Jharkhand Foundation Day: झारखंड को अलग राज्य बने 22 साल हो गये. इस दौरान राजधानी रांची में एक अदद रंगशाला नहीं बन पायी. रंगशाला (Theatre) के बगैर सांस्कृतिक गतिविधियां कैसे विकसित होंगी. झारखंड स्थापना दिवस (Jharkhand Sthapna Diwas) से पहले ये बातें रांची के जाने-माने रंगकर्मी और एनएसडी स्नातक संजय लाल (Sanjay Lal) ने कहीं. उन्होंने कहा कि झारखंड (Jharkhand News) के कई शहरों में और दूसरे राज्यों में एक रंगशाला जरूर होती है. सिर्फ रांची ही ऐसा शहर है, जहां कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुति के लिए अब तक रंगशाला का निर्माण नहीं हुआ.
वह कहते हैं कि जब तक झारखंड में कलाकारों के लिए रंगशाला और रिहर्सल स्पेस की सुविधा नहीं होगी, तब तक यहां का रंगमंच और यहां की सांस्कृतिक गतिविधियां विकसित नहीं हो पायेंगी. सरकार को निश्चित तौर पर कलाकारों के हित को ध्यान में रखते हुए यहां आवश्यक उपकरणों के साथ आसानी से उपलब्ध होने वाले रंगशाला का निर्माण अवश्य किया जाना चाहिए, ताकि राजधानी में सांस्कृतिक गतिविधियां बढ़े और कलाकारों को अपनी कला दिखाने का अवसर मिले.
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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नयी दिल्ली से स्नातक की उपाधि लेने वाले रंग निर्देशक संजय लाल कहते हैं कि अभिनय करने की जबरदस्त चाहत उन्हें रंगमंच तक खींच लायी. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक, वाणिज्य में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा लेने के दौरान ही प्रो अजय मलकानी के दिशा-निर्देशन में रंगमंच करते रहे. वर्ष 1999 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली से स्नातकोत्तर की डिप्लोमा ली और वर्ष 2001 में अपनी नाट्य संस्था ‘एक्सपोजर’ की स्थापना की.
इसके बाद भारत के कई राज्यों में रंगमंच को गति एवं दिशा प्रदान करने में संजय लाल ने अहम भूमिका निभायी. इसी क्रम में शिविर निदेशक और रंग विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने 20 नाट्य कार्यशालाओं का संचालन एवं 35 नाटकों का निर्देशन किया. अब तक लगभग 500 कलाकारों को प्रशिक्षित किया. इनमें से कई कलाकार मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री और टेलीविजन इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. कई कलाकार रंगमंच में स्नातकोत्तर की डिग्री ले चुके हैं या इसकी पढ़ाई देश के जाने-माने विश्वविद्यालयों में कर रहे हैं. बच्चों की अभिनय प्रतिभा को जागृत करने के लिए उन्होंने कम से कम 10 नाट्य कार्यशाला का आयोजन एवं संचालन किया.
संजय लाल ने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’, ‘झारखंड के वीर सपूत’, ‘जिस लाहौर नहीं देख्या वो जमयाई नई’, ‘चरणदास चोर’, ‘शिव गाथा’, ‘आजादी के दीवाने’, ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’, ‘कोर्ट मार्शल’, ‘टूटा आईना’ और ‘सैयां भए कोतवाल’ जैसी पूर्णकालिक नाटकों का निर्देशन कगिया. इनकी प्रस्तुति राज्य और राज्य के बाहर होने वाले कई राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव में हुई.
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यूनिसेफ के सहयोग से बाल सुधार गृह रांची में 15 महीनों की नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया. वर्ष 2014 और वर्ष 2015 में झारखंड सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग ने उन्हें ‘झारखंड युवा महोत्सव’ के लिए राज्य समन्वयक नियुक्त किया. सांस्कृतिक कार्य निदेशालय एवं युवा संगीत नाटक अकादमी की ओर से रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय योगदान के लिए संजय लाल को ‘रंग आंदोलन सम्मान’ से नवाजा गया.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, उत्तर मध्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद, पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता, परफॉर्मिंग एंड फाइन आर्ट डिपार्टमेंट, रांची विश्वविद्यालय, पर्यटन कला संस्कृति खेल-कूद एवं युवा विभाग, यूनिसेफ, सिनी और रंग कार्यों के प्रति समर्पित स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और संस्थाओं के साथ रंगमंच के उत्थान एवं विकास के लिए काम करने का इन्हें अनुभव है.
पद्मश्री रतन थियाम, बीवी कारंथ, बीएम शाह, ओरेस्की (पोलैंड), जॉन रसल ब्राउन,(इंग्लैंड), वेंडी झेलन (अमेरिका), नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, रॉबिन दास, देवेंद्र राज अंकुर जैसे नाट्य निर्देशक और रवि केमु, रंजन सिंह एवं अमिताभ दासगुप्त जैसे फिल्म निर्देशकों के साथ उन्होंने काम किया.