सोनी लिव की हालिया रिलीज वेब सीरीज महारानी 2 में एक बार फिर भीमा भारती के किरदार में अभिनेता सोहम शाह ने अपने अभिनय से गहरी छाप छोड़ी है. वे अपने किरदार को लार्जर देन लाइफ करार देते हैं. सोहम कहते हैं कि खुद को भीमा भारती के किरदार में परदे पर देखना उन्हें एक अलग ही खुशी देता है. उनके इस किरदार,इंडस्ट्री में एक्टर और निर्माता के तौर पर अब तक की जर्नी पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत.
बिहार की पृष्टभूमि पर आधारित इस शो की कहानी भी बिहार की असली राजनीति प्रेरित है?
क्रिएटिव लोग अपने आसपास की चीज़ों से प्रेरणा लेते हैं. इस सीरीज के राइटर्स भारतीय ही हैं,तो भारत की राजनीति से ही प्रेरित होंगे. जो भी सीरीज में दिखाया गया है. उस सब से आम जनता वाकिफ हैं.
सीरीज में उम्दा कलाकारों का जमावड़ा है,क्या कभी असुरक्षा की भावना आती थी?
मुझे असुरक्षा की भावना नहीं आती है. भीमा का किरदार लाइफटाइम में मिलने वाला किरदार है. सभी सेट पर साहेब- साहेब बुला रहे हैं. इसकी फीलिंग्स ही अलग होती है. मैं बच्चन साहब को देखकर पला-बढ़ा हूं,तो मुझे डॉयलॉगबाज़ी और स्वैग बहुत पसंद है. ये किरदार में मुझे जमकर ये करने को मिला है. एक्टिंग में नवरस होते हैं. भीमा के किरदार में इतने लेयर्स हैं कि सात रस कवर हो जा रहा है,तो मैं दूसरे किसी एक्टर्स से इनसिक्योर क्यों महसूस करूंगा.
आप उन एक्टर्स में से रहे हैं,जो किरदार के लुक के साथ बहुत प्रयोग करते हैं?
भीमा का किरदार मैं पतले दुबले में भी कर सकता था,लेकिन उसका बढ़ा वजन मुझे एक पावर देता है. आपका कद बढ़ाता है. ये लोगों को दिखाने के लिए नहीं,बल्कि आपकी एक्टिंग को सपोर्ट करने के लिए होता है.
इस सीरीज ने एक एक्टर के तौर पर आपकी पहचान को और कितना सशक्त बनाया है?
इस किरदार का इंतज़ार मुझे दस सालों से था. मैंने अब तक जो भी काम किया है वो सीमित दर्शकों के लिए किया था. चाहे वो तलवार हो तुम्बाड हो या फिर शिप ऑफ थीसियस हो. ये फिल्में मेरे घरवालों को कभी पसंद नहीं आयी. मैंने अपनी मां को तुम्बाड के इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में भी भेजा था ताकि वो देख सकें कि उनके बेटे ने कैसी फ़िल्म बनायी है. अंग्रेज लोग देखने आएं हैं. स्टैंडिंग ओवेशन दे रहे हैं. मैं बताना चाहूंगा कि मेरी मां सो गयी थी. बाहर आकर उन्होंने कहा कि कितनी डरावनी फ़िल्म थी. तू नॉर्मल फ़िल्म नहीं बना सकता है. मतलब दुनिया बोले आपने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन घर से आपको वो तारीफ नहीं मिलती तो सबकुछ अधूरा लगता है. महारानी देखने के बाद मेरे घरवालों को लगा कि मैंने कुछ किया है. वो मेरी अब तक की सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस इसे मानते हैं.
आपके अभिनय की तारीफ होती है,तो आप किस तरह से उसे सेलिब्रेट करते हैं?
कार या घर खरीदकर मेरा सेलिब्रेशन नहीं होता है. मैं बहुत ही फूडी हूं. मुझे पराठे,छोले भटूरे ये सब बहुत पसंद है. मैं पिज्जा बर्गर वाला आदमी नहीं हूं तो अपना पसंदीदा खाना खाकर ही सेलिब्रेट करता हूं.
एक्टर के साथ-साथ आप प्रोड्यूसर भी हैं,इस दोहरी जिम्मेदारी को कैसे परिभाषित करेंगे?
एक्टिंग मेरा पहला प्यार है. प्रोडक्शन में तो मैं चला गया,क्योंकि शिप ऑफ थीसियस कोई बना नहीं रहा था. तुम्बाड को पांच सालों से कोई प्रोड्यूसर नहीं मिला था,तो मैंने वो जिम्मेदारी ले ली. प्रोडक्शन में बहुत सारा समय जाता है. एक्टिंग के दौरान मुझे लगता है कि मैं छुट्टियों पर हूं. चालीस-पचास दिन काम करो. डाइट पर आपका ध्यान रखने के लिए एक बॉय होता है. आपके लुक का पूरा ध्यान दिया जाता है. दूसरे एक्टर्स से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. नए शहर को जानने का मौका मिलता है. महारानी की वजह से मैंने भोपाल शहर को जाना और मुझे उससे लगाव हो गया. वैसे प्रोड्यूसर का भी मुझे अब चस्का लग गया है. मैं खुद को लकी मानता हूं कि मुझे इतना मौका मिल. मैं जहां से आता हूं. मेरी सात पुश्तों का फिल्मों से कोई वास्ता नहीं रहा है. एक्टिंग में मेरी कोई फॉर्मल ट्रेनिंग भी नहीं है. हमारे गांव गंगानगर से 60 किलोमीटर दूर फिल्मों की शूटिंग होती थी. जिसको देखने के लिए जाता था. छोटी उम्र से ही एक्टिंग से लगाव हो गया था, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी भी थी इसलिए छोटी उम्र में मुम्बई नहीं आ पाया. एक वक्त था जब हमारे घर में पैसों की किल्लत होती थी. आज मैंने एक अच्छा बिजनेस स्थापित कर लिया है और फिल्मों में भी ठीक ही कर रहा हूं.
आपने एक्टिंग सीखी नहीं है,ऐसे में आपके एक्टिंग का प्रोसेस क्या रहता है?
स्पिलबर्ग साहब ने एक बात कही है कि अगर आप सही लोगों के बीच रहोगे,तो भी बहुत कुछ सीख लोगे. मेरे साथ वही हुआ है. शिप ऑफ थीसियस की टीम कमाल की थी. मैं बाहर की दुनिया से आया था. मैंने सबसे पहले सीखा कि क्या नहीं करना है. अभी भी वही सीख रहा हूं. क्या करना है. वो बहुत बाद में आएगा. सीन को करते हुए नहीं सोचता कि मैं जादू कर दूं कि सभी का ध्यान मुझ पर आ जाए. कोशिश होती है कि ओवर ना कर दूं. रायता ना फैला दूं. मैं गंगानगर की दुनिया से आता हूं, जहां साहित्य पढ़ने की आदत नहीं है. मैंने वर्ल्ड सिनेमा नहीं देखा था. हॉलीवुड की चार फिल्में ट्रू लाइज, जुरासिक पार्क,टाइटैनिक और स्पीड. रॉबर्ट डी नीरो,अल पचीनो,मर्लिन ब्रांडो इन सबसे मैं अंजान था. यहां आकर मैंने फिल्में देखनी शुरू की. उससे भी कुछ सीखा.
इनदिनों चर्चा है कि ओटीटी की वजह से लोग थिएटर नहीं जा रहे हैं?
मुझे लगता है कि राइटर्स की वजह से लोग थिएटर नहीं जा रहे हैं. हमें राइटिंग पर और इन्वेस्ट करने की ज़रूरत है. लोगों को एंड पता है तो वो फ़िल्म नहीं देखेंगे.
आपके आनेवाले प्रोजेक्ट्स कौन से हैं ?
एक मैं लव रंजन के लिए फ़िल्म कर रहा हूं. यह एक कॉमेडी फिल्म है. इसमें नुसरत है,नोरा है. एक शो कर रहा हूं सोनाक्षी सिन्हा के साथ दहाड़. एक फ़िल्म और कर रहा हूं. उसमें एक्टर के साथ-साथ प्रोड्यूसर भी हूं. ये काफी अलग फ़िल्म होगी. एक ही किरदार है.दूसरा कोई है ही नहीं फ़िल्म में.