kooki movie review गैंगरेप पीड़िता की यह कहानी बलात्कार के कानून में संशोधन की करती है मांग

film kooki में नवोदित अभिनेत्री रीतिशा खाऊंद ने शानदार परफॉरमेंस दी है. सह कलाकारों ने भी उनका बखूबी साथ दिया है.

By Urmila Kori | June 29, 2024 9:00 AM
an image

फिल्म – kooki
निर्माता -जुन्मोनी देवी खाउंद
निर्देशक – प्रणब जे डेका
कलाकार -रीतिशा खाउंद, बोधिसत्त्व,राजेश तैलंग ,रीना रानी, दीपानिता शर्मा, देवोलीना भट्टाचार्य, रितु शिवपुरी और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – तीन

kooki movie गैंगरेप जैसे संवेदनशील मुद्दे पर है. इस मुद्दे को अब तक कई फिल्मकारों ने रूपहले परदे पर अलग – अलग ढंग से प्रस्तुत किया है. यह फिल्म अपराधियों को पकड़ने, उन्हें सजा देने या कोर्ट में बहसबाजी कर सजा दिलाने के इतर रेप पीड़िता के दर्द को दिखाती है. यह फिल्म बताती है कि शरीर के घाव भर जाने के बाद भी किस तरह से रेप पीड़िता लम्बे समय तक मानसिक और भावनात्मक तौर पर इस दर्द से हर दिन जूझती है,लेकिन फिल्म सिस्टम को झकझोरते हुए सवाल भी पूछती है कि बलात्कार सबसे जघन्य अपराध क्यों नहीं है. यह फिल्म बलात्कार के कानून में संशोधन की मांग करती है.

न्याय प्रणाली पर सवाल उठाती है कहानी
फिल्म की कहानी सोलह साल की लड़की कूकी (रीतिशा खाउंद )की है, जो परिवार की लाड़ली है.अपनी सहेली की चहेती है. वह आईपीएस अफसर बनना चाहती है। प्यार में पड़ना चाहती है और उसकी जिंदगी में पहले प्यार की दस्तक भी हो जाती है. वह अपनी जिंदगी को अपने सपने और अपनों के साथ ऐसे ही जीना चाहती है,लेकिन एक दिन वह गैंगरेप का शिकार हो जाती है. कानून की सक्रियता की वजह से उसके दोषियों को सजा भी मिल जाती है , लेकिन कूकी इस न्याय को अधूरा मानती है. न्याय प्रणाली से उसकी शिकायत है. वह सवाल पूछती है कि बलात्कार को जघन्य अपराध में क्यों नहीं माना जाता है. हत्या के लिए मृत्युदंड की सजा है तो बलात्कार के लिए क्यों नहीं.फिल्म की कहानी इसी सवाल पर खत्म हो जाती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां
फिल्म अपने विषय की वजह से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचने की हकदार है, ताकि इस मुद्दे पर चर्चा हो और कानून में संसोधन हो. यही वजह है कि इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए इसकी पूरी टीम बधाई की पात्र है. फिल्म को दो भागों में बांटा गया है. घटना से पहले की कूकी और घटना के बाद की.फिल्म के शुरुआत हलके – फुल्के पलों से होती हैं ,जो फिल्म के ट्रीटमेंट को प्रभावी बनाता है.फिल्म का गैंगरेप वाला दृश्य दिल को दहलाता है,लेकिन कुछ भी सेन्सेशनलाइज नहीं किया गया है. जो फिल्म की उम्दा सोच को दर्शाता है.फिल्म का विषय बेहद सशक्त है , लेकिन फिल्म की अपनी खामियां भी हैं.फिल्म अपने मूल मकसद में आने में थोड़ा ज्यादा समय लेती है और फिर फिल्म के सेकेंड हाफ में फिल्म के एंडिंग तक पहुँचने की हड़बड़ी लगती है. कूकी के माता – पिता की मानसिक स्थिति को भी थोड़े ठहराव के साथ दिखाने की जरुरत थी. फिल्म का क्लाइमेक्स फिल्म को एक लेवल ऊपर लेकर चला जाता है. फिल्म का क्लाइमेक्स इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएससपी है.इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है.दूसरे पहलुओं में कहानी को स्थापित असम में किया गया है. वहां की लैंडस्केप,संस्कृति,खानपान और वेशभूषा को कहानी में बखूबी जोड़ा गया है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

रीतिशा सहित सभी कलाकारों का बेहतरीन परफॉरमेंस
अभिनय की बात करें तो फिल्म में कूकी की शीर्षक भूमिका रीतिशा ने की है. रीतिशा ने अपनी पहली के लिहाज से काफी उम्दा काम किया है, जिस तरह से फिल्म के पहले भाग में वह एक आत्मविश्वास से भरपूर लड़की की भूमिका में दिखीं हैं. सेकेंड हाफ में शारीरिक और मानसिक तौर पर टूटी हुई लड़की के दर्द को भी उन्होंने इस छोटी उम्र में भी बखूबी दर्शाया है. फिल्म के क्लाइमेक्स में उनका मोनोलॉग वाला दृश्य उनके अभिनय की क्षमता को दर्शाता है. युवा कलाकारों में प्रेमी की भूमिका निभा रहे बोधिसत्व और सहेली की भूमिका निभा रही नैंसी सिंह ने भी अच्छा काम किया है.राजेश तैलंग मंझे हुए अभिनेता हैं,उन्होंने पूरी सहजता के साथ अपने किरदार को निभाया है.फिल्म में रीना रानी, रितु शिवपुरी, देबोलिना और दीपानिता शर्मा भी अपनी -अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करती हैं.

Exit mobile version