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Meenakshi Sundareshwar Review : उम्दा बनते बनते औसत रह गयी ‘मीनाक्षी सुंदरेश्वर’

Meenakshi Sundareshwar Review : हिंदी सिनेमा में रोमांटिक फिल्मे बनाने के लिए धर्मा प्रोडक्शन की अपनी खास पहचान है. नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही मीनाक्षी सुंदरेश्वर धर्मा प्रोडक्शन की एक और प्रस्तुति है. फिल्म अरेंज मैरिज और लॉन्ग डिस्टेंस में बंधे एक शादी शुदा जोड़े की जर्नी है.

Meenakshi Sundareshwar Review

फिल्म – मीनाक्षी सुंदरेश्वर

निर्देशक – विवेक सोनी

प्लेटफार्म – नेटफ्लिक्स

कलाकार – सान्या मल्होत्रा , अभिमन्यु दसानी और अन्य

रेटिंग ढाई

हिंदी सिनेमा में रोमांटिक फिल्मे बनाने के लिए धर्मा प्रोडक्शन की अपनी खास पहचान है. नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही मीनाक्षी सुंदरेश्वर धर्मा प्रोडक्शन की एक और प्रस्तुति है. फिल्म अरेंज मैरिज और लॉन्ग डिस्टेंस में बंधे एक शादी शुदा जोड़े की जर्नी है. फिल्म का प्लाट काफी एंगेजिंग है लेकिन पटकथा में खामियों की वजह से यह प्यारी सी लव स्टोरी उम्दा बनते बनते औसत रह गयी है.

फिल्म की कहानी अपोजिट अट्रैक्ट वाला मामला है. मदुरई के सुंदरेश्वर (अभिमन्यु दासानी) और मीनाक्षी (सान्या मल्होत्रा) की कहानी है. मीनाक्षी को फिल्मों से लगाव है और वह रजनीकांत की फैन है वही सुंदरेश्वर को फिल्म देखते हुए नींद आती है. मीनाक्षी की किताबों से दोस्ती है तो सुंदरेश्वर किताबों से क्रिकेट खेलता और अन्य है. मीनाक्षी हंसती ज़्यादा है तो सुंदरेश्वर को हंसने से ज़्यादा मुस्कुराना पसंद है.

दोनों की अरेंज मैरिज हो जाती है . शादी के अगले दिन ही सुंदरेश्वर को जॉब के लिए बंगलोर जाना पड़ जाता है. कहानी का ट्विस्ट ये है कि वह वहां पर अपनी पत्नी को नहीं ले जा सकता है क्यूंकि उसकी कम्पनी में बैचलर्स को ही प्राथमिकता दी जा रही है. इंजीनियर सुंदरेश्वर की यह पहली जॉब है. वह इसे किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता है.

ऐसे में सुंदरेश्वर को अपनी शादी की बात छिपानी पड़ती है. मीनाक्षी भी सुंदरेश्वर का साथ देती है. अरेंज मैरिज वाली यह शादी लॉन्ग दिसतांवे रिलेशनशिप में तब्दील हो जाती है. दोनों इस शादी को सँभालने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन परेशानियां दोनों के बीच आ ही जाती है. क्या मीनाक्षी और सुंदरेश्वर का रिश्ता इस उतार चढ़ाव में टिक पायेगा. यही फिल्म की कहानी है फिल्म का प्लाट काफी दिलचस्प है.

फिल्म की कहानी की प्रस्तुति दिलचस्प है. शुरुआत के एक घंटे फिल्म काफी एंटरटेनिंग है. सुंदरेश्वर के बॉस और भतीजे के ज़रिये कहानी में ह्यूमर को जोड़ा गया है लेकिन अगले एक घंटे इस प्रेम कहानी में परेशानियों का जिक्र जो भी हुआ है वह उस कदर प्रभावी नहीं लगते हैं जो लेखन की खामियों को उजागर करते हैं. फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत कमज़ोर है. जिसे बहुत जल्दीबाज़ी में खत्म कर दिया गया है और यह बात फिल्म देखते हुए बहुत अखरती है.

अभिनय की बात करें यह सान्या मल्होत्रा की फिल्म है. जिस तरह से उन्होंने अपने किरदार को जिया है. वह प्रभावित करता है. अभिमन्यु दसानी भी अपनी छाप छोड़ते हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपने अभिनय के साथ न्याय किया है.

लव स्टोरी फिल्मों को खास बनाने में गीत संगीत की अहम भागीदारी रही है. इस फिल्म में यह पहलू अहम है. इस फिल्म के गीत राजशेखर ने लिखे हैं. रत्ती रत्ती रेजा रेजा गाना कहानी में नयापन जोड़ता है तो तू यही है , दिल तीतर बितर सुनने लायक बन पड़े हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी की तारीफ करनी होगी जो आँखों को सुकून देती है. फिल्म के संवाद और दूसरे पहलु कहानी के अनुरूप हैं.

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