Lahore Confidential Review : कमजोर क्लाइमेक्स ने फिल्म को औसत बना दिया, यहां पढें रिव्यू
Lahore Confidential Review Karishma Tanna Richa Chadha Arunoday Singh Khalid Siddiqui Nikhat Khan bud : भारत और पाकिस्तान के खुफिया विभाग रॉ और आईएसआई के काम करने के तरीके पर अब तक कई फिल्में और वेब सीरीज बन चुकी हैं. लाहौर कॉन्फिडेंशियल ने इसी संवेदनशील रिश्ते को थ्रिलर के साथ साथ रोमांटिक बैकड्रॉप पर बयां किया है.
Lahore Confidential Review
फ़िल्म : लाहौर कॉन्फिडेंशियल
निर्देशक : कुणाल कोहली
कलाकार : रिचा चड्ढा,अरुणोदय सिंह,करिश्मा तन्ना,और अन्य
रेटिंग : ढाई
भारत और पाकिस्तान के खुफिया विभाग रॉ और आईएसआई के काम करने के तरीके पर अब तक कई फिल्में और वेब सीरीज बन चुकी हैं. लाहौर कॉन्फिडेंशियल ने इसी संवेदनशील रिश्ते को थ्रिलर के साथ साथ रोमांटिक बैकड्रॉप पर बयां किया है. रोमांटिक से ज़्यादा हनी ट्रैप कहना ज़्यादा सही होगा. हनी ट्रैप इस फ़िल्म का सबसे अहम पहलू है. इस फ़िल्म की नींव ही इसी पर है.
रॉ की कोशिश है कि वह अपनी महिला एजेंट के ज़रिए पाकिस्तान के अहम लोगों को फंसाकर उनसे खुफिया जानकारी हासिल तो वही पाकिस्तान के आइएसआई की कोशिश है कि वह अपने पुरुष जासूस के ज़रिए भारतीय दूतावास की महिला अधिकारी को हनी ट्रैप में उलझा लें ताकि वहां की सारी जानकारी को हासिल कर सकें.
हनी ट्रैप के इस प्लॉट में भारत से अनन्या (रिचा चड्ढा) पाकिस्तानी दूतावास में भेजी गयी है ताकि नए आतंकी सरगना वसीम अहमद खान की जानकारी रॉ को मिल जाए हालांकि अनन्या इस सबसे अंजान है.वह एक इमोशनल लड़की है.उसे शेरों शायरी पसंद है.वह भारतीय दूतावास में मीडिया अटैची के तौर पर काम करती है. पाकिस्तान में अपनी नयी भूमिका के बारे में उसे ज़्यादा जानकारी नहीं है.
पाकिस्तान में उसकी मुलाकात रउफ (अरुणोदय) से होती है. रॉ एजेंट तृप्ति (करिश्मा तन्ना अनन्या को रउफ से मुलाकातें बढ़ाने के लिए कहती है क्योंकि वह पाकिस्तान का रसूखदार व्यक्ति है ताकि उससे आतंकी सरगना वसीम अहमद खान के बारे में पता लगा जाए लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आ जाता है जब अनन्या रउफ के प्यार में पड़ जाती है.जो असल में एक हनी ट्रैप होता है.
एक के बाद एक भारतीय एजेंट की मौत होने लगती है. क्या अनन्या रउफ का असल चेहरा जान पाएगी और उसे उसकी सजा दे पाएगी फ़िल्म इसी की कहानी आगे कहता है.फ़िल्म की कहानी एंगेजिंग है लेकिन क्लाइमेक्स बहुत कमजोर रह गया है.अंत को देखते हुए महसूस होता है कि सबकुछ जल्दीबाजी में समेट दिया गया. फ़िल्म की अवधि वैसे भी मात्र एक घंटे आठ मिनट की है थोड़ा और समय क्लाइमेक्स को दिया जा सकता था. जिससे यह फ़िल्म प्रभावी बन सकती थी.
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फ़िल्म भारत पाकिस्तान पर होने के बावजूद देशभक्ति की बयानबाजी से दूर है।जो इस फ़िल्म का अच्छा पहलू है हां अनसंग हीरोज के पहलू को फ़िल्म के एक दृश्य के ज़रिए ही सही मजबूती से रेखांकित करती है. फ़िल्म का अंत कुछ इस तरह से किया गया है कि सीक्वल की गुंजाइश बनती है.
अभिनय की बात करें तो अरुणोदय सिंह अपनी छाप छोड़ते हैं. उनके किरदार में कई शेड्स हैं. जिसे उन्होंने बखूबी जिया है. रिचा चड्ढा ने भी अपने हाव भाव और बॉडी लैंग्वेज से अनन्या के किरदार को खूबसूरती के साथ निभाया है.करिश्मा तन्ना का किरदार बोल्ड है और अपने अभिनय की छाप छोड़ने में वह कामयाब रही हैं.वह फ़िल्म में खूबसूरत भी नज़र आयी हैं.बाकी के किरदार ठीक ठाक हैं.उन्हें करने के लिए कुछ खास नहीं था.फ़िल्म का गीत संगीत औसत रह गया है. फ़िल्म का कैमरा वर्क अच्छा है. कुलमिलाकर यह एक फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है.
Posted By : Budhmani Minj