कृष्ण कुमार कुन्नथ उर्फ केके का नाम उन बेहतरीन सिंगरों में शुमार रहा है. जिनके बारे में कहते हैं कि उनके गाए गाने कभी पुराने नहीं होते हैं. दिल टूटने वाले गीत हो या पार्टी सांग या फिर देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले गीत. उनकी आवाज हर गाने के साथ न्याय करती हैं. ढाई दशक के अपने करियर में उन्होंने कई यादगार गीत श्रोताओं को दिए हैं. के.के अब हमारे बीच नहीं रहें, लेकिन उनकी मदहोश करने वाली आवाज हमेशा रहेगी. कुछ महीने पहले उनसे हुई बातचीत में उन्होंने उनकी सुरमयी संगीत यात्रा पर उर्मिला कोरी से बातचीत की थी. बातचीत के प्रमुख अंश
क्या आप हमेशा से सिंगर ही बनना चाहते थे?
सबकी अपनी-अपनी जर्नी होती है. मैंने कभी म्यूजिक सीखा नहीं. लेकिन मुझे म्यूजिक में काफी मजा आता रहा है. मेरे घर पर संगीत का माहौल था, मेरी दादी म्यूजिक टीचर थीं. मेरी मां भी परफॉर्म करती थी. मेरी मां और पापा दोनों का म्यूजिक की तरफ झुकाव हुआ करता था. मां गाती थी और पापा रिकॉर्ड किया करते थे. खास बात यह थी कि उन्होंने मुझे म्यूजिक स्कूल में डाला भी था, लेकिन मैं वहां तीन दिनों से ज्यादा रह ही नहीं पाया था. मैंने फॉर्मल ट्रेनिंग कभी नहीं ली. मुझसे नहीं हो पाया हालांकि मेरे म्यूजिक टीचर ने पापा को कहा कि अच्छा गाता है, उसका गाना मत छुड़वाना. मुझे हमेशा से लगा कि म्यूजिक अंदर से ही आता है. उसके लिए आपको ट्रेनिंग की जरूरत नहीं. हां यह सच है कि मैं क्लासिकल नहीं गा सकता, क्योंकि मैंने सीखा नहीं है, लेकिन लाईट क्लासिक तो गा लेता हूं. मैंने इल्लया राजा के लिए तेलुगु फिल्म में कुछ गाने गाये हैं, क्लासिकल बेस्ड. मैंने उनको कहा भी था कि मुझे ज्ञान तो नहीं है क्लासिकल का. लेकिन उन्होंने कहा कि आप गाओ. मजे कि बात यह थी कि उन्होंने एक गाने को गाने के लिए बुलाया था, लेकिन फिर उन्होंने कहा कि अगर कोई हड़बड़ी नहीं है तो ये भी गा दीजिये. मैं थोड़ा हैरान था. मुझे इतनी खुशी हुई कि उन्होंने एक और गाना गाने को कहा.
आपने पहला परफॉरमेंस कब किया था?
मेरा पहला जो परफॉरमेंस था, वह सेकेण्ड क्लास में ही था. मेरे टीचर्स को जब पता चला कि मैं गाता हूँ तो उन्होंने बहुत सपोर्ट किया मुझे. फिर मैं इंटर स्कूल में गाने लगा था, वहां दूसरे स्कूलों में भी परफॉर्म करने लगा था. मुझे हर जगह फर्स्ट प्राइज ही मिला करते थे. इसके बाद कॉलेज भी. कॉलेज में गाने के पैसे भी मिलते थे. पहली बार 1500 रूपये मिले थे, कभी कभी 700 रूपये भी मिलते थे, मैं किरोड़ीमल से था. तो वहां म्यूजिक का अच्छा माहौल था. मैंने दूरदर्शन में अपना शो किया था. मैंने कॉलेज में तीन रॉक बैंड बनाये थे .उनके लिए गाने बनाता था. सबका अलग-अलग म्यूजिक होता था. एक में क्लासिक रॉक, दूसरे में नियो रॉक और तीसरे में पॉप. दिल्ली में इतने कॉलेज फेस्टिवल्स होते थे तो वहां बहुत फेमस था हमारा बैंड .
मुंबई कब आए और फिल्मों से कैसे जुड़े?
मुंबई आया तो फिल्मों में गाऊंगा यह सोच कर तो कभी नहीं आया. मैं तो आया था कि सोचा था कि अपना एल्बम करूंगा. 1994 से शुरुआत हुई. उसके बाद 2000 तक मैंने 3500 से ज्यादा जिंगल्स गा लिए थे. मैंने कई भाषाओं में गाया. मुझे मुंबई ने काफी कुछ दिया और मैं मानता हूँ कि मुंबई आपको कई सारे अवसर देती है, पहले मैं डरता था कि मैं किसकी तरह रहूं, मुझे लोग किस तरह से स्वीकार करेंगे. फिर लगा कि जैसा हूँ, वैसा ही रहता हूँ. कोई और बनने की ही जरूरत क्या है. क्योंकि आप जब खुद के होते हो तो खुश होते हो, बनने की जरूरत नहीं होती है. अब 24 साल तक खुद का बन कर ही कामयाब हूँ. ज्यादा काम नहीं करता हूँ. लेकिन फिर भी बना हुआ हूं. लोग अब भी सुनना पसंद करते हैं.
मुंबई में किसी सिंगर या कंपोजर जिन्होंने शुरुआत में आपको सपोर्ट किया
जब मैं यहां आया था तो सिंगर हरिहरन से मिला था. हरिहरण मुझसे दिल्ली में मिले थे. वहां मैंने परफॉर्म किया था एक होटल में. उन्होंने वहां मुझे देखा था तो मुझे बुला कर कहा कि यहां पर क्या कर रहा है, मुंबई आजा. तो जब मैं यहां आया तप उनसे मिलने के लिए गया. उन्होंने ही मुझे लेजली के पास भेजा. लेजली ने मेरे साथ जिंगल किया और मेरे लिए एल्बम भी किया. तो मेरा मानना है कि कनेक्शन कहीं से भी आते हैं. अगर आपने तय कर लिया कि आपको आना है, तो कुछ हो ही जाता है.
रिजेक्शन का भी सामना हुआ था क्या?
शुरू में जब आया था, तो लोगों के पास जाता था तो सब रैप ही कराना चाहते ते. क्योंकि बाबा सहगल फेमस थे. तो मुझे लगता था कि अरे बाबा तो कर ही रहे, मुझसे भी वहीं क्यों कराना चाहते हैं. मैं दरअसल, अग्रेजी गाने लेकर जाया करता था. तो वे लोग गाना सुन कर कहते थे कि गाना अच्छा है, लेकिन रैप कर सकते हो क्या. लेकिन मेरा अलग स्टाइल था. मैं हमेशा से थोडा इंटेंस रहा. तो बात नहीं बनती थी. फिर उसके बाद एक हेजल करके रॉक बैंड था.उसके लिए काम शुरू किया, लेकिन कुछ भी वर्क नहीं किया. शेखर कपूर की फिल्म तारा रमपम में गाने का मौका मिला था लेकिन फिल्म डिब्बा बंद हो गयी. उन दिनों में मैं खूब जिंगल्स गाता था.उसकी वजह से अच्छे से कट रही थी.
कोई सपना जो अबतक पूरा नहीं हुआ है?
जब मेरा पहला एल्बम पल आया, तो मैं बहुत खुश हुआ था. क्योंकि मैं तो वही करने मुंबई आया था. मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं अपना अधिक एलबम नहीं ला पाया, जबकि मेरा अब भी पहला प्यार तो वहीँ है.
गाने की रिकॉर्डिंग के वक़्त आपका प्रोसेस क्या रहता है
मैं हमेशावक्त का पाबन्द रहा हूं. मुझे मतलब नहीं होता कि कौन कितने बजे आये. मैं वक़्त पर पहुंच जाता हूं फिर वहां के माहौल में ढल जाता हूँ और उसके बाद मैं अपने तरीके सेगाने की तैयारी करता हूँ. मैंने गुलजार साहब के लिए जब माचिस में गाना गाया था,तबकि बात बताता हूं. मैं और गुलजार साहब टाइम पर पहुँच गये थे. अभी वहां झाड़ू पर लग रहा था. उनको मेरी ये बात अच्छी लगी थी. उन्होंने मुझे कहा कि वक़्त कभी किसी का इंतजार नहीं करता है. दूसरों के बारे में मत सोचो कि वह क्यों नहीं आये. तुम वक़्तपर आओ और देखना वक़्त हमेशा आपका सम्मानकरेगी.मैं गाने को पहले जीना पसंद करता हूं. मुझे वक्त चाहिए होता है. मैं गानेके साथ रहता हूं उसको अपना बनाता हूँ. मैं पहले पूरे गाने को अपनी हैण्ड राइटिंगमें लिखता हूं. उस क्रम में ही वे गाने मेरे अपने हो जाते हैं. फिर मैं उसको जीताहूँ और गाता हूं. ऐसे में जिसके पास मुझे देने के लिए वक़्त नहीं होता है, मेरे गाने ऐसे ही छूट जाते हैं. मुकेश भट्ट हमेशा मेरा इंतजार करते हैं. वह हमेशा कहते हैं कि तुम वक्त लो. एक महीने से बीमार था. सड़क 2 के लिए उन्होंने मुझे पूरा वक्त दिया तो जिनको रुकना है वह रुकते हैं. मेरा कभी सपना बड़े ब्रांड या लोगों के साथ गाने के लिए रहा ही नहीं है,सो कभी किसी भी तरह की निराशा हुई ही नहीं. असंतोष भी नहीं रहा मुझे. मुझे याद हैकि मैंने एयरलिफ्ट का गाना वह गाना देशभक्ति वाला कहीं लाइव किया था तो लोग उठ कर खड़े हो गये थे, उस गाने में वैसी रूह है, तो मैं वैसे काम करके खुश हूँ. मेरे लिए पैसे बहुत अहमियत नहीं रखता है. मैंने वहीं किया जो मेरा मन किया. मैं तोयही सोचता हूं कि मुझे सुकून चाहिए, मुझे शांति चाहिए.
ग्लैमर इंडस्ट्री में होने के बावजूद आप में बहुत संतुष्टि है, आप हमेशा से ऐसे रहे हैं ?
मेरे जो पापा के भाई हैं, वह साधक रहे हैं. उनका मुझ काफी प्रभाव रहा है. बचपन में मैं उनसे काफी बातें करता था. वह दिल्ली के दो डिग्री में भी खुले बदन साधना करते थे. वह मुझे कहते थे कि तुम अलग सोचते हो, इसको जाने मत देना, तू वर्ल्ड फेमस बनेगा. मैं तो हँसता था. ये सब सुनकर मेरी आंटी भी कहती थी. हमारे फैमिली का नाम रोशन करेगा. उनकी दुआएं भी मेरे लिए वर्क की हमेशा. मैंने मेहनत की, लेकिन काफी लोगों का भी साथ मिला.
स्टेज पर परफॉर्म करते हुए क्या ख्याल रखते हैं ?
मुझे जब कंसर्ट करना होता है तो मैं वहां पूरे स्टेज पर पानी डलवा देता हूं, क्योंकि धूल आती है तो दिक्कत हो जाती है, इसके अलावा मैं खाता नहीं हूं, स्टेज पर जाने से पहले, ताकि मेरा पेट हल्का रहे
सिंगिंग रियलिटी शो हर चैनल पर आते हैं लेकिन आप उससे दूर ही रहते हैं कोई खास वजह?
यही वजह है कि उसमें कोई भी रिएल्टी है ही नहीं. सब कुछ बनावटी होता है. फेम गुरुकूल में था मैं, मुझे जावेद साहब और शंकर ने जिद्द करके हां करवाया था. उसी से अरिजीत सिंह निकले थे. एक काम किया और अच्छा नाम निकला.
सिंगिंग के अलावा क्या चीज़ें और पसंद हैं ?
कार का शौकीन हूं. मुझे बचपन से कार का शौक बहुत रहा है. इसकी वजह थी कि मेरे पापा मुझे कभी कार चलाने नहीं देते थे मारुती थी हमारी. मेरी उस वक्त की गर्लफ्रेंड और अभी की पत्नी ज्योति के साथ मुझे घूमने जाना होता था, तो भी नहीं मिलता था. एक बार तो मैंने डुप्लिकेट चाबी बनवा ली थी. साबून पर डाल कर. मजेदार बात यह है कि मेरे पापा ने फिर एसी की चाबी छुपा दी थी. तो हमलोग गर्मी में कार से घूमते थे बिना एसी की. मेरे पास अभी चार कार है. मुझे लांग ड्राइव पर जाना पसंद हूँ.मुझे याद है कि जब मैं मुंबई आया था. तो मरीन ड्राइव पर बैठना अच्छा लगता था. मैं और ज्योति वहां बहुत जाते थे ट्रैन से . वहां जब मैं देखता था कि लोग टैक्सी या कार से आ रहे हैं और जा रहे थे तो मुझे लगता था कि मैं भी कार लूँगा तो यहाँ आऊंगा. तो अब तक मैंने जितनी भी कार ली है, उससे मैं मरीन ड्राइव जरूर जाता हूँ. वहां कुछ समय बिताता हूँऔर फिर वापस आता हूँ. वहां जाना मुझे सुकून देता है और मेरे लिए वह नॉस्टेलजिया की तरह है
हम दिल दे चुके सनम का गीत तड़प तड़प आपके कैरियर का बहुत ही खास गाना रहा है?
मैं 1996 में रहमान के यहां जाता था.वहां मेरी महबूब जो कि गीतकार हैं, उनसे मेरी गहरी दोस्ती थी. उन्होंने काफी गानेलिखे थे. एक दिन बैठे थे. उन्होंने मुझे 1997 में कहा कि मेरा एक दोस्त है उसनेगाना लिखा है, तू सुन ले, इस्माइल दरबार का गाना है. एक दिन मुझे फोन आया इस्माइलका कि मिलना है. हमलोग बांद्रा में मिले, उन्होंने मुझे बाहर स्कूटर पर ही गाने कामुखड़ा सुनाया. इसके बाद हमलोग अंदर गए और रिकॉर्ड किया. इस्माइल ने कहा कि केकेअभी गाना फाइनल नहीं है, लेकिन फाइनल होगा तो तू ही आएगा. उसके बाद मैं भी भूलगया.इस्माइल ने कुछ दिनों बाद कहा कि ये गाना जिस फिल्म में जाने वाला था उसमेंनहीं गया. इसे संजय लीला भंसाली ने पसंद किया है. फिर हमलोगों ने इस गाने को रिकॉर्ड किया. फिर जबभंसाली ने इसको सुना. मैं जब रिकोर्डिंग स्टूडियो से बाहर निकल रहा था .इस्माइल ने भंसाली को रोते हुए देखा. उन्होंने कुछ कहा नहीं, बस पीठ पर हाथ रखाऔर चले गये. इस्माइल ने अंदर जाने पर बताया कि उन्हें गाना बहुत पसंद आया है. औरवह इसे कई बार रिपीट मोड पर सुन चुके हैं. कई लोगों को लगता है कि मेरा बहुत ब्रेकअप हुआ है तभी इस दर्द से मैं यह गाना गा पाया. मुझे इस तरह की बातें कम समझआती हैं. जबकि मेरे लिए जिन्दगी से बड़ी सीख कुछ नहीं है