झारखंड के जाने-माने डायरेक्टर और सिनेमैटोग्राफर सुमित सचदेवा पिछले 15 सालों से क्षेत्रीय फिल्मों में काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि झारखंड में फिल्म इंडस्ट्री में असीम संभावनाएं हैं. झारखंड के 22वें स्थापना दिवस पर उन्होंने क्षेत्रीय सिनेमा में बदलाव और अन्य मुद्दों पर प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से खुलकर अपने विचार शेयर किये.
सुमित सचेदवा ने कहा कि टेक्निकल तौर पर बहुत ज्यादा बदलाव हुआ है. पहले एनालॉग फॉरमेर चलता था, रील का जमाना था. रील्स वाले कैमरे थे, जो प्रोड्यूसर को बहुत महंगा पड़ता था. अब सब डिजिटल हो गया है. एक चिप, हार्ड डिस्क में आपका मैटर रिकॉर्ड हो जाता है. पहले टेक लेने में बहुत सोचना पड़ता था, अब आप जितना भी टेक लें, कोई परेशानी नहीं होती. टेक वाला डर खत्म हो गया है. पहले टंकसेट लाइट से शूट होता था, अब एलईडी आ गया है.
सुमित सचदेवा कहते हैं कि अन्य राज्यों में रीजनल फिल्म इंडस्ट्री यानी क्षेत्रीय सिनेमा से अभी भी हम पीछे चल रहे हैं. इसकी सबसे वजह है यहां मार्केट का न होना. नागपुरी सिनेमा कहां चलता है. रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी और चाईबासा ये क्षेत्र हैं. लेकिन, लोहरदगा में हॉल है, गुमला में नहीं है. सिमेडगा में हॉल बंदी की कगार पर है, खूंटी और चाईबासा में हॉल हैं ही नहीं. जब हॉल ही नहीं है, तो दर्शक कैसे मिलेंगे. आप कितनी भी अच्छी फिल्म बनाइए, लोगों तक पहुंचेगी ही नहीं, तो क्या फायदा.
सुमित सचदेवा कहते हैं कि सरकार को एक कम्युनिटी हॉल की व्यवस्था करनी चाहिए. हमने इसकी मांग की थी. हमलोगों को सब्सिडी देकर अपाहिज मत बनाइये. ब्लॉक लेवल पर कम्युनिटी हॉल बनवाया जाये, सरकारी मीटिंग भी वहां हो सकेगी. शादी समारोह के लिए भी इस्तेमाल होगा और हमारे सिनेमा के लिए भी हो जायेगा. अब हम एक पहल करने जा रहे हैं कि गांव-गांव में जाकर टेंट पर फिल्म बनाएं. संताली इंडस्ट्री ऐसा ही करती है. मैंने हाल ही में दो संताली फिल्मों की शूटिंग की है. संताली फिल्म इंडस्ट्री अच्छा कर रही है.
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उन्होंने कहा कि हमारे यहां बहुत अच्छी फिल्में बन सकती हैं, लेकिन अच्छा रिस्पांस नहीं मिलने की वजह से लोग नीरस होते जा रहे हैं. अच्छे प्रोड्यूसर पैसा लगाना नहीं चाहते. यह सबसे बड़ी दिक्कत है. सरकार हमें सब्सिडी न दे, झारखंडी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दे. सरकार को एक मार्केट देना चाहिए, इससे उन्हें भी फायदा होगा.