Remakes Of Classic Movies:क्लासिक फिल्म एक रुका हुआ फैसला के रीमेक पर एक्टर के के रैना ने उठाये सवाल..

सीनियर एक्टर के के रैना ने इस इंटरव्यू में अपने क्लासिक शो ब्योमकेश बक्शी से लेकर आनेवाली क्लासिक रीमेक फिल्म एक रुका हुआ फैसला पर बातचीत की है.  

By Urmila Kori | September 11, 2024 9:33 PM
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remakes of classic movies:अभिनेता केके रैना हिंदी सिनेमा के उन सम्मानित नामों में शुमार हैं, जिनका थिएटर में भी खासा योगदान रहा है. वह टीवी का भी अहम हिस्सा रहे हैं. इनदिनों वह जी थिएटर के टेलीप्ले ‘पीछा करती परछाइयां’ और वेब सीरीज में व्यस्त हैं. उनके इस टेलीप्ले के अलावा उनके आइकोनिक प्रोजेक्ट्स और इंडस्ट्री में क्लासिक फिल्मों के रीमेक के ट्रेंड पर उर्मिला कोरी के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

टेलीप्ले के फॉर्मेट को आप कैसे देखते हैं. आप थिएटर एक्टर, डायरेक्टर और लेखक रहे हैं ?

यह नाटक है, जिसे आप टीवी पर देख सकते हैं. हमारे टेलीप्ले ‘पीछा करती परछाइयां’ की रिकॉर्डिंग के दौरान इस बात का ध्यान रखा गया कि दर्शकों को ऐसा लगना चाहिए कि आप कोई नाटक देख रहे हैं. अगर हम मिड शॉट, एंगल डाल दें, तो फिल्म बन जायेगी. उनका उद्देश्य थिएटर को बढ़ावा देना है, जिस वजह से मैंने भी ‘हां’ कह दिया. एक वक्त में पारसी थिएटर बहुत प्रसिद्ध था, लेकिन उसका कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. ऐसे में थिएटर प्ले को भी रिकॉर्ड करना, इसे हर जगह के दर्शकों को जोड़ने के साथ-साथ इस धरोहर को बचाता भी है.

क्या फिल्मों के लेखन में फिर से सक्रिय होना चाहते हैं ?

मेरा लेखन बहुत निजी रहा है. एक लेखक के तौर पर मैंने केवल दो फिल्में ही की है. वह राजकुमार संतोषी की ‘घातक’ थी. जब मैं लिखता हूं, तो स्वतंत्र रूप से लिखना चाहता हूं. जब दूसरे लोग दखल देते हैं, तो मुझे मजा नहीं आता. बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं, जहां अकेले लेखक को अपना प्रोजेक्ट लिखने की आजादी दी जाती है. निर्देशक को भी स्क्रिप्ट के साथ न्याय करना होता है. जब मैंने ‘चाइना गेट’ लिखा, तो हमारी मूल स्क्रिप्ट में कोई गाना नहीं था, लेकिन फिर उन्होंने छम्मा छम्मा… गाना जोड़ दिया. मैं राजकुमार संतोष से नाराज हो गया था, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि गाना हिट होगा और हिट हो गया. गाना क्रेज बन गया, तो बहुत सी चीजें बदल जाती हैं.

उसके बाद आपको ऑफर तो मिले ही होंगे?

मिले, लेकिन मैंने दृढ़ता से उन्हें मना कर दिया. मैंने वे फिल्में इसलिए लिखीं, क्योंकि राजजी मेरे दोस्त थे. वह बहुत अच्छे दोस्त रहे हैं. वह गोविंद निहलानी के मुख्य सहायक निर्देशक थे और मैं गोविंद के साथ विजेता कर रहा था, उस समय कॉस्ट्यूम लिए मेरे पीछे दौड़ते थे और हम दोस्त बन गये. हम अब भी अच्छे दोस्त हैं. इसके बाद उनकी फिल्में लिख दी.

आपसे बात हो रही है और व्योमकेश बक्शी के जिक्र के बिना बातचीत अधूरी रहेगी?

(हंसते हुए )हां अबतक तो बहुत सारा आ गया है, लेकिन हमारा वाला बेस्ट था और रहेगा. मैं अपनी पलकों को झपकाएं बिना ये बात कह सकता हूं. मैं दूरदर्शन पर अभी भी देख लेता हूं, जब भी उसका टेलीकास्ट आता है. उस सीरियल की खासियत थी कि बासु दा ने उसमें सादगी को जोड़ा था. कोई तामझाम नहीं किया है कि यहां से कैमरा एंगल ले लें वहां से ले लें. किरदार जिस तरह से लिखे गये थे, उसको उसी तरह से रखा गया है. इधर-उधर करने की कोशिश नहीं की गयी थी.

आपकी फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ का भी रीमेक आनेवाला है?

मुझे समझ नहीं आता कि लोग क्लासिक को टच क्यों करते हैं. क्लासिक है मतलब उसको वैसा ही रहना चाहिए. हमारी फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ ‘ट्वेल्थ एग्रीमेंट’ का हिंदी रीमेक थी, लेकिन वह फिल्म हर फ्रेम से इंडियन थी. अब उससे अलग आप क्या एडाप्ट करेंगे. सच कहूं तो अब तक जितने भी क्लासिक पर रीमेक फिल्में बनी हैं. मुझे वह पसंद नहीं आयी हैं. देवदास की ही बात करूं तो बंगाल की इस कहानी में भंसाली का देवदास जब लंदन से आता है. फिल्म उसी वक्त मेरे लिए खत्म हो गयी थी. सत्यजीत रे पूरे विश्व में अपनी पहचान रखते हैं. शतरंज के खिलाड़ी को छोड़कर उन्होंने कोई और हिंदी फिल्म नहीं बनायी थी. बंगाल को जिस तरह से वह अपनी कहानी में वहां रहते हुए जोड़ते थे, वहीं उनकी खासियत थी.

मौजूदा दौर में किसी प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए ऑडिशन दिया जाता है. क्या आप उसके लिए तैयार होते हैं ?

ऑडिशन देने में कोई बुराई नहीं है. मैं पूरी तरह से सहमत हूं, क्योंकि ऑडिशन निर्देशक का अधिकार है. दरअसल, वह किरदार के लुक से आश्वस्त होना चाहता है, लेकिन दुर्भाग्य से आजकल ऑडिशन लेने वाले युवा लड़के-लड़कियां, अभिनय की बारीकियों को नहीं जानते हैं और वे मुझे अभिनय सिखाने की कोशिश करते हैं. इससे मुझे चिढ़ होती है. वे नहीं जानते कि मैं कौन हूं. दुनिया में हर जगह अभिनेताओं का ऑडिशन लिया जाता है, लेकिन ऑडिशन फिल्म के निर्देशक को करना चाहिए. मैंने हॉलीवुड की एक फिल्म के लिए ऑडिशन दिया तो यह निर्देशक ने ही लिया था. हाल ही में मेरी एक वेब सीरीज आनेवाली है. उसके लिए निर्देशक ने मेरे अभिनय का ऑडिशन नहीं लिया, बल्कि लुक टेस्ट लिया. निर्देशक यह देखना चाहते थे कि मैं कैसा दिखूंगा.

क्या किसी फिल्म को छोड़ने का भी अफसोस है ?

कोविड के दौरान सीरीज फर्जी मुझे ऑफर हुई थी, जिसमें शाहिद कपूर थे. मुझे शाहिद कपूर के नाना की भूमिका निभानी थी, जिसे बाद में अमोल पालेकर ने निभाया था. मेरा कोविड टेस्ट उस वक्त पॉजिटिव हो गया था और मुझे मना करना पड़ा, लेकिन यह एक दिलचस्प चरित्र और चुनौतीपूर्ण भूमिका थी. उसके अलावा किसी और प्रोजेक्ट के लिए पछतावा नहीं है.

क्या फिल्मों के निर्देशन की भी भविष्य में प्लानिंग है ?

हां, लेकिन जिस तरह की फिल्में मैं करना चाहता हूं, उसके लिए कोई पैसा देने को तैयार नहीं है. मेरे पास मेरी लिखी हुई स्किप्ट भी है. पहला सवाल वे मुझसे पूछते हैं कि फिल्म का स्टार कौन होगा और मैं उन्हें बताता हूं कि मेरी कहानी में कोई हीरो नहीं है. फिर वे बहाना बनाते हैं कि हम कल मिलेंगे और यह चलता रहता है.

इंडस्ट्री में आपके दोस्त कौन हैं ?

इस इंडस्ट्री में दोस्ती फेक है. जब तक आप शूटिंग कर रहे हैं, ऐसा दिखायेंगे कि आपके लिए जान दे देंगे. जिस दिन फिल्म के पैकअप की घोषणा होगी, वे अपना बैग पैक कर लेंगे और आपको भूल जायेंगे. उदाहरण के लिए जब मैंने तनु वेड्स मनु की तो हम सभी दोस्त थे, लेकिन शूटिंग के बाद सब खत्म हो गया. जब मैंने तनु वेड्स मनु रिटर्न्स किया,तो हम फिर से बिछड़े दोस्तों की तरह मिले. मैं भी इसी नियम को फॉलो करता हूं. हम शूटिंग के बाद नहीं मिलते हैं. हमारा रिश्ता वहीं तक टिकता है, जहां तक पैसा और काम का सवाल है. मैं शराब नहीं पीता या पार्टी नहीं करता, तो मेरी दोस्ती लंबे समय तक वैसे भी नहीं चलती है. मेरे कुछ दोस्त हैं, जो थिएटर के दिनों से एक-दूसरे के संपर्क में हैं. पंकज कपूर दोस्त हैं और हम संपर्क में रहते हैं.

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