Azaad movie review:कई फार्मूला फिल्मों की याद दिलाती है आजाद

इस वीकेंड राशा थडानी और अमन देवगन की डेब्यू फिल्म आजाद देखने का मन बना रहे हैं तो इससे पहले पढ़ लें ये रिव्यु

By Urmila Kori | January 18, 2025 2:38 AM
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फिल्म- आजाद 

निर्देशक- अभिषेक कपूर 

कलाकार- अमन देवगन,राशा थडानी, अजय देवगन,डायना पेंटी, मोहित मल्लिक,पीयूष मिश्रा और अन्य 

प्लेटफार्म- सिनेमाघर 

रेटिंग- डेढ़ 

azaad movie review :हिंदी सिनेमा में जानवरों और इंसानों के बीच भावनात्मक जुड़ाव की कहानियां 70 और 80 के दशक की कई फिल्मों की धुरी रही है,लेकिन बाद के समय में जानवरों के साथ शूटिंग के  नियमों ने उन्हें फिल्मों की कहानी से दूर कर दिया था. बीते कुछ सालों में एंटरटेनमेंट, चिल्लर पार्टी जैसी एक दुक्का फिल्में आयी थी. निर्देशक अभिषेक कपूर की फिल्म आजाद इसी लीग में शामिल होती है.फिल्म का विषय इमोशनल लग सकता है,लेकिन कमजोर कहानी परदे पर भावनात्मक जैसा पर कुछ भी नहीं ला पायी है.मामला आउटडेटिड रह गया है. जिसने फिल्म से लांच हुए दो युवा कलाकारों को भी चमकने का खास मौका नहीं दिया है.अभिषेक कपूर बतौर निर्देशक इस बार निराश कर गए हैं.

इंसान और जानवर के बॉन्डिंग की है

कहानी फ़िल्म की कहानी की बात करें तो यह आजादी के पहले की कहानी है . बुंदेलखंड के आसपास के गांवों को कहानी का आधार बताया गया है . गांव वाले अंग्रेजों के अत्याचार से त्रस्त हैं,अंग्रेजों के अत्याचार में जमींदार भी शामिल है.गांवों के लोगों को मजबूर कर मजदूरी के लिए विदेश भेजा जा रहा है . इस हालात से बेफिक्र जमींदार के अस्तबल में  काम कर रहे गोविंद ( अमन देवगन)अपनी नानी की कहानियों को सुनकर अपने लिए भी बस एक चेतक जैसे घोड़े की तलाश में है. इस गरीब अस्तबल बॉय और अमीर जमींदार ( पीयूष मिश्रा) की बेटी जानकी (राशा )के बीच भी एक रिश्ता है,जो आमतौर पर हर दूसरी हिंदी फिल्म में हीरो और हीरोइन के बीच में होता है. ये सब चल ही रहा होता है कि  गोविन्द को बागी विक्रम सिंह (अजय देवगन )के घोड़े आजाद से मुलाक़ात हो जाती है.उसमें उसे अपने चेतक की झलक दिखती है ,लेकिन विक्रम सिंह के अलावा आजाद किसी को अपनी सवारी करने नहीं देता है. वह विक्रम सिंह को ही अपना सरदार मानता है. ऐसे में कहानी किस तरह से ऐसे मोड़ पर पहुंच जाती है.जब विक्रम सिंह की जगह  गोविन्द उसका सरदार बनता है और आजाद की मदद से वह पूरे गांववालों को जमींदारों और अंग्रेजों के जुल्म से आजाद करवाता है.यह सब कैसे होता है. यही आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां 

जानवर और इंसान के बीच की भावनात्मक कहानी फिल्म का विषय है, लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले ने इस भावनात्मक कांसेप्ट को परदे पर सशक्त  तौर पर नहीं ला पायी है. इसकी वजह कमजोर राइटिंग है.फिल्म का लेखन सतही रह गया है. जानवर और इंसान की बॉन्डिंग की कहानी क्लाइमेक्स में लगान वाले मोड में चली जाती है.जमींदार और अंग्रेजों के खिलाफ जाने की सोच भी रखने से घबराने वाले गांव वालों में आखिर इतनी हिम्मत कहां से आ गयी कि वह जमींदार से अर्धकुंभ में गोविन्द के रेस में शामिल होने की बात रख देते हैं. इस पहलू को भी कहानी में सही ढंग से नहीं जोड़ा गया है. फिल्म 1920 के दौर को स्थापित नहीं कर पायी है. फिल्म उससे जुड़ी बारीकियों को नजरअंदाज करती है.अजय देवगन का ट्रैक अच्छा है,उनकी मौजूदगी फिल्म को मजबूती देती है, लेकिन गांव वालों का सपोर्ट क्यों ठाकुर विक्रम सिंह को नहीं मिलता है.इस पर भी लेखन टीम ने काम करने की जरूरत महसूस नहीं की है.डायना, अजय देवगन और मोहित मल्लिक के ट्रैक को कहानी में अधपका ही रहने दिया गया है.अजय देवगन के बादफिल्म में आजाद ही एकलौता ऐसा चेहरा है, जिससे जुड़े सीन असर छोड़ते हैं.फिल्म का गीत संगीत अच्छा बन पड़ा है और उससे जुड़े कोरियोग्राफी की भी तारीफ बनती है.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी विषय के साथ न्याय करती है, जबकि संवाद अच्छे बन पड़े हैं. 

नवोदित कलाकारों की अच्छी कोशिश 

अभिनय की बात करें तो इस फिल्म से अभिनेत्री रवीना टंडन की बेटी राशा और अजय देवगन के भांजे अमन देवगन ने हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत की है .पहली फिल्म के लिहाज से राशा ने अच्छी एक्टिंग की है.वे फिल्म में बेहद प्यारी लगी हैं.आइटम सांग में उनकी अदाएं देखने वाले थी हालांकि इस बात से इंकार नहीं है कि उन्हें खुद पर और काम करने की जरूरत है.अमन देवगन की अपने किरदार के लिए की गयी मेहनत दिखती है.वे आत्मविश्वास से भरपूर नजर आते हैं.वे डांसर अच्छे हैं. इंटेंस दृश्यों पर उन्हें और खुद पर काम करना होगा.डायना पेंटी और अजय देवगन ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. मोहित मल्लिक, पीयूष मिश्रा सहित बाकी के किरदार भी ठीक ठाक रहे हैं. 

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