Ctrl Movie Review:अनन्या पांडे स्टारर कंट्रोल विषय के साथ न्याय करने से गयी है चूक
अनन्या पांडे की कंट्रोल नेटफ्लिक्स पर आज दस्तक दे चुकी है.इस फिल्म में क्या है खास, कहां खायी मात..जानते हैं इस रिव्यु में
फिल्म :कंट्रोल
निर्देशक :विक्रमादित्य मोटवानी
निर्माता :निखिल दिवेदी,आर्य मेनन
कलाकार :अनन्या पांडे,विहान समत,कामाक्षी, देविका और अन्य
प्लेटफार्म :नेटफ्लिक्स
रेटिंग :दो
ctrl movie review:सोशल मीडिया मौजूदा दौर में हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. इसने हमें अधिक से अधिक लोगों से जोड़ तो दिया है, लेकिन खुद से दूर कर दिया है.यही वजह है कि हम असली ख़ुशी से दूर हो वर्चुअल खुशी में सुकून तलाश रहे हैं.वैसे इस वर्चुअल सुकून की कीमत है. हम अपनी जिंदगी का कंट्रोल भी उन्हें ही दे रहे हैं.इसी मुद्दे पर निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी की अनन्या पांडे स्टारर फिल्म कंट्रोल है. फिल्म का विषय समायिक और सशक्त है लेकिन एक घंटे 40 मिनट की इस फिल्म का विषय जितना आकर्षक है, कहानी और स्क्रीनप्ले उतना ही सतही रह गया था. विक्रमादित्य मोटवानी इस विषय के साथ न्याय करने से चूक गए हैं.फिल्म को देखते हुए यह बात महसूस होती है कि शायद वह वेब सीरीज के फॉर्मेट में इस विषय के साथ ज्यादा न्याय कर पाते थे.
सोशल मीडिया के स्याह पक्ष से रूबरू करवाती है फिल्म
फिल्म की कहानी नैला(अनन्या पांडे ) की है. जो कॉलेज के एक फेस्टिवल जॉय (विहान समत )में मिलते हैं. दोस्ती होती है और उनकी दोस्ती फिर प्यार में बदल जाती है. पेशे से दोनों कंटेंट क्रिएटर हैं. पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में इनकी बहुत अच्छी चल रही होती है. दोनों कपल इन्फ्लुएंसर के तौर पर मशहूर है,लेकिन जल्द ही चीजें बिगड़ जाती हैं, जब नैला अपने प्रेमी जॉय को किसी और के साथ नजदीकियां बढ़ाते देख लेती है. उनका गन्दा ब्रेकअप होता है, जिसमें सोशल मीडिया तक में उनका मजाक मजाक बनाया जाता है.जिसके बाद नैला जॉय की यादों को जिंदगी से ही नहीं बल्कि अपने सोशल मीडिया अकाउंट से भी मिटाने का फैसला करती है और इसकी मदद वह एक नए एआई एप्प ctrl की मदद से करती है.वर्चुअल वर्ल्ड से जॉय की यादों को मिटाते हुए नैला को मालूम पड़ता है कि जॉय रियल वर्ल्ड से भी गायब है. जॉय के साथ क्या हुआ ?क्या जॉय के गायब होने में इस नए एप्प ctrl जिम्मेदार है. इन सब सवालों के जवाब आगे यह फिल्म देती है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
सूचना क्रांति और तकनीकी विकास ने एक आभासी दुनिया खड़ी कर दी है.जहां हर चीज बस एक क्लिक पर मौजूद है लेकिन हम इस बात को भूलते जा रहे हैं कि यह दुनिया हमारे डाटा का इस्तेमाल कर हमें कंट्रोल कर रही है. यह फिल्म इसी विषय को दिखाती है लेकिन फिर गहराई में कुछ नहीं दिखा पायी है. फिल्म से विक्रमादित्य का नाम जुड़े होने की वजह से उम्मीदें थी लेकिन शुरुआत के आधे घंटे के बाद से ही फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने लगती है और आखिर में फिल्म का क्लाइमेक्स इसे और कमजोर कर गया है.वैसे वेब सीरीज के फॉर्मेट में वह इस विषय और इसके किरदारों के साथ गहराई के साथ न्याय कर सकते थे. फिल्म में ऐसा कुछ भी अलग या चौकाने वाला नहीं है. डिजिटल फुट प्रिंट का गलत इस्तेमाल यह बात हम पहले भी सुन चुके हैं और विदेश की सर्चिंग सहित कई स्क्रीनलाइफ वाली कहानियों में हम देख भी चुके हैं. यह फिल्म उससे इतर कुछ भी दिखा नहीं पायी है.अनन्या का किरदार जब जॉय के लैपटॉप में सबूत ढूंढता है , तो उस लिंक को वह उसी लैपटॉप पर क्यों नहीं ओपन करता है. उसे अपने लैपटॉप पर क्यों शेयर करता है ताकि कहानी क्लाइमेक्स तक पहुंचे. इसे सिनेमैटिक लिबर्टी करार कर दिया जाए लेकिन फिल्म का अंत अखरता है. रियल लोगों के बजाय एक बार फिर नैला क्यों आभासी दुनिया में ही सुकून क्यों तलाशती है. फिल्म का कैमरावर्क इसके मजबूत पक्ष में है.जिसमें फ़िल्म के विषय के अनुरूप पूरी फिल्म को हम इंटरनेट के नजरिये से ही देखते हैं.व्हाट्सप्प कॉल ,पोस्ट,वीडियो,कमेंट, कैमरा, स्क्रीन पर समय स्क्रीन पर यही दिखता है और इसी के जरिये कहानी को कहा गया है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.
अनन्या सहित बाकी के किरदार करते हैं न्याय
बीते कुछ समय से ओटीटी पर खो गए कहां हम, कॉल मी बे जैसे प्रोजेक्ट्स से अनन्या पांडे ने अभिनेत्री के तौर पर अपने कद को बढ़ाया है. इस फिल्म में वह अच्छी रही है ,लेकिन उनकी फिल्मोग्राफी में यह कुछ खास नहीं जोड़ती है. विहान समत अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं. फिल्म में आयष्मान खुराना ए आई किरदार एलन की आवाज बने हैं, उनके साथ बाकी के किरदार अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हैं.