kota factory फेम रंजन राज ने कहा मुझे पता है कि मुझे कपूर सरनेम वाले किरदार नहीं मिलेंगे. .

kota factory में बालमुकुंद मीना की भूमिका निभाते हुए रंजन राज इस किरदार के बोलने के लहजे को पकड़ना सबसे मुश्किल करार देते हैं.

By Urmila Kori | June 23, 2024 10:05 AM

kota factory का सीजन 3 इनदिनों ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम कर रहा है। बिहार के अरवल के रंजन राज इस सीरीज में बालमुकुंद की भूमिका में हैं. निजी जिंदगी में भी वह आईआईटी का हिस्सा रह चुके हैं .इस शो और उनकी जर्नी पर हुई बातचीत 

यह सीरीज एक्टर के तौर पर कितनी आपके लिए खास रही है?

बहुत ज़्यादा ,मुझे जब यह सीरीज ऑफर हुई थी ,तो मैं कहीं किसी और शूट में था. इस सीरीज से पहले मैंने एक दिन , पांच दिन,तो कभी दस दिन की शूटिंग की थी,लेकिन यह पहला मौका था. जब तीस दिनों के लिए लगातार शूटिंग की थी. यह अपने आप में एक्टर के तौर बहुत कुछ सीखा गया था. टीवीएफ में  कमाल के क्रिएटिव लोग हैं.उन्होंने बहुत कुछ एक्टिंग और क्राफ्ट के बारे में सिखाया है.


पहला सीजन टीवीएफ ने खुद से रिलीज किया दूसरे सीजन से नेटफ्लिक्स के जुड़ने से चीजें कितनी आसान हुई है ?

लोग अक्सर कहते हैं कि बड़े प्रोडक्शन से जुड़ने चीजें आसान हो गयी.  सेट पर बहुत सहूलियत  मिलने लगती है, लेकिन मैं अपनी बात करूं तो मुझे इतना कम्फर्ट एक्टर के तौर पर चाहिए ही नहीं. मुझे अपने अंदर हलचल पसंद है. हाँ एक फायदा, जो हुआ वो हमारी फीस बढ़ गयी.  पहले सीजन में कहा गया था कि छोटे बजट का शो है,तो फीस कम मिलेगी, लेकिन नेटफ्लिक्स के जुड़ने से फिर हमारा बजट बढ़ गया. 


हर सीजन किरदार का सुर पकड़ने में सबसे बड़ा चैलेंज क्या रहता है ?

मुझे बस टोन पकड़ना होता है वैभव जी ,उदय जी वाला . असल में हम इस तरह से निजी जिंदगी में बात नहीं करते हैं, तो आपको बस रीडिंग में करते हुए इसका ध्यान रखना पड़ता है. कुछ ही दिनों में ही आप सुर पकड़ लेते हैं. 


इस सीरीज में कई युवा कलाकार हैं ,कलाकारों के बीच क्या प्रतिस्पर्धा भी रहती है ?

अंदर तो होती होगी, लेकिन सेट पर वह नहीं दिखती है, जो सही भी है.इससे काम आसान हो जाता है. 

 
पहले सीजन से अब तक लोकप्रियता में क्या इजाफा पाते हैं ?

यह तो तय होता है कि जैसे – जैसे काम मिलता जाता है. आपको पसंद करने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ने लगती है। कॉलेज  में स्टेज शो करते हुए शुरुआत में पचास लोग जानते थे. उसके बाद पूरा कॉलेज जानने लगा था.मैं बताना चाहूंगा कि तीसरे सीजन के एक सीक्वेंस में हम जो क्रिकेट खेल रहे हैं. उस दौरान आसपास के दूसरे कैंपस के स्टूडेंट्स भी आ गए थे और हमारे नाम लेकर हमको चीयर कर रहे थे.


इस सीरीज की लोकप्रियता ने आपको एक खास इमेज में भी बाँध दिया है, आपको ज़्यादातर हॉस्टल वाले ही किरदार ही ऑफर हुए हैं   ?

हां ,इस सीरीज की लोकप्रियता के बाद मुझे सिर्फ हॉस्टल ही नहीं बल्कि ज्यादातर छोटे शहर के रहने वाले किरदार ही ऑफर हुए हैं , लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं हुई क्योंकि इंडस्ट्री ऐसे ही चलती है. आप किसी किरदार में पॉपुलर हो जाते हैं ,तो लोग आपको वैसे ही किरदारों में कास्ट करना शुरू कर देते हैं। अचानक से मुझे कपूर या सिंघानिया सरनेम वाले किरदार नहीं मिल जाएंगे। यह मुझे पता है। मुझे धैर्य रखकर काम करते रहना है। देर सवेर चीजें बदलेंगी। 


संघर्ष क्या कभी परेशान भी करता है ?

सच कहूं तो बहुत काम  की इच्छा भी नहीं होती है.काम करके गायब होने का मन करता है. लोगों से मिलना जुलना पसंद है. फेमस या पैसे से ज़्यादा मेरे लिए यह मायने रखता है कि जो भी  मौके मिले वो ऐसा ना लगे कि इसने वेस्ट कर दिया.जब भी लोग मुझे किसी किरदार में देखें तो उन्हें लगे कि रंजन राज से इसे पूरी ईमानदारी के साथ जिया है.    


आईआईटी छोड़ एक्टर बनने का फैसला लेना कितना मुश्किल था  ?

फिल्में देखना हमेशा से पसंद था, लेकिन बिहार में रहते हुए सिर्फ पढाई के अलावा और कुछ नहीं कर पाता था. आईआईटी बॉम्बे आकर मालूम पड़ा कि यहां पर पढाई के साथ – साथ  ये भी कर सकते हैं. यहाँ पर एक्स्ट्रा करिकुलर  करने पर हॉस्टल को पॉइंट्स मिलते थे. उसी चक्कर में लोगों ने स्टेज पर चढ़ा दिया और मेरे अंदर एक लालसा हमेशा से  तो थी ही. उसके बाद इतनी तारीफ कर दी तो  चस्का ही लग गया. ये भी समझ आया कि आईआईटी करने के बाद एक सेटल नौकरी मिल जायेगी,लेकिन ख़ुशी इसी में मिलेगी क्योंकि ये मेरा पैशन है और मैंने अपना फैसला कर लिया. 


आपकी जिंदगी में जीतू भैया जैसा कोई रहा है ?

मैं इस मामले में लकी खुद को कहूंगा कि मेरी निजी जिंदगी में कदम – कदम पर मुझे जीतू भैया जैसे मिले हैं.आज अगर मैं एक्टर बन पाया हूं,तो इनलोगों की सीख ही थी.जो मैंने आईआईटी की पढ़ाई को बीच में छोड़कर अभिनय में संघर्ष करने का फैसला किया। 


बिहार से कितना जुड़ाव रख पाते हैं ?

एक प्रसिद्ध कहावत है कि आप बिहार से बिहारी को निकाल सकते हैं लेकिन एक बिहारी के मन से बिहार को कभी नहीं। मैं बिहारी हूं. यह मेरी पहचान है और मरते दम तक रहेगी. यह कभी बदलेगी नहीं. बिहार ज्यादा जा नहीं पाता हूं, क्योंकि फ्लाइट लेकर भी कई घंटों का सफर ट्रेन से फिर बस से करने के बाद अपने घर तक पहुंच पाता हूं ,तो ज्यादा आना जाना नहीं कर पाते हैं.

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