डीडी पर प्रसारित होने वाले पॉपुलर शो मैं कुछ भी कर सकती हूं को हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में अवार्ड से सम्मानित किया गया. इस शो चेहरा मीनल वैष्णव का कहना है कि एंटरटेनमेंट किस तरह से बदलाव ला सकता है. यह शो इसकी मिसाल है. इस शो के अगले सीजन पर उर्मिला कोरी की बातचीत
मैं कुछ भी कर सकती हूं जब आपने ये शो साइन किया था तो आपको लगा था कि डीडी का यह शो इतना लोकप्रिय और बदलाव लाने वाला शो बन पाएगा ?
मैं जब इस शो से जुड़ी तो मुझे ये भी नहीं पता था कि फिरोज़ सर कौन हैं. एक्टिंग से मेरा लेना देना नहीं था ना मैंने एक्टिंग सीखी थी ना कभी थिएटर किया था. दोस्तों ने बोला एड के लिए ऑडिशन देने के लिए मैंने शौकिया तौर पर ऐसे ही मैं कुछ भी कर सकती हूं से भी जुड़ गई. मुझे लगा फिरोज़ सर कोई एनआरआई हैं. सोशल वर्क करना चाहते हैं इसलिए कुछ बना रहे हैं. धीरे धीरे काम करते हुए मैंने उनके विजन को जाना कि ये लोग पैसा कमाने के लिए शो नहीं बनाना चाहते हैं बल्कि ग्राउंड लेवल पर बदलाव लाना चाहते हैं. उसी का ये छोटा सा हिस्सा ये टीवी शो है. ऐसा नहीं है कि दर्शक अच्छी चीज नहीं देखना चाहती है. वो मौजूद होगी टीवी पर तो ना देखेंगे. सस्ता मनोरंजन है सब जगह. आज आप एक वेब सीरीज परिवार के साथ नहीं देख सकते सब में गाली गलौच और सेक्सुअल कंटेंट है.
इस शो के लिए रिसर्च वर्क क्या रहता है ?
हेल्थ केअर में जो छोटे से छोटे लेवल पर वर्कर होते हैं चाहे आशा हो एनएम दीदी हो उनसे लेकर बड़े से बड़े डॉक्टर्स से मिलकर जानकारी हासिल की है. मुझे याद लंदन से भी एक लेडी आयी थी जिन्होंने डॉक्टरेट किया था सोशल साइंस और हेल्थ पर. वो आकर हमारे साथ रही थी. वो पूरा सुपरवाइज करती थी. बहुत डिटेलिंग में उन्होंने काम किया है.
आपके शो ने कई तरह से बदलाव लाए हैं ,कोई ऐसा बदलाव जो आपके दिल को छू गया ?
महिला सशक्तिकरण के लिए पुरुषों की सोच में भी बदलाव लाना होगा. हमारे शो में भी इस पर बहुत बात हुई थी. मध्यप्रदेश के छतरपुर के पास एक गाँव में गयी थी. हमारे शो को देखने के बाद वहां के पुरुषों को महसूस हुआ कि वो अपने घर की औरतों के साथ कितना ज़्यादती कर रहे हैं. अब वे अपने घर की औरतों के काम में मदद करते हैं. पानी भी भरने जाते हैं पहले बोलते थे कि ये औरतों का काम है मर्दों का नहीं. घरेलू हिंसा भी नहीं होती अब. उस गांव के पुरुषों ने अपना मंडल बना लिया है अब वे दूसरे गांव के पुरुषों को समझाते हैं. नुक्कड़ नाटक करते हैं ताकि लोग इस चीज़ को लेकर और जागरूक हो.
टीवी को इडियट बॉक्स कहा जाता है आप इस बात से सहमत हैं ?
मैं खुद भी इस बात को मानती आयी हूं और मैं इससे सहमत भी हूं. हमारे यहां टीवी में अगर किसी लड़की ने मेकअप किया है जिसको फैशन का सेंस है तो मतलब वैम्प है. हीरोइन को सीधी साधी दिखाया जाता है. जो ऊंची आवाज में बात ना करें. नायिका बलिदान देगी. बलिदान को ग्लोरीफाय क्यों करना है. ये सब गलत संदेश टीवी दे रहा है.
क्या आप सास बहू वाले शोज नहीं करेंगी ?
नहीं,मैं समाज में जो शो योगदान देंगे उन्हें ही करना चाहूंगी. मैं खुद भी शिक्षा और स्वास्थ्य के फील्ड में कई एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. साथ ही मैं कुछ भी कर सकती हूं के अगले सीजन पर भी बातचीत चल रही है.
आपकी सोच हमेशा से ही ऐसी थी या इस शो ने आप में बदलाव लाया ?
मैं हमेशा से ही आत्मनिर्भर रही हूं.18 साल की उम्र में मैंने अपना घर छोड़ दिया था क्योंकि घर वाले मेरी शादी करवाना चाहते थे. मैंने नौकरी की और पढ़ाई भी की. मैं हमेशा से सोशल वर्क करना चाहती थी. मैं हर चीज़ पर सवाल उठाती थी.
तो आपको बहुत आलोचना भी झेलनी पड़ी होगी ?
हां, मैं राजस्थान के एक बहुत छोटे से गांव से हूं. मेरे सवालों को सुनकर सबको लगता था कि इसका चाल चलन अच्छा नहीं है. बिगड़ी हुई लड़की है. हमारे यहां जो लड़की अपने बारे में बात करे. सवाल पूछे तो उसे यही लोग समझते हैं लेकिन मैंने खुद को साबित किया अपने काम के ज़रिए तो अब सभी को मुझ पर गर्व होता है. मुझे बहुत खुशी है कि मैं सबके खिलाफ गयी क्योंकि इससे मेरे घर की दूसरी बच्चियों के लिए रास्ते खुले. मेरी एक बहन हेल्थ मैनजमेंट में बहुत सीनियर लेवल पर है. मेरी एक कजिन्स इंटरनेशनल डिजाइन र बन चुकी है. मैं अपने खानदान की पहली लड़की थी जिसने राजस्थान से बाहर जाकर काम किया.
Posted By: Shaurya Punj