव पर स्ट्रीम कर रहा है. उनके इस शो, बिहार के मधुबनी से जुड़ाव सहित दूसरे पहलुओं पर हुई उर्मिला कोरी की बातचीत के प्रमुख अंश.
ओटीटी शो पहला प्यार की कहानी को पटना से जोड़ने की वजह क्या खुद आपका पटना से जुड़ाव है ?
(हंसते हुए )मैं मधुबनी से हूं. हालांकि,मैं पटना को भी बहुत करीब से जानता हूं. वैसे इस शो की बात करूं, तो मुझे एक छोटे शहर की कहानी बतानी थी. यह स्कूल बेस्ड रोमांस अगर मैं बड़े शहर में दिखाता, तो उसमें वह इनोसेंस नहीं दिख पाता. मुझे पता है कि हमारी फिल्मों में पटना को ज्यादातर गलत वजहों से ही दिखाया गया है, लेकिन अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो उस शहर में एक इनोसेंस है,जो मुझे बहुत पसंद है. साथ ही पटना हमारे देश के सबसे पुराने शहरों में से एक है. पटना का खाना कितना कमाल का है. लोग दिल्ली के खाने की तारीफ करते हैं.उनको मैं कहूंगा कि एक बार पटना आकर खाना खाकर देखिए. आउटस्टैंडिंग स्ट्रीट फूड के साथ-साथ गंगा का जो फीलिंग है, वो दुनिया में कही नहीं है.
पहला प्यार के युवा कलाकारों के साथ शूटिंग अनुभव कैसा था?
सच कहूं तो बहुत ही अलग. उनकी दुनिया, खुशियां और शिकायतें, हम 40 प्लस वाले लोगों से अलग होती है, क्योंकि उनकी दुनिया अभी शुरू ही हुई होती है, तो मैंने अपने युवा कलाकारों से बहुत कुछ सीखा है.
मधुबनी से मुंबई का सफर कैसे तय हुआ?
ये सफर मेरे पिता ने तय किया था. वो बिहार से मुंबई आये थे और मुंबई में सर्वाइव करने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया. जितने भी ऑड जॉब्स की कहानियां हम जानते और सुनते हैं, मेरे पिता ने वो सब करके बहुत मुश्किल से मुझे पढ़ाया. मैं ग्रेजुएट हुआ और एडवरटाइजिंग में काम करने लगा. मुझे फिल्मों और लेखन, किसी से लगाव नहीं था. मगर डेढ़ साल के बाद ये तय कर लिया कि मुझे एडवरटाइजिंग नहीं करना है. उसके बाद मैंने राइटिंग में ही किस्मत आजमाने का फैसला किया. मेरी पत्नी अर्पिता लेखिका हैं, तो उन्होंने भी प्रोत्साहित किया. डेढ़ साल के भीतर ही मुझे एकता कपूर का शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ मिल गया. सभी को पता है कि वो शो कितना कामयाब हुआ था. उसके बाद ‘छोटी बहू’शो लिखा. वो भी सफल रहा. उसके बाद मुझे पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. एक के बाद एक टीवी शो से जुड़ता गया. ‘क्या हुआ तेरा वादा’, ‘परवरिश’, मेरा आखिरी टीवी शो ‘राधा कृष्णा’था. मैंने टीवी के 55 शोज लिखे हैं. फिर मैंने फिल्मों की ओर रुख किया. मेरी पहली फिल्म ‘एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’थी. इस साल एक और फिल्म आ रही है. 2024 तक मेरे छह प्रोजेक्ट रिलीज होंगे, जिसमें फिल्में और वेब सीरीज शामिल हैं.
लेखन का अनुभव ना होते हुए भी एकता कपूर कैंप में एंट्री कैसे हुई?
मैं आपके पेपर के माध्यम से एकता को बहुत बड़ा थैंक्स कहूंगा. मैं आज भी उनका ऋणी हूं. मुझे आज तक ये बात नहीं मालूम हो पायी है कि इतने बड़े-बड़े लेखक होने के बावजूद उन्होंने मुझे कैसे चुन लिया. वैसे जब उनसे मैं मिला, तो उन्होंने यही कहा कि मैं अलग शो ला रही हूं. मुझे लेखन के स्थापित नाम नहीं चाहिए, बल्कि नये नाम चाहिए. आपके बारे में मैंने सुना है कि आप कर लेंगे. (हंसते हुए) आज तक मुझे नहीं पता कि किसने कहा था.
इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए सबसे बड़ा संघर्ष आपके लिए क्या है?
मेरा संघर्ष है कि मैं खुद को सिंपल बनाये रख सकूं जैसा मैं मधुबनी में था. ये जो मोरल करप्शन है, वो पैसों के करप्शन से ज्यादा गलत है. सिंपल रहने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. ग्लैमर इंडस्ट्री में बिना प्रभावित हुए सिंपल रह पाना आसान नहीं है.
मधुबनी से किस तरह का जुड़ाव अभी रख पाते हैं,मुंबई में मधुबनी की क्या चीजें मिस करते हैं?
मेरी जन्मभूमि है. मेरी वही की पैदाइश है. बिना किसी डॉक्टर या हॉस्पिटल के अपने घर में ही पैदा हुआ हूं. मेरे पापा हमेशा चाहते थे कि गांव में अच्छा घर बने. मैंने बनाया और मैं अपने बच्चों को साल में एक बार गांव लेकर जाता ही हूं. मुझे लगता है कि कनेक्शन बना रहने के लिए जाना जरूरी है. लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए. इस बात पर मैं बहुत यकीन करता हूं. आपको जितना ऊंचा जाना है,आपको उतना ही गहरा जाना होगा. जहां तक बात मुंबई में मधुबनी की चीजें मिस करने की है, ( हंसते हुए) मत पूछिए. बहुत कुछ, लेकिन सबसे ज्यादा आम का मौसम. आम की खुशबू और आम का बगीचा.
आप निर्माता भी हैं,क्या निर्देशन की भी प्लानिंग है?
हां, अगले साल की प्लानिंग है. उत्तर प्रदेश के एक साइंटिस्ट की बायोपिक होगी. बहुत अच्छी और बड़ी कहानी है. इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा. निर्माता के तौर पर 2015 में मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस ‘बिंदु मूविंग इमेज’ शुरू किया है. ‘एक दूजे के वास्ते 2’ और अभी ’पहला प्यार’ जैसे कई शो की प्रोड्यूस कर चुका हूं.
लेखन में आपकी प्रेरणा कौन रहे हैं?
मैं कभी राइटर नहीं बनना चाहता था, लेकिन बन गया हूं तो मैंने बहुत लोगों को पढ़ा नहीं है. जो भी मैंने पढ़ा है, उसमें मैं ग्रेट एक्सपेक्टेशन किताब का नाम लेना चाहूंगा. उस किताब ने मुझे बहुत प्रभावित किया. उस किताब में गांव के एक बच्चे की शहर में बड़ा आदमी बनने की कहानी है. वो कहानी बताती है कि आप खुद से नहीं बनते हो. बहुत सारे फैक्टर्स रहते हैं. वो फैक्टर्स जानेंगे, तो आप जिंदगी से ग्रेटिट्यूड जोड़ पायेंगे. मुझे लगता है कि जब से मैंने ग्रेटिट्यूड को अपनी जिंदगी में अपनाया है, मेरी जिंदगी बेहतर हो गयी है.
अक्सर कहा जाता है कि टेलीविजन के एक्टर्स को लेकर फिल्म वाले बायस्ड रहते हैं. क्या टीवी के राइटर्स के साथ भी ऐसा होता है?
बिलकुल ऐसा होता है . हमारे यहां लोगों की जज करने की बुरी आदत है. लोगों को लगता है कि टीवी का लेखक है तो वैसे ही स्टाइल में लिखेगा, लेकिन टीवी लिखना आसान नहीं है. वहां पर आपको कम समय में बहुत ज्यादा सीन लिखकर देना होता है. उतने प्रेशर में लिखना सभी के बस की बात नहीं है. वैसे किसी भी माध्यम के मुक़ाबले टीवी के राइटर्स को सबसे अच्छे पैसे मिलते हैं. मैं इस बात को स्वीकार करूंगा. इसके साथ ही अच्छे लेखकों की कद्र सभी देर सवेर करते ही हैं. इंडस्ट्री की सबसे बड़ी जरूरत लेखक ही हैं. बड़े प्रोडक्शन हाउस की छोड़िये मेरे प्रोडक्शन हाउस के लिए भी मुझे एक अच्छे लेखक की जरूरत है,लेकिन अभी तक वैसा कोई मिल नहीं पाया है. आप किसी भी निर्माता और निर्देशक से पूछ लीजिए उनकी सबसे बड़ी जरूरत लेखक ही है
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