नागपुरी राग-रागिनियों को संरक्षित कर रहे महावीर नायक
।। अरविंद कुमार मिश्रा ।। नागपुरी गीत-संगीत की बात हो और एक नाम की चर्चा न हो, तो बात अधूरी रह जायेगी. जी हां, बात महावीर नायक की हो रही है. वह नागपुरी के वरिष्ठ कलाकार हैं, जिनसे होकर ठेठ नागपुरी गीत की धारा निकली है. राजधानी रांची से सटे उरुगुटु (पिठोरिया, गिंजो ठाकुरगांव के […]
।। अरविंद कुमार मिश्रा ।।
नागपुरी गीत-संगीत की बात हो और एक नाम की चर्चा न हो, तो बात अधूरी रह जायेगी. जी हां, बात महावीर नायक की हो रही है. वह नागपुरी के वरिष्ठ कलाकार हैं, जिनसे होकर ठेठ नागपुरी गीत की धारा निकली है. राजधानी रांची से सटे उरुगुटु (पिठोरिया, गिंजो ठाकुरगांव के पास) के रहनेवाले महावीर नायक का जन्म आजादी से पांच साल पहले यानी 1942 में हुआ. वह फिलहाल हटिया (चांदनी चौक) में रहते हैं.
कला प्रेमी पिता खुदू नायक की गोद में महावीर का लालन-पालन हुआ और यही कारण है कि बचपन से ही नागपुरी गीत से उनका गहरा लगाव रहा. उन्होंने बताया कि रामनवमी के दिन उनका जन्म हुआ. इसलिए उनके माता-पिता ने उनका नाम महावीर रखा. महावीर नायक की सात बेटियां हैं. एक बेटा था, लेकिन उसका निधन हो गया. उनकी बड़ी बेटी ने उनकी विरासत संभाली है. छोटी बेटी शास्त्रीय संगीत से पीजी कर रही है.
* पिता के कांधे पर बैठकर जाते थे अखरा और सीखा राग-रागिनी
महावीर नायक ने बताया कि जब वे महज पांच साल के थे, उस समय से ही उनका जुड़ाव नागपुरी गीतों से हुआ. गांव में जहां भी अखरा सजता, उनके पिता को गाना गाने के लिए बुलाया जाता था, तो पिता के साथ उनके कांधे पर बैठ कर महावीर भी अखरा जाते और रात भर जागकर गीत-संगीत को करीब से देखते. उस समय अखरा रातभर गुलजार रहा करता था. अखरा में सभी जाति-धर्म के लोग एक साथ मिलकर नाचते-गाते थे. जब वो अखरा में लोगों को नाचते-गाते देखते थे, तो उनके अंदर भी इच्छा होती थी कि वो भी बड़े कलाकार होते, जिनके गीतों में लोग झूमते. महावीर ने बताया कि अखरा से ही उन्होंने नागपुरी राग-रागिनी को सीखा और इस मुकाम को हासिल किया.
* नागपुरी राग-रागिनियों को बचाने की मुहिम चलायी
महावीर नायक ने नागपुरी राग-रागिनियों को बचाने के लिए मुहिम चलायी. उन्होंने बताया कि डॉ बीपी केशरी ने उन्हें एक दिन पिठोरिया स्थित नागपुरी संस्थान मिलने के लिए बुलाया. इन्होंने नागपुरी के आदि कवि हनुमान सिंह, जयगोविंद मिश्र, बरजू राम, महाकवि घासी राम और दास महली की रचनाओं को दिखाया. डॉ बीपी केशरी के साथ नागपुरी के शिष्ट और लोकगीतों का राग बनाने का काम किया.
महावीर के मुताबिक, ये सब करते हुए उन्हें यह पता ही नहीं चला कि वो कैसे नागपुरी गीतों के ख्याति प्राप्त कलाकार बन गये. उन्हें आस-पास के गांव और दूसरे जगहों में बुलाया जाने लगा. पहले मंच की प्रथा नहीं थी. कलाकार रातभर अखरा में नाच-गान करते थे.नागपुरी के वरिष्ठ कलाकारों को जोड़ कर महावीर नायक ने उन्हें मंच पर स्थान दिया और उस समय से ही नागपुरी कलाकारों को सम्मान मिलना शुरू हो गया. पहले नचनी (नर्तकी) प्रथा थी. रातभर नर्तकियों का नृत्य हुआ करता था, लेकिन कलाकारों को मंच मिलने से उनमें आत्मसम्मान की भावना जागने लगी.
* रेडियो- दूरदर्शन के रहे हैं पुराने कलाकार
महावीर नायक रेडियो और दूरदर्शन से जुड़े हैं. 1984 में जब रेडियो में पहली बार स्थानीय कलाकारों का ऑडिशन हो रहा था, तो उस समय महावीर नायक को भी मौका मिला. उन्होंने भी ऑडिशन दिया और बी प्लस से पास भी हुए. रेडियो में उत्तम कलाकारों को यह ग्रेड दिया जाता है. महावीर नायक ने अपनी टीम के साथ रेडियो और दूरदर्शन में सैकड़ों गाने गाये और उसका प्रसारण आज भी होता आ रहा है. उन्होंने बताया कि जब आकाशवाणी में सुगिया बहिन ( रोजलीन लकड़ा) निदेशक के पद पर थीं, तो उन्हें बराबर मौका मिलता रहा. बाद के दिनों में भी कई मौके रेडियो और दूरदर्शन में गाने को मिले. वहां से भी उन्हें कई बार पुरस्कृत किया गया.
* भिनसरिया राग के राजा से मशहूर थे महावीर नायक
महावीर नायक ने बताया कि उन्हें दर्शक और उनके चाहने वाले भिनसरिया का राजा कहते थे. उनका खूब डिमांड था. जब लोगों को पता चलता था कि कार्यक्रम में वो नहीं आ रहे हैं, तो लोग निराश हो जाते थे, लेकिन जब दर्शकों को खबर होती थी कि कार्यक्रम में महावीर नायक आ रहे हैं, तो बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने आते थे. उनसे लोग भिनसरिया राग जरूर सुनना चाहते थे.
* झारखंड आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भूमिका निभायी
महावीर नायक ने झारखंड आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. नागपुरी के वरिष्ठ कलाकार मधुमंसूरी हंसमुख व पद्मश्री मुकुंद नायक के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड आंदोलन को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभायी. झारखंड आंदोलन के दौरान उन्होंने नागपुरी गीत को अलग धारा में मोड़ने का काम किया. उस समय के सभी बड़े कलाकारों को साथ मिला कर जागृति के गीत लिखे और लोगों के बीच गाये. सभी कलाकारों का एक ही स्वर था अलग झारखंड राज्य. उनके प्रयासों का परिणाम हुआ कि लोग उनके गीतों को सुनकर आंदोलित हुए और आखिरकार वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बना.
* कई दूसरे राज्य व विदेशों में भी कर चुके हैं कार्यक्रम
महावीर नायक झारखंड और देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों में भी कार्यक्रम पेश कर चुके हैं. पद्मश्री मुकुंद नायक और डॉ रामदयाल मुंडा के साथ उन्हें ताइवान जाने का मौका मिला. उन्होंने बताया कि जिस तरह से अपने राज्य में नागपुरी गीतों की मांग है और उसे चाहनेवालों की तादाद अधिक है, उसी तरह विदेश में भी उतना ही प्यार मिला. यह हमारे लिए काफी सुखद पल था.
* कई पुरस्कारों से हो चुके हैं सम्मानित
महावीर नायक को अपने राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी कई सम्मान मिले हैं. उन्हें 2014 में भारत लोकरंग महोत्सव में लोककला रत्न अवॉर्ड दिया गया. इसके साथ ही उन्हें स्वर्ण जयंती समारोह 2019 में भी सम्मानित किया गया.
* शहरीकरण व औद्योगीकरण के दौर में खतरे में भाषा-संस्कृति
महावीर नायक ने कहा कि आज शहरीकरण और औद्यौगीकरण के दौर में अपनी भाषा और संस्कृति खतरे में है. नागपुरी के पास लोकगीत और शिष्ट गीतों का भंडार है, लेकिन आज के कलाकार उसे संरक्षित नहीं कर पा रहे हैं. भाषा का लगातार क्षरण हो रहा है. उन्होंने कहा कि पद्मश्री मुकुंद नायक और कई वरिष्ठ कलाकारों के साथ उन्होंने कुंजवन संस्था की स्थापना की, ताकि युवा कलाकारों को ठेठ नागपुरी गीत के राग-रागिनियों को सिखाया जा सके.
* कलाकारों को मिलनी चाहिए पेंशन
महावीर नायकमहावीर नायक ने कहा कि आज यहां कलाकारों को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है. कलाकारों को तब याद किया जाता है, जब वीआइपी की अगुआई करना होता है. उसके बाद फिर भूला दिया जाता है. कलाकार भी एकजुट नहीं हैं. सभी को एक मंच पर आना होगा और अपनी मांग रखनी होगी. सरकार की ओर से कलाकारों को पेंशन मिलनी चाहिए. पेंशन का लाभ मिलने से कलाकार दोगुनी ऊर्जा के साथ नागुपरी की सेवा में लगेंगे.