फिल्म – एक्सीडेंट या कांस्पीरेसी गोधरा
निर्माता -बी.जे.पुरोहित
निर्देशक -एम के शिवाक्ष
कलाकार – मनोज जोशी, रणवीर शौरी ,हितु कनोडिया ,डेनिशा घुमरा ,एम के शिवाक्ष और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -ढाई
accident or conspiracy godhra movie आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है.बीते कुछ समय से इतिहास की भयावह घटनाएं ,जिन्हें दस्तावेज की तरह परदे पर दिखाने का चलन चल पड़ा है.द कश्मीर फाइल्स ,ताशकंद फाइल्स के बाद एक्सीडेंट या कांस्पीरेसी गोधरा इसकी अगली कड़ी साबित होती है.इस विषय पर एकता कपूर, विक्रांत मैस्सी को लेकर द साबरमती रिपोर्ट लेकर आ रही हैं. इस फिल्म की बात करें तो इस फिल्म की मेकिंग का आधार नानावटी शाह की रिपोर्ट है.सिनेमैटिक कसौटियों के पहलू पर यह फिल्म सीमित संसाधनों और स्क्रीनप्ले की कुछ खामियों की वजह से गहरा असर भले ही नहीं छोड़ती है, लेकिन यह फिल्म देखी जानी चाहिए ताकि भविष्य में कुछ लोगों के बहकावे में आकर उन्मादी और हिंसक भीड़ का हिस्सा बन निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या का सिलसिला थम सके.
गोधरा कांड की दिल दहला देने वाली है कहानी
साल 2002, 27 फरवरी सुबह के वक़्त गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन के कुछ ही दूरी पर साबरमती एक्सप्रेस की दो बोगियों को आग के हवाले कर दिया गया था क्योंकि उसमें अयोध्या से आ रहे कारसेवक थे, जिसमें 59 लोगों की जिन्दा जलने से मौत हो गयी थी. यह फिल्म उसी घटना की तह तक जाती है और उससे जुड़े सच और झूठ को सामने लाती है.फिल्म की कहानी को तीन अलग -अलग टाइमलाइन के जरिये कहा गया है.एक टाइमलाइन में घटना कैसे हुई थी ,उसके पीछे की क्या साजिश थी.दूसरी टाइमलाइन में स्टूडेंट अभिमन्यु के जरिये उस घटना में मारे गए लोगों के परिवार वालों की पीड़ा और दहशत को दिखाता है और तीसरी टाइमलाइन में कोर्ट केस को दिखाया गया है ,जिसमे एक पक्ष यह साबित करने में जुटा है कि वह एक हादसा था, जबकि दूसरा पक्ष उस घटना को सुनियोजित साजिश बता रहा है.सच्चाई क्या थी और उस दिन क्या हुआ था. यही फिल्म की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
गोधरा कांड उस दिल दहला देने वाले वाकये को सभी जानते हैं ,लेकिन अब तक जो भी फिल्में बनी है.वह पोस्ट गोधरा बनी हैं यानी की गुजरात दंगों पर,लेकिन उसके पहले गोधरा कांड जो हुआ था.जिसमें 59 लोगों को जिंदा जलाकर मार दिया गया था. यह फिल्म उस घटनाक्रम को सामने लेकर आती है.इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके उस घटना को यह फिल्म परदे पर ले आयी है ,जिसके लिए इस फिल्म से जुड़े सभी लोगों की तारीफ बनती हैं ,लेकिन फिल्म ग्रे में जाकर कुछ टटोलने की कोशिश नहीं करती है. सबकुछ ब्लैक एंड वाइट है. यह बात अखरती है. इसके साथ ही जब यह फिल्म उस मामले को लेकर गठित नानावटी शाह मेहता आयोग की जांच के आधार पर ही बनायी गयी है ,तो फिल्म के शुरू होने से पहले डिस्क्लेमर के साथ शुरू क्यों होती है. गौरतलब है कि नानावती की रिपोर्ट के तरह ही यह फिल्म सिर्फ एक खास धर्म के लोगों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को ही जिम्मेदार ठहराती है. मौजूदा सरकार, पुलिस सुरक्षा बल ,अग्निशमन दल सभी को क्लीन चिट देती है. खैर फिल्म पर आते हैं.आमतौर पर कोर्टरूम ड्रामे का मतलब ओवर द टॉप बहसबाजी और आखिर में 3 मिनट का मोनोलॉग फिल्म के आखिर में,लेकिन फिल्म के ट्रीटमेंट में इन सब चीजों से दूरी बनायी है, जो फिल्म का एक पहलू है. इस तरह की फिल्मों का एक तरफा हो जाना आम हो जाता है. कई जगहों पर यह फिल्म बैलेंस को खोती है ,लेकिन फिर संभलने की कोशिश करती है. एक दृश्य में एक मुस्लिम युवक गर्भवती हिन्दू महिला को पानी देता है,जबकि एक दृश्य में एक मुस्लिम गोधरा की साजिश को इस्लाम के खिलाफ बताता है। फिल्म इस बात को भी बखूबी सामने लेकर आती है कि अफवाह कई बार किस तरह से इंसान को दूसरे इंसान के खिलाफ कर देता है.मुस्लिम महिला के हिन्दुओं द्वारा छेड़खानी की बात किस तरह से लोगों में आग का काम करती है. फिल्म के प्रोडक्शन वैल्यू में भी यह फिल्म थोड़ी कमजोर रह गयी है खासकर ट्रेन जलाने से सीक्वेंस में, हालाँकि दृश्य में कलाकारों का अभिनय और हालात दिल को झकझोरते हैं. अभिनेता शरद केलकर की आवाज से कहानी को और प्रभावी बनाया गया है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.
कलाकारों का सधा हुआ अभिनय
अभिनय की बात करें तो वकील की भूमिका में रणवीर शौरी और मनोज जोशी ने अच्छी परफॉरमेंस दी है.इनका अभिनय फिल्म के कोर्टरूम ड्रामा को मजबूती देता है. हितु कनोडिया ,डेनिशा और एम के शिवाक्ष भी अपनी – अपनी भूमिका के साथ न्याय कर गए हैं.
—