Ludo Review : यह लूडो का खेल कुछ ज़्यादा ही लंबा खिंच गया है… यहां पढ़ें रिव्यू
ludo movie review abhishek bachchan rajkummar rao pankaj tripathi faatima sana sheikh sanya malhotra asha negi bud : हिंदी फिल्मों में आमतौर पर शतरंज के खेल के रेफरेंस पर कई फिल्में बनी हैं और संवाद लिखे गए हैं. अनुराग बासु की लूडो का ट्रेलर लॉन्च हुआ तो अलहदा लगा. लूडो का रेफरेंस नया था. लेकिन अफसोस यह रेफरेंस तक ही फिल्म में सीमित रह गया. उन्होंने लूडो की बिसात तो बिछा दी लेकिन लाल पीली हरी नीली गोटियों को उनके घरों तक उस रोचक ढंग से नहीं पहुंचा पाए हैं.
Ludo Movie Review
फिल्म : लूडो
कलाकार : पंकज त्रिपाठी, राजकुमार राव, अभिषेक बच्चन, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, आदित्य रॉय कपूर, रोहित सुरेश सर्राफ, पर्ल माने,आशा नेगी, शालिनी वत्स
निर्देशक : अनुराग बासु
ओटीटी चैनल
रेटिंग ढाई
हिंदी फिल्मों में आमतौर पर शतरंज के खेल के रेफरेंस पर कई फिल्में बनी हैं और संवाद लिखे गए हैं. अनुराग बासु की लूडो का ट्रेलर लॉन्च हुआ तो अलहदा लगा. लूडो का रेफरेंस नया था. लेकिन अफसोस यह रेफरेंस तक ही फिल्म में सीमित रह गया. उन्होंने लूडो की बिसात तो बिछा दी लेकिन लाल पीली हरी नीली गोटियों को उनके घरों तक उस रोचक ढंग से नहीं पहुंचा पाए हैं. जैसा लूडो के खेल में गोटियों के घर तक पहुँचने की जद्दोजहद होती है.
कहानी पर आते हैं फ़िल्म की चार मुख्य पात्रों की कहानियां हैं. बिट्टू (अभिषेक बच्चन ) अपनी पत्नी(आशा नेगी) और बेटी के साथ खुश था. लेकिन अचानक उसे जेल हो जाती है, वापस आता है तो पाता है उसकी पत्नी उसके ही एक दोस्त से शादी करती है, बिट्टू को अपनी बेटी से मिलने की तड़प है, ऐसे में उसकी कहानी में एक मोड़ आता है, जब वह एक और बच्ची से टकराता है.
आलोक गुप्ता उर्फ़ आलू (राजकुमार राव ) पिंकी ( फातिमा सना शेख) का दीवाना है, लेकिन उसके शादी किसी और से हो जाती है. पिंकी का पति (परितोष त्रिपाठी) का दूसरी लड़की से अफेयर है. एक हादसा घटता है, आलू पिंकी की जिंदगी में वापस लौटता है. राहुल (रोहित), श्रीजा(पर्ल माने ) दोनों एक अजीबोगरीब हादसे के बाद टकराते हैं, अंडर डॉग रहे इनदोनो की ज़िंदगी अप्रत्याशित घटनाओं से भर जाती है.
आकाश (आदित्य) वॉइस आर्टिस्ट है, उसकी गर्लफ्रैंड अहाना ( सान्या) के साथ उसका एक सेक्स टेप पोर्न साइट लीक हो गया है. आहना की शादी कुछ ही दिनों में किसी और से होने वाली हैं और ये सभी कहानियां और पात्र जुड़े हुए हैं राहुल सत्येंद्र उर्फ़ सत्तू भईया (पंकज त्रिपाठी ) से, जो बड़ा डॉन है . सभी कहानियों के पात्रों की परेशानी का कारण और निवारण सत्तू भइया ही हैं. सत्तू के जीवन को घटनाएं किस तरह से सभी कहानी और किरदारों को प्रभावित करती है. यही आगे की कहानी है.
कहानी शुरू होती हैं तो रुचि जगाती हैं लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ती हैं. उलझती चली जाती है. चारों कहानियों में किसी भी कहानी में नयापन नहीं है. कई फिल्मों की झलक उनमें दिखती है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स भी बहुत कमजोर है. बाकी की कसर फ़िल्म की लंबाई कर देती है. ढाई घंटे की इस फ़िल्म से कुछ मिनट कम करने की बहुत जरूरत थी. अनुराग बासु का सूत्रधार स्टाइल बेतुका है, संवाद समझ नहीं आये हैं.
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अभिनय की बात करें तो फ़िल्म में कलाकारों का जमावड़ा है लेकिन बाज़ी राजकुमार राव मार ले जाते हैं. इसमें कोई हैरानी भी नहीं है. उन्होंने आलू के रूप में, अपने बचपन के प्यार के लिए जो समर्पण दिखाया है वह खास है. उनका किरदार फ़िल्म को मज़ेदार बनाता है यह कहना गलत ना होगा।. फातिमा सना, सान्या मल्होत्रा औसत रही हैं. सान्या को थोड़ी अलग तरह की किरदार अब करने चाहिए. वे टाइपकास्ट होती जा रही हैं. अभिषेक बच्चन हमेशा की तरह इस बार भी पूरी फिल्म में एक तरह के हाव भाव में ही दिखते हैं. पंकज त्रिपाठी अपने चित परिचित अंदाज़ में नज़र आए है. इनायत वर्मा, रोहित, पर्ल,परितोष त्रिपाठी और शालिनी वत्स सभी ने दिए गए स्पेस में अच्छा काम किया है.
फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. हर किरदार से जुड़ा उसका परिवेश अच्छा बन पड़ा. फ़िल्म के संवाद सुने सुनाए और औसत हैं. फ़िल्म का गीत संगीत उसके साथ न्याय करते हैं. कुलमिलाकर अगर आपके पास ज़्यादा फ्री टाइम है तो इस टाइमपास फ़िल्म पर खर्च कर सकते हैं.
Posted By : Budhmani Minj