mirzapur season 3 review: कमजोर लेखन ने मिर्जापुर का भौकाल कर दिया है फीका 

mirzapur season 3 दस्तक दे चुका है. कमजोर लेखन से सीरीज डगमगाती है,लेकिन कलाकारों की आला दर्जे की एक्टिंग सीरीज को थामती है.

By Urmila Kori | July 5, 2024 4:23 PM

वेब सीरीज – mirzapur 3

 निर्माता – एक्सेल एंटरटेनमेंट 

निर्देशक -गुरमीत सिंह और आनंद

कलाकार -पंकज त्रिपाठी,अली फज़ल,श्वेता त्रिपाठी शर्मा,अंजुम ,रसिका दुग्गल, लिलिपुट,ईशा तलवार और अन्य 

प्लेटफार्म – अमेज़न प्राइम वीडियो

रेटिंग -ढाई  


mirzapur season 3 के चार साल का इंतजार खत्म हो चुका है, सीरीज ओटीटी प्लेटफार्म पर स्ट्रीम कर रही है. भौकाल शब्द इस सीरीज से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. बीते दोनों सीजनों के मुकाबले यह भौकाल इस सीजन कमजोर पड़ गया है। कंट्रोल ,पावर , इज्जत के साथ राजनीति भी कहानी का हिस्सा बन गयी है. यह  आपको एंगेज करती हैं ,लेकिन रोमांच की कमी है.हिंसा का लेवल बढ़ाया गया है मगर मुख्य किरदार का दबदबा घटा दिया गया हैं. मिर्जापुर की पहचान कालीन भैया को आखिरी के 15 मिनट से पहले  जिस तरह बेबस और लाचार दिखाया गया है. वह मिर्जापुर की पहचान को कमजोर कर गया है. मुन्ना के साथ -साथ कालीन भैया का जादू भी इस बार मिसिंग है. 

इट्स नॉट पर्सनल इट्स जस्ट बिजनेस वाली हो गयी है

कहानी कहानी पर आए तो  सीरीज का दूसरा सीजन जहां से खत्म हुआ था.तीसरा सीजन वही से शुरू होता है.उसके शुरू होने से पहले पहला और दूसरा सीजन कुछ सेकेंड्स में फिर से दोहरा दिया गया है,  मुन्ना भैया(दिव्येंदु ) के अंत के साथ ही सीजन 3 की शुरुआत होती है. शरद शुक्ला (अंजुम)कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी )को बचाकर उनकी सुरक्षा गुड्डू भैया (अली फज़ल )और गोलू (श्वेता त्रिपाठी शर्मा ) से वह कर रहा है ,इसके साथ ही वह प्रदेश की सीएम माधुरी यादव (ईशा तलवार )के साथ मिलकर गुड्डू भैया को कमजोर करने में भी जुटा है.  माधुरी यादव भय मुक्त प्रदेश की आड़ में गुड्डु पंडित से अपने पति मुन्ना त्रिपाठी की मौत का बदला लेना चाहती हैं.  इधर गुड्डू ने  गोलू (श्वेता त्रिपाठी शर्मा) और बीना त्रिपाठी (रसिका दुग्गल) की मदद से मिर्ज़ापुर की गद्दी पर कब्ज़ा तो कर लिया है,लेकिन पूर्वांचल के दूसरे बाहुबलियों ने गुड्डू को मिर्ज़ापुर का किंग मानने से इनकार कर दिया क्योंकि अभी तक कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी )की लाश नहीं मिली है,तो इस सीजन गुड्डू भैया खुद को मिर्जापुर का किंग साबित करने में जुटे हैं. दिक्कतें सिर्फ यही नहीं है पिता (राजेश तैलंग )पर एसएसपी मौर्या की हत्या का आरोप है, जिसके लिए फांसी की सजा देने के लिए कोर्ट में केस चल रहा है। इसके साथ कुछ सब प्लॉट्स और भी कहानी के साथ जोड़े गए हैं. कुलमिलाकर पंडित वर्सेज त्रिपाठी की यह कहानी तीसरे सीजन में फिल्म गॉडफादर में अल पचीनो के फेमस डायलॉग इट्स नॉट पर्सनल इट्स जस्ट बिजनेस का रास्ता अख्तियार कर चुकी है. 


सीरीज की खूबियां और खामियां 

ओटीटी के इस लोकप्रिय शो की रिलीज का सभी को बेसब्री से इंतजार था. सीजन 3 में दर्शकों को कालीन भैया और मुन्ना त्रिपाठी के बीच जंग देखने की उम्मीद थी , लेकिन ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला. सिर्फ यही नहीं मिर्ज़ापुर का सबसे लोकप्रिय किरदार कालीन भैया इस बार बैकसीट पर पूरी तरह से कर दिए गए हैं. आखिरी 15 मिनटों को छोड़कर पूरे सीज़न में ऐसा महसूस होता है कि कालीन भैया बहुत बेबस और लाचार हैं . सीजन ४ कालीन भैया का होगा यह सीरीज के अंत में जरूर इसका हिंट आ गया है.इस बार साइड किरदारों की कहानी में ज्यादा दखल बढ़ी  है. जिससे मुख्य किरदार दब गए हैं. कुलमिलाकर आप बहुत ज्यादा उम्मीद के साथ सीरीज को देखना शुरू करते हैं तो ये सब पहलू आपको बहुत  अखरते हैं,लेकिन सीरीज शुरू से आखिर तक आपको बांधे रखती है।  इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। हां वो थ्रिलर कहानी से मिसिंग है, जो मिर्जापुर की जान हुआ करती है.कहानी प्रेडिक्टेबल है। आखिरी एपिसोड में मिर्ज़ापुर अपने असली रंगत में लौटता है.मार्वल स्टाइल में एंड्स क्रेडिट्स में इस बार अगले सीजन के लिए एक पुराने किरदार को भी जोड़ दिया गया है. सीरीज के ट्रीटमेंट की बात करें तो हिंसा के मामले में सीरीज एक पायदान ऊपर पहुँच गयी है. गोलियों से भूनते हुए लोग ही नहीं ,इस बार कटा हुआ सर उपहार में देने से लेकर अंगूठे से आँखें निकाल कर हत्या कर देने का दृश्य भी सीरीज में जोड़ गया है. गाली गलौज तो है ही. संवाद की बात करें तो शेरो शायरी में जिस तरह से गाली को जोड़ा गया है.वह सीन यादगार है. गीत संगीत में  इस बार कजरी का इस्तेमाल हुआ है,लेकिन आयी सी एम माधुरी ट्रैक एंटरटेनिंग है. सीरीज का बैकग्राउंड म्यूजिक अपने प्रभाव को बनाए रखता है. सीरीज की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है ,हां गुड्डू भैया का जेल में हुई फाइट वाला दृश्य बहुत रियलिटी से कोसो दूर है. ऐसा लग रहा था कि वह उत्तर प्रदेश नहीं बल्कि नॉर्वे की कोई जेल है. सीरीज की एडिटिंग पर काम करने की जरुरत थी. ८ एपिसोड में कहानी कहना ज्यादा एंगेजिंग हो सकता था. कहानी को दस एपिसोड में खिंचा गया है. 

अली और श्वेता सहित सभी एक्टर्स की शानदार परफॉरमेंस 

मिर्ज़ापुर 3 अली फज़ल, श्वेता त्रिपाठी शर्मा और अंजुम शर्मा के नाम रहा है.अली फज़ल गुड्डू भैया के किरदार में फिर से छाप  छोड़ते हैं,जिसे पावर तो मिल गयी है ,लेकिन उसे कैसे हैंडल करना है. उसे समझ नहीं आ रहा है. इसमें अली ने पागलपन को बखूबी जोड़ा है.अली के बाद श्वेता का किरदार प्रभावी ढंग से मिर्जापुर ३ में अपनी उपस्थिति दर्शाता है. इस बार वह बुद्धि के साथ – साथ बंदूक का भी जमकर इस्तेमाल कर रही हैं. शरद शुक्ला का महत्व इस सीजन बढ़ा है और अंजुम ने इस किरदार को बहुत प्रभावी ढंग से निभाया है. विजय वर्मा ने भी अपनी भूमिका के साथ जुड़े द्वन्द को बखूबी परदे पर उतारते हैं .रसिका दुग्गल और प्रियांशु पैन्यूली जैसे मंझे हुए कलाकारों का इस बार सही ढंग से कहानी में इस्तेमाल नहीं हो पाया है.राजेश तैलंग कहानी से जुड़े अपने सब प्लॉट्स के साथ एक बार फिर उम्दा परफॉरमेंस दी है. हर्षिता ,शीबा,लिलिपुट  सहित बाकी के किरदार अपने अभिनय से सीरीज को मजबूती देते हैं .

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