भारत की पहली महिला रेसलर कविता देवी ने अपनी रेसलिंग के जरिये देश का नाम ऊंचा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. उनकी पहचान दुनिया में एक ऐसी शख्स के तौर पर होती है, जिन्होंने पहली भारतीय महिला रेसलर के रूप में डब्ल्यूडब्ल्यूइ में हिस्सा लिया और अपने जज्बे और लड़ने की काबिलियत के बूते ये साबित कर दिखाया कि महिलाएं किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं. अब कविता पर जल्द ही एक फिल्म बनने जा रही है. दंगल, मेरीकॉम समेत दूसरी बायोपिक फिल्मों की तरह कविता की जिंदगी भी रुपहले पर्दे पर दिखेगी.
वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूइ) में देश का नाम रोशन करने वालीं कविता देवी यानी हार्ड केडी पर बायोपिक फिल्म बनने जा रही है. फिल्म के लिए कविता की जिंदगी से जुड़े हुए राइट्स को प्रोड्यूसर प्रीति अग्रवाल ने खरीद लिए हैं. इस बायोपिक को लेकर प्रीति का मानना है, ”कविता की पूरी जिंदगी बेहद प्रेरणादायक रही है. जिंदगी के हर मोड़ पर उन्होंने लड़ने का जज्बा दिखाया और कभी हार नहीं मानी. ऐसी धारणा रही है कि डब्ल्यूडब्ल्यूइ हमेशा से पुरुषों का खेल रहा है. बाद में दुनिया भर की महिलाएं भी इस खेल में शिरकत करने लगीं, लेकिन इस खेल में भारतीय महिलाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था. ऐसे में कविता ने अपनी काबिलियत से ये साबित कर दिखाया कि भारतीय महिलाओं में कितना दम है. वह आज उन बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो डब्ल्यूडब्ल्यूइ में अपना मुकाम बनाने की ख्वाहिश रखती हैं.”
कविता देवी का जन्म 20 सितंबर, 1986 को हरियाणा के जींद जिले के जुलाना गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. खेलकूद से सब कोसो दूर थे, पर उन्हें बचपन से ही रेसलिंग का बेहद शौक था. वह अपने गांव की पहली लड़की थीं, जिसने स्पोर्ट्स को चुना. इसके चलते उन्हें समाज के तानों के साथ परिवार की उपेक्षा भी झेलनी पड़ी, पर अपनी मेहनत की बदौलत वह अपने परिवार का विश्वास जीतने में कामयाब रहीं. 13-14 साल की उम्र में जब वह खेत में अपनी मां के साथ जाती, तो 40 से 50 किलो की चारे की गठरी अकेले ही उठा लेती थीं. जबकि, इस उम्र के दो-तीन लड़के मिलकर ऐसी गठरी उठा पाते थे. यह देख उनके बड़े भाई ने उन्हें वेटलिफ्टिंग के लिए प्रोत्साहित किया.
साल 2002 में जींद जाट कॉलेज में बीए प्रथम वर्ष में उन्होंने इंटर कॉलेज गेम के लिए शॉटपुट में ट्रायल दिया. कविता ने सबसे ज्यादा (लड़कों से भी आगे) गोला फेंककर सबको हैरत में डाल दिया. बाद में कर्णम मल्लेश्वरी को अपना आदर्श मानते हुए फरीदाबाद में उन्होंने वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग शुरू की. इस तरह उन्होंने 12 वर्ष तक वेटलिफ्टिंग में देश के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते. खेल की बदौलत ही उन्हें साल 2008 में सशस्त्र सीमा बल में कांस्टेबल की नौकरी भी मिली.
चूंकि, हरियाणा में लड़कियों की शादी कम उम्र में करने की परंपरा है. इसलिए वर्ष 2009 में कविता की शादी हो गयी. कहते हैं कि शादी के बाद सपने को पूरा नहीं किया जा सकता, पर कविता के पति गौरव तोमर ने उन्हें कुश्ती के लिए वापस मैदान में उतरने के लिए काफी प्रोत्साहित किया. पति गौरव तौमर की सलाह पर उन्होंने वुशु की ट्रेनिंग ली और उसमें भी दो साल सीनियर नेशनल चैंपियन रहीं. उन्होंने तब मेडल जीते, जब वह एक बच्चे की मां भी थीं. पति के सपोर्ट से ही वह विभिन्न स्पर्धाओं में गोल्ड मेडल जीत सकीं. साल 2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में 75 किलोग्राम की भारोत्तोलन की श्रेणी में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता.
देश के लिए कई मेडल जीतने बावजूद कविता की जिंदगी में एक ऐसा पड़ाव आया, जब वह वेटलिफ्टिंग को छोड़ डब्ल्यूडब्ल्यूइ रेसलिंग करने का मन बना लिया. वेटलिफ्टर से डब्ल्यूडब्ल्यूइ रेसलर बनने के पीछे की उनकी कहानी काफी दिलचस्प है. बात 13 जून 2016 की है. वह जालंधर में चार साल के बेटे के साथ खली की अकेडमी में रेसलिंग शो को देखने गयी थीं. फाइट में दिल्ली की महिला रेसलर बुलबुल ने एक महिला को हराकर लड़कों और लड़कियों को चुनौती दे डाली कि कोई है जो उससे मुकाबला कर सके. इस पर कविता सलवार कमीज में ही ऑडियंस में से उठकर रिंग में पहुंच गयीं. उन्होंने बुलबुल की चुनौती को स्वीकारा और उसे हरा दिया. इसके दो दिन बाद ही जब वे दर्शकों में बैठी थीं, तो पीछे से बुलबुल ने उन पर हमला कर दिया. इसमें उन्हें चोट भी आयी. इसी दिन उन्होंने ठान लिया कि अब डब्ल्यूडब्ल्यूइ रेसलर बनेंगी.
शादी के बाद रेसलिंग की रिंग में उतरना, किसी के लिए भी मुश्किल भरा निर्णय हो सकता है. मगर कविता ने रेसलिंग में वापसी की और दिन-रात कठिन मेहनत से अपने आप को इसके लिए काबिल बनाया. वर्ष 2017 में उन्हें डब्ल्यूडब्ल्यूइ में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, वहां वे सूट-सलवार पहनकर रिंग में उतरीं. ऐसा करके कविता ने पूरी दुनिया को यह साबित कर दिया कि सपने को पूरा करने के लिए अपने कपड़े या रंग-रूप बदलने की जरूरत नहीं है. उसके बाद भारत की बेटी कविता रातों-रात एक चमकता सितारा बन गयी. उन्होंने एमएइ यंग क्लासिक 2017 में अपनी रेसलिंग का जौहर दिखाया. इसके अलावा, रेसलमेनिया 34 में जब उन्होंने अपना दमखम दिखाया, तो दुनियाभर के डब्ल्यूडब्ल्यूइ रेसलर्स ने उनका लोहा मान लिया.
कविता को देख ‘द ग्रेट खली’ने अपने ‘द ग्रेट खली रिटर्न शो’ में उन्हें बुलाया, जहां उनका मुकाबला अमेरिका की रेसलर नटरिया से हुआ. लोग तब चौंक गये, जब उन्होंने इस रेसलर को 12 मिनट में चित कर दिया. कविता, खली को अपना गुरु और प्रेरणा मानती हैं. खली ने ही डब्ल्यूडब्ल्यूइ के लिए उन्हें ट्रेनिंग दी थी.खेल में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ‘फर्स्ट लेडी’ सम्मान से नवाजा.
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2016 में दक्षिण एशियाई खेलों में 75 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता
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2017 में वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली महिला बनीं.
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जन्म स्थान : 20 सितंबर 1986, मालवी (जुलाना) जींद, हरियाणा
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माता : ज्ञानमती देवी
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स्कूल : गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल, जुलाना, जींद
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2014 से 2016 तक लगातार तीन साल नेशनल चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया